Book Title: Prakritpaingalam
Author(s): Bholashankar Vyas, Vasudev S Agarwal, Dalsukh Malvania
Publisher: Prakrit Text Society Ahmedabad
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प्राकृतपैंगलम्
(ई) प्राकृतपैंगलम् में काशी के गहड़वाल राजा जयचन्द्र के महामंत्री विद्याधर' की रचनायें भी मिलती हैं। काशीराज से संबद्ध समस्त पद्यों को राहुलजी ने विद्याधर की ही रचना मानी है जयचंद्र का राज्यकाल २०७० - ९४ ई० था, अतः विद्याधर की ये रचनायें बारहवीं शती के अंतिम चरण की है। इस प्रकार भी प्राकृतपैंगलम् १२ वीं शती के बाद ही रचना सिद्ध होती है ।
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(3) प्राकृतपैंगलम् के उदाहरण भाग में ८ पद्यों में हम्मीर का उल्लेख है। यह हम्मीर, श्री चन्द्रमोहन घोष के मतानुसार मेवाड़ का राजा था, जिसका शासन काल १३०२ ई० में आरंभ हुआ था, तथा उसने ६४ वर्ष तक राज्य किया था । वस्तुतः राजस्थान में ठीक इसी समय दो हम्मीर हो चुके हैं। वैसे 'हम्मीर' शब्द मूलतः फारसी के 'आमीर' शब्द का संस्कृत रूप है, तथा इतिहास में इनसे अतिरिक्त अन्य 'हम्मीरों' का भी पता चलता है। किंतु ऐसा जान पड़ता है कि प्राकृतपैंगलम् वाला हम्मीर रणथम्भौर का राजा था, जिस पर अलाउद्दीन खिलजी ने आक्रमण किया था, और जो खिलजी से युद्ध करते हुए मारा गाया था । हम्मीर से यह युद्ध खिलजी बादशाह के राज्यारोहण के १८ वर्ष पश्चात् हुआ था । इस तथ्य की पुष्टि नयचन्द्र के काव्य तथा अमीर खुसरो के 'तारीखे आलई' से होती है। हम्मीर १३०१ ई० में वीरगति को प्राप्त हुआ था । इस प्रकार 'प्राकृतपैंगलम्' का संग्रहकाल १३०१ ई० के बाद जान पड़ता है। डा० घोषाल इस तिथि से लगभग पचास वर्ष बाद अर्थात् १३५१ ई० को प्राकृतपैंगलम् की उपरितम समय सीमा मानते है ।
किंतु ऐसा भी हो सकता है कि प्राकृतपैंगलम् का संग्रह हम्मीर के ही किसी समसामयिक कवि (बंदीजन ) ने किया हो, तथा हम्मीर से संबद्ध पद्य इसी संग्राहक की स्वयं की रचना हों। प्रस्तुत ग्रंथ में हम्मीर से संबद्ध पद्यों की संख्या पर्याप्त है, तथा यह संख्या संग्राहक के हम्मीरगत अभिनिवेश का संकेत करती है। यह अनुमान सत्य के अधिक नजदीक जान पड़ता है कि हम्मीर संबंधी पद्यों की रचना के कुछ ही समय बाद -१५ या २० वर्ष के बीच में हीप्राकृतपैंगलम् का प्रथम संकलन हो चुका था। यह संग्राहक हम्मीर का स्वयं का भाट (बंदीजन ) था, तथा 'जज्जल' के नाम से प्रसिद्ध 'प्राकृतपैंगलम्' वाला पद्य तथा अन्य सभी हम्मीरसंबंधी पद्य उसी की रचना हैं । इस प्रकार मैं 'प्राकृतपैंगलम्' की उपस्तिम समय-सीमा कम से कम १३०१ ई० से बाद की मानने को तैयार नहीं हूँ।
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(ऊ) 'प्राकृतपैगलम्' में एक पद्य हरिब्रह्म नामक कवि की रचना है, जो चंडेश्वर को वीरता से संबद्ध है। ये चंडेश्वर कौन थे ? इतिहास से ज्ञात होता है कि ये चंडेश्वर ठकुर मिथिला के राजा हरिसिंह (अथवा हरसिंह) के मंत्री थे, जिन्होंने "कृत्यरत्नाकर", "कृत्यचिन्तामणि", "दानरत्नाकर" आदि ग्रन्थ लिखे थे। राजा हरिसिंह की दिल्ली के बादशाह गयासुद्दीन तुगलक के साथ लड़ाई हुई थी। प्रसिद्ध इतिहासकार फ़रिश्ता के अनुसार गयासुद्दीन तुग़लक तथा तिरहुत के राजा में युद्ध हुआ था, जिसमें राजा पराजित होकर जंगल में भग गया। इसकी पुष्टि चंडेश्वर ठक्कुर तथा ज्योतिरीश्वर ठक्कुर के विवरणों से भी होती है। गयासुद्दीन तुग़लक का शासन काल १३१०-१३२४ ई० है अतः स्पष्ट है कि राजा हरिसिंह नेपाल की तराई में इन्हीं दिनों चले गये थे । डा० चाटुर्ज्या तथा श्री बबुआ मिश्र ने इस संबंध में मिथिला में प्रचलित परंपरागत पद्य को भी उद्धृत किया है :
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बाणाब्धि- बाहु-शशि- सम्मित- शाकवर्षे, पौषस्य शुक्लदशमी क्षितिसूनु बारे ।
त्यक्ता ( क्त्वा) स्व-पट्टन पुरी हरिसिंहदेवो (हरसिंहदेवो ?), दुर्दैव-देशितपथे गिरिमाविवेश ॥
उपर्युद्धृत पद्म की घटना १२४३ शके या १३२३ ई० की है। हरिसिंहदेव का शासन काल इस प्रकार १४
१. राहुल सांकृत्यायन हिंदी काव्यधारा पृ० ३९६
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२. Dr. Altekar the History of Rastrakutas p. 128
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3. In some cases the court-poets described the incidents forthwith and could hardly brook any loss of time in magnifying and distorting historical facts. But disregarding such particular instances we must take into consideration the fact that since the Prakrit-paingala is a compilation and it presupposes the existance of some works from which the heroic descriptions of Hammira have been quoted, a considerable period must have been between the heroic deeds of Hammira and the appearance of this metrical treatise.
Dr. S. N. Ghosal: The Date of the Prakrit-paingala. I. H. Q. March 1949, p. 55 8. Dr. Chatterjea: Varna Ratnakara. (Introduction) p. XVII.
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