Book Title: Prakritpaingalam
Author(s): Bholashankar Vyas, Vasudev S Agarwal, Dalsukh Malvania
Publisher: Prakrit Text Society Ahmedabad
View full book text
________________
११४] प्राकृतपैंगलम्
[२.६० सुवास छंदः
भणउ सुवासउ लहु सुविसेसउ ।
रचि चउ मत्तह भ लहइ अंतह ॥६०॥ ६०. आरम्भ में लघु अक्षरों के द्वारा विशेषतः चार मात्रा की रचना कर अंत में भगण प्राप्त हो, उसे सुवास छंद कहो । (III)
टि०-भण-आज्ञा म० पु० ए० व० 'उ' तिङ् विभक्ति यह वस्तुतः शुद्ध धातु रूप के साथ कर्ता ए० व० के 'उ' चिह्न का प्रयोग है।
रचि-Zरचयित्वा-पूर्वकालिक क्रिया रूप ।
लहइ-कुछ टीकाकारों ने इसे 'लभति' तथा 'लभ्यते' माना है, कुछ ने पूर्वकालिक रूप । संभवतः यह वर्तमानकालिक प्र० पु० ए० व० का रूप है, लहइ < लभते । जहा,
गुरुजणभत्तउ बहु गुणजुत्तउ।
जसु जिअ पुत्तउ स इ पुणवंतउ ।।६१॥ [सुवास] ६१. उदाहरण:
जिस व्यक्ति के गुरुजनों की भक्त, गुणयुक्त पत्नी (वधू) हो, तथा जीवित रहनेवाला पुत्र (वाले पुत्र) हो, वही पुण्यशाली है।
टिo-जसु- यस्य > जस्स > *जास-जस > जासु-जसु । करहंच छंद :
चरण गण विप्प पढम लइ थप्प ।
जगण तसु अंत मुणहु करहंच ॥६२॥ ६२. (प्रत्येक) चरण में पहले विप्र गण (चार लघु वाले मात्रिक गण) स्थापित करो तथा जिसके अन्त में जगण (मध्य गुरु वर्णिक गण) हो, उसे करहंच छंद समझो । (IIIII5)
टि०-लइ-पूर्वकालिक किया रूप । थप्प-स्थापय, णिजन्त के अनुज्ञा म० पु० ए० व० का रूप ।
जहा,
जिवउ जह एह तजउ गेइ देह ।
रमण जइ सो इ विरह जणु होइ ॥६३॥ [करहंच] ६३. उदाहरण:कोई पतिव्रता कह रही है :
यह मैं जाकर अपने देह का त्याग करती हूँ। यदि फिर कहीं जीऊँ (मेरा फिर से कहीं जन्म हो), तो मेरा पति वही हो, उससे मेरा विरह न हो।
टिप्पणी-जीवउ < जीवामि > म० भा० आ० जीवामि-जीवमि-जिवामि-जिवमि >* जिववि > *जिवउँई > जिव।
तजउ < त्यजामि > म० भा० आ तजामि-तजमि > *तजवं > *तजउँइ > तजउँ। ६०. सुवास:-A. सूवासउ, C. सरसउ । लहु... विसेस-A. लहुसू विसेसउ, C. लहुगुरुसेसउ, N. “सुविसेसनु । रचि-C. सरइ। च:-N. चतु । भ लहइ-N. भगणइ, 0. भगण । अंतह-C. अणन्तह, 0. करंतह । ६१. जणभत्त:-C. जणतत्रउ । जसुजिअ A. जसू, जिअ, C. तिअ, N. °तिय । पुणवंत-C. N.O. पुणमन्तउ । ६२. मुणहु-N. मुणइ, 0. भणिअ । ६३. जिवऊ C. जिअउँ, 0. जिअउ । तज-C. तजउँ । जइ-C. जोइ । सो इ-0. कोइ । जणु-B. जिणु, C.O. जणि ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org