Book Title: Prakritpaingalam
Author(s): Bholashankar Vyas, Vasudev S Agarwal, Dalsukh Malvania
Publisher: Prakrit Text Society Ahmedabad
View full book text
________________
ध्वनि-विचार
लिपि-शैली और ध्वनियाँ
६४६. प्राकृतपैंगलम् के उपलब्ध हस्तलेखों में लिपि-शैलीगत विचित्रता एवं विभिन्नता दृष्टिगोचर होती है। यहाँ तक कि एक ही हस्तलेख में कहीं कहीं अनेकरूपता परिलक्षित होती है। इस प्रकार हस्तलेखों की वर्तनियाँ समस्या उत्पन्न कर देती है। यह विचित्रता प्राकृतपैंगलम् के हस्तलेखों की ही विशेषता न होकर प्रायः अपभ्रंश हस्तलेखों की अपनी खास विशेषता रही है, जिसका संकेत अल्सदोर्फ तथा याकोबी ने भी किया है और संदेशरासक का संपादित संस्करण उपस्थित करते समय श्री भायाणी ने भी इसका संकेत किया है। यह विचित्रता लिपिकार की अपनी कथ्य विभाषा के साक्षात् प्रभाव के कारण दिखाई पड़ती है, जहाँ कभी-कभी एक ही पद के वैकल्पिक उच्चरित प्रचलित होते हैं। साथ ही इसका एक कारण, प्राकृतपैंगलम् के सम्बन्ध में यह भी माना जा सकता है कि ये विविध रूप कतिपय उदाहरणों में भाषा की गतिमत्ता का संकेत देते जान पड़ते हैं, जहाँ परिनिष्ठित प्राकृत, परिनिष्ठित अपभ्रंश एवं संक्रांतिकालीन भाषा के विविध रूप उपलब्ध हैं। साथ ही इस ग्रन्थ की वर्तनियों पर जहाँ कुछ स्थानों पर संस्कृत की वर्तनियों का प्रभाव पड़ा है, वहाँ कतिपय स्थानों पर प्राकृत ध्वनिसंस्थान का भी पर्याप्त प्रभाव है। ये कारण भी वर्तनियों को प्रभावित करने में समर्थ हैं । प्राकृतपैंगलम् में विविधकालिक पद्यों का संग्रह होने से तथा उपलब्ध हस्तलेखों के परवर्ती होने से भी लिपिशैली में परिवर्तन हो गया है, जिससे उस काल के वास्तविक उच्चरित रूप की अभिव्यक्ति इनसे बिलकुल ठीक हो रही है, यह आशा भी नहीं की जा सकती । डा० चाटुा ने 'वर्णरत्नाकर' की भूमिका में उसकी लिपिशैली का संकेत करते समय ठीक यही बात कही है :-"यतः प्रस्तुत हस्तलेख १६ वीं शती के आरम्भ की तिथि से अंकित है, अत: इसकी लिपिशैली से १४वीं शती के उच्चरित को पूर्णतः व्यक्त करने की आशा नहीं की जा सकती ।"२ हम यहाँ प्राकृतपैंगलम् के उपलब्ध विभिन्न हस्तलेखों की लिपि-शैली की इन कतिपय विशेषताओं का संकेत अनुपद में करने जा रहे हैं। .. ६ ४७. प्राकृतपैंगलम् में निम्न ध्वनियाँ पाई जाती हैं :स्वर : अ, आ, इ, ई, उ, ऊ ।
ऐ, ए, अ ओ। व्यंजन : क ख ग घ
च छ ज झ ट ठ ड (ड) ढ ण (ह) । त थ द ध (न) (न्ह) । प फ ब भ म (म्ह) । य र ल व (ल्ह) ।
प्राकृतपैंगलम् की भाषा में ह्रस्व, ए, ओ के अस्तित्व का पता चलता है, किंतु हस्तलेखों में इनके लिये विशिष्ट लिपिसंकेत नहीं मिलते । संस्कृत में ह्रस्व ऐ, ओ ध्वनियाँ नहीं पाई जाती, किंतु म० भा० आ० में ये ध्वनियाँ पाई जाती थीं । पिशेल ने संकेत किया है कि प्राकृत-काल में ह्रस्व ए, ओ ध्वनियाँ थीं । इन ऐ, ओ का विकास ऐ, औ, ए-ओ, इ-उ कई स्रोतों से हुआ देखा जाता है, तथा संयुक्त व्यञ्जन ध्वनि से पूर्व ए-ओ नियत रूप से ह्रस्व (विवृत) उच्चरित किये जाते थे। डा० टगारे ने भी अपभ्रंश-काल में ह्रस्व ऐ, ओ की सत्ता मानी है, तथा इस बात का भी संकेत १. Sandesarasaka : (Study)$ 1. २. Varnaratnakara : (Introduction) $ 1. p. xxxviii. 3. Pischel : Prakrit Sprachen $ 84, § 119.
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org