Book Title: Prakritpaingalam
Author(s): Bholashankar Vyas, Vasudev S Agarwal, Dalsukh Malvania
Publisher: Prakrit Text Society Ahmedabad
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१.१०२] मात्रावृत्तम्
[५१ अह घत्तानंद,
सो घत्तह कुलसार कित्ति अपारु णाअराअ पिंगल कहइ ।
एआरह वीसाम णंदउ णाम पुणु वि सत्त तेरह विरइ ॥१०२॥ [घत्ता] १०२ घत्तानंद छंद
नागराज पिंगल कहते हैं कि घत्ता-कुल में मुख्य वह घत्तानंद अत्यधिक प्रसिद्ध (कीर्ति में अपार) है, जहाँ ग्यारह मात्रा पर, फिर सात तथा तेरह मात्रा पर विश्राम (विरति) होता है, यह नंद नामक (घत्ता) है।
(घत्तानंद के प्रत्येक दल की मात्राएँ ११+७+१३=३१ )। टिप्पणी-घत्तह कुलसार-< घत्तस्य (घत्तायाः) कुलसार: 'घत्तह' संबंध कारक ए० व० ।
छक्कलु आइहिँ संठवहु तिण्णि चउक्कल देहु ।
पंचक्कल चउकल जुअल घत्ताणंद मुणेहु ॥१०३॥ [दोहा] १०३ पहले षट्कल गण की स्थापना करो, तब तीन चतुष्कल गणों की स्थापना करो, तब एक पंचकल तथा दो चतुष्कल दो, इस तरह घत्तानंद समझो ।
; (घत्ता तथा घत्तानंद में केवल इतना ही भेद है कि घत्ता में विराम १०, ८, १३ पर होता है, घत्तानंद में ११, ७, १३ पर । दोनों में एक दल में ३१ मात्रा तथा कुल छंद में ६२ मात्रा होती हैं तथा अंत में तीन लघु होते हैं ।)
टिप्पणी-आइहिँ-< आदौ, हिँ करण-अधिकरण ए० व० ब० व० चिह्न । संठवहु, देहु, मुणेहु-आज्ञा म० पु० ब० व० का चिह्न 'हु' ।। घत्ताणंद-कर्मकारक ए० व० शून्य विभक्ति ।
जहा,
जो वंदिअ सिर गंग हणिअ अणंग अद्धंगहि परिकर धरणु ।
सो जोई जणमित्त हरउ दुरित्त संकाहरु संकरचरणु ॥१०४॥ [घत्ताणंद] १०४. घत्तानन्द का उदाहरण
जिन्होंने सिर से गंगा की वन्दना की है, कामदेव मारा है, अर्धांग में स्त्री धारण की है, वे योगियों के मित्र, शंका हरनेवाले आदरणीय शंकर (शंकर चरण) हमारे दुःखों का नाश करे ।
टिप्पणी-वंदिअ सिर गंग-इसकी टीकाकारों ने दो तरह से व्याख्या की है। (१) सिर पर स्थित गंगा ने जिनकी वंदना की है, (२) जिन्होंने सिर पर धारण कर गंगा की वंदना की है (वंदिता शिरसि गंगा) ।
हणिअ-< हतः (कर्मवाच्य भूतकालिक कृदन्त) । अद्धंगहि-< अर्धांगे, 'हि' अधिकरण ए० व० सुप् विभक्ति । हरऊ-Vहर+उ आज्ञा प्र० पु० ए० व० ।
दुरित्त-छन्द के लिए 'त' का द्वित्व < सं० दुरित । १०२. घत्तह-B. घत्ता । कुलसार-C. कुलसारं । अपारु-A अपार, C. अपारं । कहइ-C. कहई । वीसाम-A. वीस्सम, C. विसामं । णाम-C. णामं । पुणु वि-A.C. पुण वि । विरइ-C. विरई । १०२-C. १०४ । १०३. छक्कलु-B. छक्कल । चउक्कलB. N. चक्कल । एतच्छंद: 'C' प्रतौ न प्राप्यते । देहु-0. देह । पंचक्कल चउकल जुअल-0. पंचक्कल जुअला । मुणेहु-0. मुणेह। १०४. जो-C.O. जे । गंग-C. गंगं । अणंग-C. अणंगं, अद्धंगहि... C. अधंगं पव्वइ धरणु । सो जोई जणमित्तC. सो ईजणचित्तं, 0. सो जोइजणमित्त । दुरित्त-C. दुरित्तं । संकाहरु-०. संकाहर । १०४-C. घत्तानंद ।
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