Book Title: Prakritpaingalam
Author(s): Bholashankar Vyas, Vasudev S Agarwal, Dalsukh Malvania
Publisher: Prakrit Text Society Ahmedabad
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प्राकृतपैंगलम् 'गलितक, खञ्जक, शीर्षक' जैसे परवर्ती प्राकृत छन्द व उनके विविध मिश्रित रूपों का विवेचनं नहीं मिलता । अपभ्रंश छन्दों में भी प्राकृतपैंगलम् का संग्रह भट्ट कवियों के व्यवहार में अधिक आनेवाले छन्दों को ही चुनता है और इस दृष्टि से एक ही मात्रा प्रस्तार के उन अनेक छन्दों की जरूर लेता है, जिनका प्रयोग काफी प्रचलित था । जैसे ३२ मात्राप्रस्तार के पद्मावती जैसे ६ छन्दों का विवरण मिलेगा, किंतु कई मात्रा प्रस्तारों में छंदों का हवाला तक नहीं मिलता । मिश्रित छन्दों में भी केवल कुंडलिया और छप्पय इन्हीं दो छन्दों को चुना गया है। प्राकृतपैंगलम् के मात्रिक छन्दों को ऐतिहासिक विकास क्रम की दृष्टि से दो वर्गों में बाँटा जा सकता है; एक वे छन्द जो प्राकृत छन्दःपरम्परा से संबद्ध है, जैसे गाथा और उसके तालच्छन्द हैं, जैसे पादाकुलक, अरिल्ल, रोला, दुर्मिल, दोहा, सोरठा आदि । प्राकृतपैंगलम् के मात्रिक छन्दों का अनुशीलन हम इन्हीं दो वर्गों में बाँट कर करेंगे ।
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