Book Title: Prakritpaingalam
Author(s): Bholashankar Vyas, Vasudev S Agarwal, Dalsukh Malvania
Publisher: Prakrit Text Society Ahmedabad
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(२)
जिणि आ
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प्राकृतगलम् इसमें श्रीभायाणी ने 'पिउ' के बाद 'प्रति' (प्रियं प्रति) का आक्षेप किया है। किंतु मुझे तो यहाँ 'प्रति' के आक्षेप की कोई जरूरत नहीं दिखाई देती । हम 'मण दूअउ' तथा "पिउ' दोनों को 'पेसिउ' (प्रेषितः) का कर्म क्यों न मान लें तथा इसका संस्कृत रूपान्तर 'प्रियं प्रेषितः मनोदूतः प्रेमग्रहिलया' करके 'प्रेषितः' पद को द्विकर्मक क्यों न समझें?
प्रा० पै० की भाषा में छन्दोनुरोध से कई स्थानों पर क्रियादि वाक्यांशों का आक्षेप करना पड़ता है। टीकाकारों ने इसका संकेत किया है :
(१) 'चउआलिस गुरु कव्वके, छहबीसउ उल्लाल' (१.१२०) में किया 'भवंति' (>होंति या होइ) का आक्षेप करना पड़ेगा ।
(२) 'छहबिस उल्लालहि' (१.११७) में 'षड्विंशति-गुरून् जानीहि इति शेषः' यह अर्थ करना पड़ेगा ।
(३) 'चउसट्ठि मत्त, पज्झलइ इंदु' में प्रथम वाक्य में 'होति' क्रिया का आक्षेप करना पड़ेगा । ये दोनों वस्तुतः 'पेरेंथेटिकल क्लाजेज' हैं, अर्थ होगा 'पज्झटिका में ६४ मात्रा होती हैं, इसे सुनकर चन्द्रमा प्रस्त्रवित होता है ।
कई स्थानों पर वाक्यार्थ अधूरा भी जान पड़ता है :(१) जसु हत्थ करवाल विप्पक्खकुलकाल ।
सिर सोह वर छत्त संपुण्णससिमत्त ।। (१.१८२) जिणि आसावरि देसा दिण्हउ सुत्थिर डाहररज्जा लिण्हउ ।
कालंजर जिणि कित्ती थप्पिअ धणु आवज्जिअ धम्मक अप्पिअ ॥ (१.१२८). $ १२०. प्रा० पैं. की भाषा में प्रायः छन्दोनुरोध से सत्तार्थक क्रिया का लोप पाया जाता है। वैसे न० भा० आ० में प्रायः सत्तार्थक क्रिया का लोप पाया जाता है तथा यह विशेषता द्राविड़ परिवार में भी है। यह लोप सत्तार्थक स्थलों के अतिरिक्त वर्तमानकालिक कृदंतों (वर्तमानकालिक समापिका क्रियागत प्रयोग) तथा निष्ठा प्रत्ययों के साथ प्रायः देखा जाता है। दो-चार उदाहरण दिये जा रहे हैं :(१) सत्तार्थक क्रिया का लोप :
सो माणिअ पुणवंत जासु भत्त पंडिअ तणअ । जासु घरिणि गुणवंति सो वि पुहवि सग्गह णिलअ ॥ (१.१७१) उच्चउ छाअण विमल घरा तरुणि घरिणी विणअपरा ।
वित्तक पूरल मुद्दहरा वरिसा समआ सुक्खकरा ॥ (१.१७४) (२) वर्तमानकालिक कृदंत का सत्तार्थक सहायक क्रिया रहित प्रयोग :
(क) चलंत जोह मत्त कोह रण्ण कम्म अग्गरा । (२.१६९) (ख) णं सग्गा मग्गा जाए अग्गा लुद्धा उद्धा हेरंता । (२.१७५) (ग) बाला वुड्डा कंपंता । (२.१९५) (घ) वह पच्छा वाअह लग्गे काअह सव्वा दीसा झंपंता । (२.१९५) निष्ठा प्रत्यय का सत्तार्थक सहायक क्रिया रहित प्रयोग :(क) पाउस पाउ, घणाघण सुमुहि वरीसए । (१.१८८) (ख) भअ लुक्किअ थक्किअ वइरि तरुणि जण (१.१९०) (ग) गअ गअहि दुक्किअ तरणि, लुक्किअ,
तुरअ तुरअहि जुज्झिआ । (१.१९३) सत्तार्थक क्रिया के लोप का एक और उदाहरण यह है :
सुरअरु सुरही परसमणि, णहि वीरेस समाण । ओ वक्कल ओ कठिणतणु, ओ पसु ओ पासाण ॥ (१.७९)
? Sandesarasaka : (Study) $ 76, pp. 53-54 २. The omission of copula is preferred by both IA. and Dravidian. -0. D. B. L. Vol. I882. p. 177
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