Book Title: Prakritpaingalam
Author(s): Bholashankar Vyas, Vasudev S Agarwal, Dalsukh Malvania
Publisher: Prakrit Text Society Ahmedabad
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शब्द-समूह
६ १२५. न० भा० आ० का शब्द-समूह अनेकों तत्त्वों से संवलित है। इसमें जहाँ संस्कृत के तत्सम, अर्धतत्सम तथा तद्भव शब्द पाये जाते हैं, वहाँ अनेक देशी तथा विदेशी शब्द भी पाये जाते हैं। प्रा० पैं० की भाषा में विदेशी शब्द भी पाये जाते हैं। प्रा०पैं० की भाषा में विदेशी शब्दों की बहुतायत है। संस्कृत के तत्सम, अर्धतत्सम तथा तज्जनित तद्भव शब्दों में सभी भा० यू० शब्दावली न होकर अनेक स्रोतों की देन है। संस्कृत के अनेक शब्द मुण्डा परिवार तथा द्राविड़ परिवार की देन हैं । उदाहरणार्थ, उंदुरु, जंबाल, कास, मातंग, अंगना, तांबूल, जैसे शब्द मुण्डा भाषा-परिवार से संस्कृत में आये हैं। द्राविड़ भाषा-परिवार ने संस्कृत शब्दावली को कहीं अधिक समृद्ध बनाया है। कुछ द्राविड़ शब्दों का नमूना यह है :
अर्क, कंक, कज्जल, कटु, कठिन, करीर, कलुष, कुटी, कुटिल, कुण्ड, कुन्तल, कोटर, कोण, केतक, कोरक, गण्ड, गुड, दण्ड, निबिड, पेटिका (<पेट्ट), पंडित, बल, बिडाल, मयूर, माला, मीन, मुकुट, वलय ।
वैदिक भाषा में अनार्य भाषाओं के शब्द कम मिलते हैं, किंतु परवर्ती परिनिष्ठित संस्कृत में बढ़ते गये हैं तथा प्राकृत-काल में अधिकाधिक संख्या में खप गये हैं। इसीलिए न० भा० आ० के जिन शब्दों का मूलस्रोत ज्ञात नहीं होता, उन्हें अनार्य स्रोत से लिया मान लिया जाता है। जैसा कि बीम्स ने कहा है :- "फलतः संस्कृत में ही कुछ ऐसे शब्द मिलते हैं, जिनकी आकृति अनार्य जान पड़ती है, तथा ऐसे शब्दों की संख्या न० भा० आ० में और अधिक है; इसीलिए (भाषा वैज्ञानिकों में) उन शब्दों को अनार्य स्रोत से संबद्ध करने का लोभ पाया जाता है, जिनका उद्भव आर्य परिवार के आरंभ से जोड़ा जाना कठिन है।"३ मूर्धन्य ध्वनि से आरंभ होने वाले सभी संस्कृत शब्द तथा न० भा० आ० शब्द भा० यू० नहीं है । 'टंक, टंकार, टीका, टिप्पणी, डमर, डमरु, डाकिनी, डिंडिम, डिंब, डिंभ, ढक्का, ढुंढि, /ढौक, ढोल' जैसे शब्द या तो द्राविड़ (अथवा मुंडा) हैं, या इनमें कुछ ध्वन्यनुकरणात्मक (onomatopoetic) शब्द हैं । प्रायः सभी आरंभिक मूर्धन्य ध्वनि वाले न० भा० आ० शब्दों के साथ वही बात लागू होती है, जो ट्रम्प ने अपने "सिंधी भाषा के व्याकरण" में सिंधी शब्दों के लिए कही है :- "मूर्धन्य ध्वनि से आरंभ होने वाले लगभग तीन-चौथाई सिंधी शब्द किसी आदिम अनार्य भाषा से लिये गये हैं, जिसे इधर सीथियन कहा जाने लगा है, लेकिन उसे तातार कहना ज्यादा ठीक होगा ।"४
$ १२६. प्राकृत तथा न० भा० आ० में ध्वन्यनुकरणात्मक शब्दों की संख्या अधिकाधिक बढ़ती गई है। वैदिक संस्कृत में ये शब्द कम मिलते हैं, परिनिष्ठित संस्कृत में ये वस्तुतः कथ्य म० भा० आ० का प्रभाव है। मुण्डा भाषापरिवार की यह खास विशेषता है तथा संभवतः यह आर्य भाषा-परिवार पर कोल या मुण्डा भाषा-परिवार का प्रभाव है। वैसे ध्वन्यनुकरणात्मक शब्दों की बहुतायत द्राविड़ भाषा-परिवार में भी पाई जाती है। वैदिक संस्कृत में इस कोटि के शब्दों की अत्यधिक न्यूनता तथा म० भा० और न० भा० आ० में उनकी अभिवृद्धि' निश्चित रूप में बाहरी प्रभाव है। प्रा० पैं० में निम्न ध्वन्यनुकरणात्मक शब्द मिलते हैं :
१. "T. Burrow : Sanskrit Language, p. 378 २. Ibid : pp. 380-86 3. "There are consequently to be found even in Sanskrit some words which have a very non-Aryan
look, and the number of such words is much greater in the modern languages, and there exists, therefore, a temptation to attribute to non-Aryan sources any words whose origin it is difficult to trace from Aryan beginnings." - Beames: A Comparative Grammar of the Modern Aryan Languages of India $ 3, p. 9 (London.
1872) 8. Trumpp: Grammar of the Sindhi Language. quoted by Caldwell p. 60 4. Vedic is remarkably poor in onomatopoetics; as we come down to MIA., and NIA., the number
and force of onomatopoetics is on the increase. -0. D. B. L. Vol. IS 81 (e), p. 175
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