Book Title: Prakritpaingalam
Author(s): Bholashankar Vyas, Vasudev S Agarwal, Dalsukh Malvania
Publisher: Prakrit Text Society Ahmedabad

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Page 671
________________ मध्ययुगीन हिंदी काव्यपरंपरा के दो प्रमुख छंद सवैया छंद का उद्भव और विकास २०३. मध्ययुगीन हिंदी काव्यपरम्परा के 'सवैया' तथा 'घनाक्षरी' छन्द विद्वानों के लिए एक समस्या बने हुए हैं । उनके उद्भव और विकास के बारे में अभी तक कोई निश्चित मत नहीं बन सका है। ऐसा समझा जाता है कि ये छंद सर्वप्रथम ब्रजभाषा काव्य में ही दिखाई पड़ते हैं और पुराने साहित्य में कहीं भी इनके बीज नहीं मिलते । सवैया को तो कुछ लेखकों ने दो त्रोटक छन्दों को द्विगुणित कर बनाया गया वर्णिक छन्द मान लिया है, पर यह मत मान्य नहीं हो सका है। वस्तुतः जैसा कि हम देखेंगे वर्णिक सवैया का मूल रूप मात्रिक सवैया ही है और इसके बीज अपभ्रंश के ३२ मात्रा वाले छंदों में दिखाई पड़ते हैं। हिंदी काव्यपरम्परा में दो तरह के सवैया छंद मिलते हैं - मात्रिक सवैया और वर्णिक सवैया । मात्रिक सवैया भी दो तरह के प्रचलित हैं, एक ३१ मात्रा वाला, दूसरा ३२ मात्रा वाला । प्राकृतपैंगलम् में ३२ मात्रा वाले मात्रिक छंद दुर्मिल और उसके यति-भेद से बने और भी पद्मावती आदि छंदों का संकेत किया गया है। प्राकृतपैंगलम् में दुमिल, किरीट और सु-दो इन तीन वणिक छन्दों का भी जिक है, जो मूलतः इसी ३२ मात्रा वाले दुर्मिल के वर्णिक प्रस्तार के परिवर्तन के आधार पर बने भेद हैं। इन सभी छंदों के विश्लेषण से पता चलेगा कि इनमें आठ चतुष्कल गणों की ही विविध संघटना तथा यति-भेद से इन छंदों की गति और लय में परस्पर भिन्नता आ जाती हिंदी काव्यपरम्परा और छंदोग्रन्थों में वर्णिक सवैया के अनेक भेद मिलते हैं। मोटे तौर पर वर्णिक सवैया दो तरह का है, एक २३ वर्णोंवाला, दूसरा २४ वर्णोंवाला । वैसे भिखारीदास ने २५ वर्णों वाले माधवी सवैया (८ सगण + गुरु, मात्रा ३४), और २६ वर्णोंवाले मालती सवैया (८ सगण + दो लघु, मात्रा ३४) का भी जिक्र किया है, जो वस्तुतः वर्णिक दुर्मिल सवैया (२४ वर्ण, ३२ मात्रा)में ही दो ढंग से दो मात्रायें बढ़ाकर बनाये गये प्ररोह है। मुख्य सवैयाभेदों की तालिका यह हैं :२३ वर्ण वाले सवैया - सुंदरी ससभसतजजलग २३ वर्ण, ३२ मात्रा चकोर ७ भगण, १ गुरु, १ लघु २३ वर्ण, ३१ मात्रा मत्तगयंद ७ भगण, २ गुरु २३ वर्ण, ३२ मात्रा सुमुखी ७ जगण, १ लघु, १ गुरु २३ वर्ण, ३१ मात्रा २४ वर्ण वाले सवैयाकिरीट ८ भगण २४ वर्ण, ३२ मात्रा दुर्मिला ८ सगण २४ वर्ण, ३२ मात्रा मुक्तहरा ८ जगण २४ वर्ण, ३२ मात्रा भुजंग ८ यगण २४ वर्ण, ४० मात्रा गंगोदक (या लक्ष्मी) ८ रगण २४ वर्ण, ४० मात्रा आभार ८ तगण २४ वर्ण, ४० मात्रा वाम (मंजरी) ७ जगण, १ यगण २४ वर्ण, ३३ मात्रा अरसात ७ भगण, १ रगण २४ वर्ण, ३३ मात्रा उक्त सवैयाभेदों में मूल सवैया चतुष्कल गणों के आधार पर बने ८ भगणात्मक, सगणात्मक या जगणात्मक व्यवस्था वाले २४ वर्ण के वे छंद है, जो ३२ मात्रा वाले छंद के ही विविध प्रस्तारों में से हैं। प्राकृतपैंगलम् में इसके ८ सगणात्मक छंद 'दुर्मिला' और ८ भगणात्मक छंद 'किरीट' का तो संकेत है, पर 'जगणात्मक' संघटना वाला छंद नहीं मिलता । बाद में जगणात्मक चतुष्कल के आधार पर बने ३२ मात्रा वाले छंद का भी विकास हो गया है, जो मध्ययुगीन हिंदी कविता का 'मुक्तहरा' छन्द है। इस प्रकार २४ वर्ण का वर्णिक छन्द बन जाने पर वर्णिक संख्या के वजन के आधार पर ऐसे Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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