Book Title: Prakritpaingalam
Author(s): Bholashankar Vyas, Vasudev S Agarwal, Dalsukh Malvania
Publisher: Prakrit Text Society Ahmedabad
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प्राकृतपैंगलम् ब्रज०, कन्नौजी, बुन्देली वर्तमान कालिक तिडन्तों की बोलियाँ है। प्रा० पैं० की भाषा में हमें दोनों तरह के रूप मिलते हैं । हाँ, राज० ब्रज आदि के निश्चित वर्तमान के समानान्तर *मारउँ हउँ' जैसे रूप प्रा० पैं० में नहीं मिलेंगे। आज्ञा प्रकार (इम्पेरेटिव मूड) १०५. प्राकृतपैंगलम् में इसके निम्न रूप मिलते हैं :ए० व०
ब० व० प्रथम पुरुष १. "उ (करउ
१. "न्तु (करन्तु) २. "ए (करे) ३. °ओ (करो)
४. शून्य रूप (कर) मध्यम पुरुष १. हि (करहि)
१. ह (करह) २. सु (करसु)
२. हु (करहु) ३. °उ (करु) ४. ओ (करो) ५. इ (करि)
६. शून्य (कर) उत्तम पुरुष
प्राकृतपैंगलम् में आज्ञा उत्तम पुरुष ए० व० ब० व० के रूप नहीं मिलते । प्रथम पुरुष ए० व०
(१) उ का विकास प्रा० भा० आ० आज्ञा प्र० पु० ए० व० "तु से हुआ है :- करोतु, *करतु > म० भा० आ० करउ । यह "उ प्राकृत तथा अपभ्रंश में भी पाया जाता है। (दे० पिशेल ४६९, टगारे १३८) शौरसेनी तथा मागधी में यह 'तु, 'दु हो गया है :- पसीददु < प्रसीदतु (शाकुन्तल)। संदेशरासक तथा उक्तिव्यक्ति दोनों में केवल *उ ('अउ) वाले रूप ही मिलते हैं । (दे० संदेशरासक ६ ६३, उक्तिव्यक्ति ७४).
(२) °ए वाले रूपों का विकास वर्तमान निर्देशात्मक प्र० पु० ए० व० के रूपों से हुआ है। हिन्दी में यही रूप पाये जाते हैं :- चलति > चलइ > चले । यह रूप हिन्दी में वर्तमान इच्छात्मक तथा आज्ञा दोनों प्रकार के क्रियापदों में पाया जाता है ।
(३) °ओ वाले रूप हिन्दी में मध्यम पुरुष ब० व० के रूप हैं, जिनकी व्युत्पत्ति डा० तिवारी ने चलथ > चलह, चलह, > चलउ > चलो के क्रम से मानी है। यहाँ इसका सम्बन्ध मध्यम पुरुष वाले रूपों से न होकर प्र. पु० ए० व. के 'चलतु > चलउ > चलो से है। हिन्दी में ये रूप प्र० पु० ए० व० में नहीं पाये जाते ।
(४) शून्य रूप :- इसका विकास भी वर्तमान के रूपों से, चलति > चलइ > चल (ति > अइ > °अ) के कम से माना जाता है; अथवा यह आज्ञा म० पु० ए० व० रूपों का प्रभाव हो सकता है।
इनके उदाहरण ये हैं :
रक्खउ (१.१०१), देऊ (=देउ २.४), होउ (२.६९), पाउ (२.७७), वितरउ (२.१३८), थक्कउ (२.१४९), जाणे (२.२७), रक्खे (२.१२), रक्खो (२.२), संहारो (२.४२), हर (१.१११), वितर (१.१११), दे (१.११९) कर (२.९५) । प्रथम पुरुष ब० व०
म० भा० आ० में इसका विभक्तिचिह्न अन्तु < प्रा० भा० आ० 'अंतु (पठन्तु, भवन्तु) है । (दे० पिशेल $ ४७१, पृ० ३३४; टगारे ६ १३८) अपभ्रंश में इसका हि रूप भी मिलता है, लेहिँ (हेम० ४.३८७) । प्रा० पैं० में °न्तु वाले रूप मिलते हैं।
उदाहरण :- थकंतु (२.१३२), जुज्झंतु, (२.१३२) ।
१. डा० उदयनारायण तिवारी : हिन्दी भाषा का उद्गम और विकास
३८२, पृ० ४९४
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