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आचारदिनकर (खण्ड-४) 170 प्रायश्चित्त, आवश्यक एवं तपविधि दंसण नाण चरित्ते, अविरहित्ता ठिओ समण धम्मे।
तइयं वयमणुरक्खे, विरयामो अदिन्नादाणाओ।।६।। दंसण नाण चरित्ते, अविरहित्ता ठिओ समण धम्मे।
चउत्थं वयमणुरक्खे, विरयामो मेहुणाओ।।१०।। दंसण नाण चरित्ते, अविराहित्ता ठिओ समण धम्मे।
पंचमं वयमणुरक्खे, विरयामो परिग्गहाओ।।११।। दंसण नाण चरित्ते, अविरहित्ता ठिओ समण धम्मे।
छटुं वयमणुरक्खे विरयामो राई भोयणाओ।।१२।। भावार्थ - - दर्शन, ज्ञान एवं चारित्र की विराधना किए बिना परिपालन करके दसविध साधु-धर्म में स्थिर रहता हुआ मैं प्रथम व्रत का रक्षण करता हूँ और प्राणातिपात से सर्वथा विराम लेता हूँ और इसी प्रकार ज्ञान, दर्शन एवं चारित्र का पालन करता हुआ, श्रमणधर्म में स्थिर रहकर मृषावाद-विरमण, अदत्तादान-विरमण, मैथुन-विरमण और परिग्रह-विरमण-व्रत का पालन करता हूँ तथा मृषावादादि सम्बन्धी असद् प्रवृत्तियों से सर्वथा अलग होता हूँ।।७-१२।।
“आलय विहार समिओ, जुत्तो गुत्तो ठिओ समण धम्मे।
___ पढमं वयमणुरक्खे, विरयामो पाणाइवायाओ।।१३।। आलय विहार समिओ, जुत्तो गुत्तो ठिओ समण धम्मे।
बीयं वयमणुरक्खे, विरयामो मुसावायाओ।।१४।। आलय विहार समिओ, जुत्तो गुत्तो ठिओ समणधम्मे।
तइयं वयमणुरक्खे, विरयामो अदिन्नादाणाओ।।१५।। आलय विहार समिओ, जुत्तो गुत्तो ठिओ समणधम्मे।
__ चउत्थं वयमणुरक्खे, विरयामो मेहुणाओ।।१६।। आलय विहार समिओ, जुत्तो गुत्तो ठिओ समणधम्मे।
पंचमं वयमणुरक्खे, विरयामो परिग्गहाओ।।१७।। आलय विहार समिओ, जुत्तो गुत्तो ठिओ समणधम्मे।
छटुं वयमणुरक्खे, विरयामो राई भोयणाओ।।१८ ।।"
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