Book Title: Prakritpaingalam
Author(s): Bholashankar Vyas, Vasudev S Agarwal, Dalsukh Malvania
Publisher: Prakrit Text Society Ahmedabad
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प्राकृतपैंगलम् का छन्दःशास्त्रीय अनुशीलन
५२३ का संकेत किया है, जैसे रोला में ११, १३, पर यति स्वीकार की गई है। सवैया छन्द के मूल रूप में १०, ८, १४, या १२, ८, १२ मात्रा पर ताल यति पाई जाती थी, किंतु हिन्दी के छन्दःशास्त्रीय ग्रंथों में इसका कोई संकेत नहीं मिलता। घनाक्षरी में अवश्य यति का संकेत मिलता है, जहाँ ८, ८, ८, ७ वर्णों पर यति होना चाहिए, यदि न हो सकें, तो १६
और १५ पर तो यति का विधान अवश्य ही हो । मध्ययुगीन हिंदी कवियों ने ८, ८, ८, ७ की यति का सदा ध्यान नहीं रखा है, पर १६, १५ पर नियत यति पाई जाती है । सवैया तथा घनाक्षरी का यतिसंबंधी विवेचन तत्तत् प्रसंग में द्रष्टव्य है।
__ छन्दःशास्त्रीय पादान्त यति तथा पादमध्य यति के अतिरिक्त विद्वानों ने छन्द में पाठ्य यति (epic caesura) या नाट्य यति (dramatic caesura) को भी स्वीकार किया है। पाश्चात्य विद्वानों ने प्रायः उस स्थान पर यह यति मानी है, जहाँ बलाघात हीन अक्षर के बाद भी यति इसलिये पाई जाती है कि छन्द:पंक्ति दो वक्ताओं की उक्तियों में विभक्त होती है । इस प्रकार की यति का उदाहरण केशवदास की रामचंद्रिका से दिया जा सकता है, जहाँ यह नाटकीय यति पाई जाती है :
कौन के सुत, बालि के, वह कौन बालि न जानिये ? काँखि चाँपि तुम्हें जो सागर सात न्हात वखानिये ।। है कहाँ वह, वीर अंगद देव लोक बताइयो ।
क्यों गये, रघुनाथ बान विमान बैठि सिधाइयो । (राम० १६.६) संस्कृत वर्णिक वृत्तों की भाँति पश्चिमी छन्दों में भी प्रायः उदात्त अक्षर (या दीर्घोच्चारित अक्षर) के बाद ही यति पाई जाती है, जिसे वहाँ सबल यति (masculine caesura) कहा जाता है; किंतु कुछ स्थलों पर पाठ्य यति तथा नाटकीय यति का विधान बलाघातहीन अक्षर के बाद भी मिलता है । इसे वहाँ दुर्बल यति (weak or feminine caesur) कहा जाता है। संस्कृत के उद्गता छंद के प्रथम चरण के पादांत में यही दुर्बल यति पाई जाती है, साथ ही संस्कृत के कुछ छन्दों में पदमध्य दुर्बल यति भी देखी जाती है, जो अपवाद रूप जान पड़ते हैं, यथा, कुमारललिता (II, II55), पणव (5551, 555), वृत्त (III, III555), नवमालिनी (15 51, IIS5), चन्द्रावर्ता (IIIII, IIIs), ऋषभगजविलसित (5|ऽ।ऽI, IIII5), क्रौंचपदा (॥ऽऽ, Iss, I II, IIIs), अपवाहक (555||IIII, IIIIII, IIIII, ||555), वरतनु (IIIISI, ISISIS), कुटिला (5555, III, 5ऽऽऽ), शैलशिखा (5051, 5151, ISIS) ।
हिंदी के नये कवियों ने यति के प्रयोग में आवश्यकतानुसार हेरफेर किया है तथा अनेक कवियों ने प्रायः भावयति (emotional caesura) का प्रयोग किया है, जो नाटकीय यति का ही एक प्रकार है। रोला में ११ पर लध्वंत मध्ययति मानने का विधान मिलता है, किंतु नये हिन्दी कवियों में कहीं तो यह अपने आप बन जाती है, कहीं पाठप्रवाह में इसके स्थान पर अन्य यति (८, ८, ८) माननी पड़ती है, जैसे पंत की 'परिवर्तन' कविता के रोला में
'तुम नृशंस नृप । से जगती पर । चढ अनियंत्रित; (८, ८, ८) करते हो सं- । सृति को उत्पी- । डित पदमर्दित, नग्न नगर कर । भग्न भवन प्रति- । माएँ खंडित,
हर लेते हो । विभव, कला, कौ- । शल चिर संचित । (पंतः परिवर्तन) हिन्दी के मात्रिक छन्दों में प्रायः २४ मात्रा तक के छन्दों को बिना मध्ययति के ही प्रयुक्त किया जा सकता है, किन्तु गीति (२६ मात्राएँ), विष्णुपद (१६, १० मात्राएँ), सरसो (१६, ११ मात्राएँ), सार (१६, १२ मात्राएँ) ताटंक (१६, १४ मात्राएँ), मत्तसवाई (१४, १६ मात्राएँ) जैसे बड़े मात्रिक छन्दों में पादमध्ययति का होना नितांत आवश्यक है।
१. जगन्नाथप्रसाद भानु : छन्दःप्रभाकर पृ० २१५. २. E. Smith : Principles of English Metre. ch. XI $ 13. p. 33. ३. 'छन्द:सूत्र' की हलायुधटीका ६.३, ६.१०, ६.२३, ६.४३, ७.११, ७.१५, ७.२९, ७.३१, ८.३, ८.१०, ८.११. ४. डा० पुत्तूलाल शुक्ल : आधुनिक हिंदी काव्य में छन्दोयोजना पृ० २१२.
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