Book Title: Prakritpaingalam
Author(s): Bholashankar Vyas, Vasudev S Agarwal, Dalsukh Malvania
Publisher: Prakrit Text Society Ahmedabad
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२. १५१ ]
वर्णवृत्तम्
जहा,
जे तीअ तिक्खचलचक्खुतिहाअदिट्ठा, ते काम चंद महु पंचम मारणिज्जा । जेसं उणो णिवडिआ सअला वि दिट्ठी, चिट्ठति ते तिलजलंजलिदाणजोग्गा ॥ १५१ ॥
[वसंततिलका]
१५१. उदाहरण:
उस नायिका ने जिन लोगों को अपने तीक्ष्ण तथा चंचल नेत्रों के त्रिभाग से भी देखा है; उन्हें कामदेव, चंद्रमा, वसंत और कोकिला का पंचम स्वर शीघ्र ही मार डालेंगे। और जिन लोगों पर उसकी पूरी दृष्टि पड़ गई, वे तो तिलजलांजलि देने के योग्य है (वे तो मरे ही हैं) ।
टिप्पणी- तीअ < तस्याः (दे० पिशेल ९४२५ पृ. ३००) ।
मारणिज्जा < मारणीयाः ( इज्ज< सं० अनीयर् ) ।
जेसं < येषां । निवडिआ < निपतिता ।
चिट्ठति
तिष्ठति ।
(यह पद्य कर्पूरमंजरी के द्वितीय यवनिकांतर का पाँचवाँ पद्य है, भाषा प्राकृत है ।) चक्रपद छंदः
संभणिअ चरण गण पलिअ मुहो, संठविअ पुणवि दिअवरजुअलो ।
जं करअलगण पत्र पअ मुणिओ, चक्कपअ पभण फणिवइ भणिओ ॥ १५२ ॥
[ १४१
१५२. जहाँ आरंभ (मुख) में, चरण गण (भगण) गिरे, उसे कह कर पुनः दो द्विजवर (दो बार सर्वलघ्वात्मक चतुर्मात्रिक) को स्थापित कर, प्रत्येक चरण के अंत में करतल गण (सगण) समझा जाय, फणिपति के द्वारा कथित उस छंद को चक्रपद कहो ।
(चक्र पदः - 5।।।।।।।।।।।।5=१४ वर्ण) ।
टिप्पणी-संभणिअ< संभण्य, पूर्वकालिक क्रिया ।
संविअ < संस्थाप्य, पूर्वकालिक क्रिया ।
पलिअ < पतितः, कर्मवाच्य भूतकालिक कृदंत रूप ।
मुणिओ < मतः (ज्ञातः) भणिओ < भणितः, कर्मवाच्य भूतकालिक कृदंत । पण - आज्ञा म० पु० ए० व० ( प + / भण+0)
जहा,
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खंजणजुअल णअणवर उपमा, चारुकणअलइ भुअजुअ सुसमा ।
फुल्लकमलमुहि गअवरगमणी, कस्स सुकिअफल विहि गढु तरुणी ॥१५३॥ [ चक्रपद ]
१५३. उदाहरण:
जिसके नेत्रों की श्रेष्ठ उपमा दो खंजन है, तथा सुंदर कनकलता के समान दोनों हाथ है; प्रफुल्लित कमल के समान मुखवाली, गजवरगमना, वह रमणी विधाता ने किसके पुण्य के लिए गढी है ?
गढ़ - घटिता
टिप्पणी - विहि< विधिना, करण ए० व० के अर्थ में प्रातिपदिक का प्रयोग । घडिआ > घडिअ घडु > गदु । प्राणता ( aspiration) का विपर्यय ( Metathesis)। १५१. 'हाअ' – K. “हाब' । जेसं - C. जेसुं । णिवडिआ - A. णिविडिआ, B. N. णिवडिआ, C. K. णिवडिदा । चिट्ठति - C. O. वट्टन्ति । जलंजलि - A. 'जलंजलो । १५२. पलिअमुहो - C. एतत्पदं न प्राप्यते । करअलगण - A. करतल गण, C. करअ सगण । चक्कपअ... भणिओ- B. चक्कपअअ भणु', N 'चक्कपअह भण०, C. 'फणिवइवर भणिओ । १५३. खंजण' - C. खंजणउ । सुसमा - A. सूसमा, B. एतत्पदं न प्राप्यते । कस्स-C. तुम्ह। सुकिअ - A. सूकिअ । विहि-C. विहु । गढ़-B. गढ. K. गठु । तरुणी -0. रमणी ।
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