Book Title: Prakritpaingalam
Author(s): Bholashankar Vyas, Vasudev S Agarwal, Dalsukh Malvania
Publisher: Prakrit Text Society Ahmedabad
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प्राकृतपैंगलम्
कहना न होगा, ये वे ही कीर्तिसिंह हैं, जिनकी प्रशस्ति में विद्यापति ठक्करने 'कीर्तिलता' और 'कीर्तिपताका' नामक काव्यद्वय की रचना की थी । स्पष्ट है, दामोदरमिश्र विद्यापति के समसामयिक थे तथा विद्यापति के समय 'प्राकृतपैंगलम्' एक आकर ग्रन्थ के रूप में ब्रह्मभट्टों से बाहर के पंडितों में भी मान्य हो चुका था। इस मान्यता को प्राप्त करने के लिए एक शताब्दी अवश्य अपेक्षित है। प्राकृतपैंगलम् की टीका में लक्ष्मीनाथ ने 'वाणीभूषण' को स्थान स्थान पर उद्धृत किया है। इतना ही नहीं, 'प्राकृतपैंगलम्' के प्राचीनतम टीकाकार रविकर हैं। ये रविकर हरिहर के पुत्र थे, तथा इनकी वंशपरंपरा ऑफ्रेक्ट ने यों दी हैं । १
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शूलपाणि T
रत्नाकर
I
दोहवि
चण्डेश
भीमेश्वर
1
हरिहर
I रविकर
रविकर के दो ग्रन्थ ऑफ्रेक्ट ने संकेतित किये हैं, (१) पिंगलसारविकाशिनी, तथा (२) वृत्तरत्नावली ऑफ्रेक्ट की दी हुई वंशपरंपरा परिशिष्ट १ में प्रकाशित रविकर की टीका के अंतिम दो पद्यो से मिलती है । एक 'रविकर' का संकेत एक पद्य में 'वाणीभूषण' में भी मिलता है
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“दीर्घघोषकुलदेवदीर्घिकापङ्कजं रविकरो व्यराजत ।
ईर्ष्ययेव दुहितुः पयोनिधेर्यत्र वासमकरोत्सरस्वती ॥ २"
तो, क्या ये रविकर - संभवत: दामोदर के पिता या पितृत्व- 'प्राकृतपैंगलम्' के टीकाकार से अभिन्न है ? 'वाणीभूषण' के संपादक पं० शिवदत्त ने इन्हें ऑफ्रेक्ट वाले रविकर ही माना है। ये रविकर जैसा कि स्पष्ट है, हरिहर के पुत्र थे । तो, क्या रविकर के पिता हरिहर तथा हमारे 'प्राकृतपैंगलम्' वाले कवि हरिब्रह्म भी एक है ? ये दोनों अभिन्न जान पड़ते हैं । इस प्रकार भी रविकर का काल दामोदर (१३७५ - १४५०) से लगभग २५ वर्ष पुराना १३५०१४०० ई०, जान पड़ता है, तथा इस तरह भी 'प्राकृतपैंगलम्' का संकलन- काल कम से कम चौदहवीं शती का प्रथम चरण मानना ही पड़ता 1
(आ) इस संपादन के पूर्व प्रकाशित टीकाओं में प्राकृतपैंगलम् की प्राचीनतम टीका लक्ष्मीनाथ भट्ट का 'पिगलार्थप्रदीप' है, जिसका रचनाकाल १६०० ई० (१६५७ वि०) है। इस प्रकार 'प्राकृतपैंगलम्' यों भी इस टीका से बहुत पुराना होना चाहिए ।
(इ) 'प्राकृतपैंगलम्' का उल्लेख १७वीं शती के एक अन्य ग्रन्थ में मिलता है, यह ग्रन्थ है, मार्कण्डेय का 'प्राकृतसर्वस्व' । 'प्राकृतसर्वस्व' के सूत्रों के स्पष्टीकरण में 'प्राकृतपैंगलम्' के अनेक पद्य उद्धृत हैं ।
१. Aufrecht : Catalogus Catalogorum p. 493
२. रथोद्धता के उदाहरण के रूप में उद्धृत पद्य । वाणीभूषण, द्वितीय परि० पद्य १२६ (पृ. ३६) । ३. दे० वही पृ० ३६, पादटि० २ ।
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