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आचारदिनकर (खण्ड-४)
100 प्रायश्चित्त, आवश्यक एवं तपविधि चउण्हंकसायाणं - क्रोध, मान, माया एवं लोभरूप चार कषायों का सेवन किया हो।
पंचमहब्बयाणं - प्राणातिपात, मृषावाद, अदत्तादान, मैथुन एवं परिग्रहरूप पाँच महाव्रतों का (पालन नहीं किया हो)।
छण्हंजीवनिकायणं - पृथ्वीकाय, अप्काय, तेजस्काय, वायुकाय एवं त्रसकायरूप छ: जीवनिकाय का (वध किया हो)।
सत्तण्हं पिण्डैषणाणं - १. संस्पृष्ट २. असंस्पृष्ट ३. उद्भटा ४. अप्रलेपिता ५. अवगृहीता ६. प्रगृहीता ७. उज्झितधर्मा - ये सात पिण्डैषणाएँ हैं। पानैषणा का विवरण भी इसी तरह समझना चाहिए, किन्तु चतुर्थ पानैषणा कुछ भिन्न है। इसमें धान्य-पानक एवं अम्ल-पानक आदि का ग्रहण किया जाता है। इसकी विस्तृत व्याख्या आगम से जानें।
___अट्ठण्हं पवयणमायाणं - पांच समिति एवं तीन गुप्ति - ये अष्ट प्रवचनमाताएँ हैं।
नवण्हं बंभचेरगुत्तीणं - १. स्त्री, पशु और नपुंसकों से युक्त स्थान में न ठहरें। २. स्त्रियों के साथ एक आसन पर न बैठे, उसके उठ जाने पर भी एक मुहूर्त तक उस आसन पर न बैठें। ३. दीवार आदि के अन्तर से स्त्री के शब्द, गीत आदि न सुनें और न छिद्रादि से उन्हें देखें। ४. स्त्रियों सम्बन्धी कथावार्ता का त्याग करें ५. पूर्व में भोगे हुए भोगों का स्मरण न करें। ६. स्त्रियों के मनोहर अंगोपांग न देखें। ७. अपने शरीर की विभूषा न करें। ८. गरिष्ठ भोजन न करें और ६. अधिक आहार न करें।
दसविहे समणधम्मे - १. संयम २. सत्य ३. ब्रह्मचर्य ४. संतोष ५. शौच ६. तप ७. क्षमा ८. मार्दव ६. आर्जव और १०. मुक्ति (त्याग)।
श्रावकों के आलोचनासूत्र में “असमण पावग्गो' की जगह "असावगपाउग्गो" पाठ आता हैं, जिसका अर्थ श्रावक के लिए अयोग्य - ऐसा है। उसके बाद शेष पूर्ववत् है, किन्तु "चउण्हं कसायाणं" के बाद “पंचण्हं अणुव्वयाणं तिण्हंगुणव्वयाणं चउण्हं
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