Book Title: Prakritpaingalam
Author(s): Bholashankar Vyas, Vasudev S Agarwal, Dalsukh Malvania
Publisher: Prakrit Text Society Ahmedabad
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वाक्य-विचार
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६ १२१. न० भा० आ० की कथ्य प्रवृत्ति में प्रायः कर्ता + कर्म + क्रिया वाली वाक्यरचनात्मक प्रवृत्ति पाई जाती है। विशेषण प्रायः विशेष्य के पूर्व प्रयुक्त होता है, किंतु विशेषण 'विधेयांश' होने पर बाद में प्रयुक्त होता है। प्रा०पै० में छन्दोनुरोध से भाषा का सहज रूप तो नहीं मिलता, किंतु इस नैसर्गिक वाक्यप्रक्रिया के कई छुटपुट उदाहरण दिये जा सकते हैं :
ससहर सिर णिवसइ (१.१११), सुरसरि सिरमह रहइ (१.१११) सो तुम्हाणं सुक्ख दे (१.११९) जहि आसावरि देसा दिण्हउ (१.१२७)
सिअल पवण लहु वहइ (१.१३५), सोद्धा भअ पाअ पले (१.१४५), पत्थर वित्थर हिअला पिअला णिअलं ण आवेइ (१.१६६) ।
किंतु कई स्थानों पर पदक्रम की इस प्रक्रिया में जो उलटफेर दिखाई पड़ता है, वह केवल छन्दोनिर्वाहार्थ न होकर अवधारण (emphasis) के लिये गया जान पड़ता है। अवधारण के लिये कई बार किया को अथवा कर्म आदि अन्य वाक्यांशों को आदि में प्रयुक्त किया गया है। (१) अवधारणार्थ समापिका क्रिया या पूर्वकालिक किया का वाक्यादि में प्रयोग :
कोलसि उण उल्हसंत (१.७),
अरेरे वाहहि काण्ह णाव छोडि (१.९), किअउ कट्ठ हाकंद मुच्छि मेच्छहके पुत्ते (१.९२), पिंधउ दिढ सण्णाह वाह उप्परि पक्खर दइ (१.१०६), भमइ महुअर फुल्ल अरविंद (१.१३५), थप्पि जसु विमल महि (१.१५७), जिणइ णहि कोइ तुह तुलक हिंदु (१.१५७)
सहब कह, सुणु सहि, णिअल णहि कंत (१.१५६) । (२) अवधारणार्थ क्रियाभिन्न तथा कर्तृभिन्न अन्य पदों का आदि में प्रयोग :
कालंजर जिणि कित्ती थप्पिअ (१.१२८), सेर एक्क जइ पावउ चित्ता (१.१३०), टंकु एक्क जउ सैंधव पाआ (१.१३०), सव्व देस पिकराव वुल्लिअ (१.१३५),
चित्त मणोभव सर हणइ (१.१३५) ।
६ १२२. अपभ्रंश तथा न० भा० आ० में षष्ठी का कर्म-अधिकरण आदि कारकों में भी प्रयोग होने लगा है। प्रा० पैं० में अधिकरण में षष्ठी वाले-ह रूपों का प्रयोग छुटपुट देखा गया है :
हारव पलिअ रिउगणह काअरा (१.१५१ = हारवः पतितः रिपुगणे कातरे), वह पच्छा वाअह लग्गे काअह (२.१९५ = वहति पश्चिमो वातः लगति काये) । भावे सप्तमी के छुटपुट रूप प्रा० पैं० में निम्न हैं :कण्ण चलते कुम्म चलइ (१.९६), कुम्म चलंते महि चलइ (१.९६), महि अ चलते महिहरु (चलइ) (१.९६), चक्कवइ चलंते चलइ चक्क तह तिहुवणा (१.९६) । १२३. कर्मवाच्य निष्ठा प्रत्ययों का भूतकालिक क्रियागत प्रयोग :
प्राकृत काल में ही निष्ठा प्रत्ययों का भूतकालिक समापिका क्रिया के लिये प्रयोग चल पड़ा है। न० भा० आ० में वर्तमान कृदंतों तथा निष्ठा कृदंतों का समापिका क्रियार्थे प्रयोग खास विशेषता है। विद्वानों ने इसे आर्य भाषा-परिवार
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