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आचारदिनकर (खण्ड-४) 79 प्रायश्चित्त, आवश्यक एवं तपविधि छंदेण आदि रूप गुरु के छ: वचन, वंदन करने के पाँच अधिकारी, वंदन करने के पाँच अनधिकारी, वंदन की पाँच निषेधावस्थाएँ, एक अवग्रह, वन्दन के पाँच नाम तथा वन्दन के पाँच दृष्टान्त, गुरु की तेंतीस आशातना, वन्दन के बत्तीस दोष, वंदन के आठ कारण तथा अवन्दन के छ: दोष - इस प्रकार वन्दन के १६८ स्थान होते हैं। इनका योग निम्न प्रकार से है -
मुँहपत्ति की प्रतिलेखना के स्थान शरीर की प्रतिलेखना के स्थान आवश्यक-क्रिया के स्थान वन्दन के स्थान गुरु के वचन वन्दन के गुण वन्दन के अधिकारी वन्दन के अनधिकारी वन्दन की निषेधावस्था गुरु का अवग्रह वन्दन के नाम वन्दन के उदाहरण गुरु की आशातना वन्दन के दोष वन्दन के कारण वन्दन नहीं करने के दोष
कुल योग - १६८
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es eso
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इस प्रकार वन्दन के एक सौ अट्ठानवें स्थान हैं। मुखवस्त्रिका-प्रतिलेखना के पच्चीस स्थान निम्न प्रकार से हैं -
दृष्टि-प्रतिलेखन एक, तीन-तीन के अन्तर से अक्खोडा (पुरिम), नौ अक्खोडा एवं नौ पक्खोडा कुल मिलाकर मुहँपत्ति के २५ बोल होते हैं। कायप्रतिलेखना के २५ बोल इस प्रकार हैं - दो हाथ, सिर, मुँह, हृदय, दो पाँव और पीठ - इन छ: अंगों की चार-चार
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