Book Title: Prakritpaingalam
Author(s): Bholashankar Vyas, Vasudev S Agarwal, Dalsukh Malvania
Publisher: Prakrit Text Society Ahmedabad
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प्राकृतपैंगलम् उक्त टीकाओं में लक्ष्मीनाथ तथा वंशीधर की टीकायें विशेष महत्त्वपूर्ण हैं। ऑफेक्ट ने अन्य टीकाओं का भी उल्लेख किया है; जैसे वाणीनाथ की 'प्राकृतपिंगलटीका' । कलकत्ता संस्कृत कॉलेज की हस्तलेख-सूची में एक अन्य टीका का भी उल्लेख है, जिसका एक हस्तलेख (१८१४३", पृष्ठ संख्या १४७) वहाँ है । यह हस्तलेख वंगीय अक्षरों में है। इस हस्तलेख में मूलग्रन्थ के साथ पंडित मकरध्वज के पुत्र श्रीहर्ष की 'तत्त्वदीपिका' नामक टीका है। टीका का रचनाकाल अज्ञात है।
इस संस्करण के परिशिष्ट भाग में हम तीन टीकायें प्रकाशित कर रहे हैं । परिशिष्ट (१) में प्रकाशित रविकरकृत 'पिंगलसारविकाशिनी' प्राचीनतम टीका होने के कारण सर्वप्रथम प्रकाशित की जा रही है। परिशिष्ट (२) में निर्णयसागर संस्करणवाली लक्ष्मीनाथ भट्ट कृत टीका ‘पिंगलार्थप्रदीप' प्रकाशित की जा रही है, जो इस ग्रंथ की दो महत्त्वपूर्ण टीकाओं में एक है। परिशिष्ट (३) की वंशीधर कृत 'पिंगलप्रकाशटीका' कलकत्ता संस्करण में प्रकाशित चारों टीकाओं में श्रेष्ठतम है; अत: उसको देना भी आवश्यक समझा गया है। प्रस्तुत संस्करण की आधारभूत सामग्री
९. 'प्राकृतपैंगलम्' के हमें दो प्रकाशित संस्करण उपलब्ध हैं। इनमें प्राचीनतम संस्करण म० म० पं० शिवदत्तजी दाधिमथ के द्वारा निर्णयसागर प्रेस, बंबई से काव्यमाला के अंतर्गत सन् १८९४ में प्रकाशित किया गया था। इस संस्करण का आधार दो हस्तलेख थे। प्रथम हस्तलेख अलवर के राजपंडित श्री रामचन्द्रशर्मा का था, जिसके साथ रविकर की 'पिंगलसारविकाशिनी' टीका भी थी। काव्यमाला संस्करण में पादटिप्पणी में रविकरसम्मत पाठान्तर तथा टीका के कुछ संकेत दिये गये हैं। दूसरा हस्तलेख, जिस पर मुख्यत: यह संस्करण आधृत था, जयपुर के वैद्य लच्छीराम जी का था, जिसके साथ लक्ष्मीनाथ भट्ट की टीका 'प्रदीप' भी थी। काव्यमाला संस्करण में ग्रन्थ के साथ लक्ष्मीनाथभट्ट की टीका अविकल प्रकाशित की गई है। ये दोनों हस्तलेख किस समय के हैं, कोई संकेत नहीं मिलता, किंतु इतना स्पष्ट है कि ये दोनों १७ वीं शती के बाद के होंगे। ये दोनों हस्तलेख निश्चितरूपेण पश्चिमी प्रदेश की हस्तलेखात्मक प्रवृत्तियों से युक्त हैं तथा इन पर संस्कृत वर्तनी का पर्याप्त प्रभाव पाया जाता है, यथा अनुस्वार के स्थान पर सवर्ग पंचमाक्षर का प्रयोग। मैंने इन दोनों हस्तलेखों को प्राप्त करने की चेष्टा की, किन्तु मैं असफल रहा । वैसे इन दोनों हस्तलेखों के आधार पर संपादित संस्करण का मैंने पर्याप्त उपयोग किया है, तथा 'निर्णयसागर' प्रति (N.) के पाठान्तर को जयपुर वाले हस्तलेख का ही पाठान्तर समझना चाहिए । इस संबध में इतना कह दिया जाय कि पिशेल ने भी अपने 'ग्रामातीक' में इसी संस्करण का उपयोग किया है । इतना होने पर भी इस संस्करण में भाषावैज्ञानिक दृष्टि से कतिपय त्रुटियाँ पाई जाती हैं ।
दूसरा संस्करण श्रीचन्द्रमोहन घोष द्वारा 'बिब्लोथिका इंडिका' में सन् १९०० से १९०२ तक क्रमशः प्रकाशित किया गया था; जिसके साथ ४ टीकायें भी हैं, जिनका संकेत हम कर चुके हैं । यह संस्करण ८ हस्तलेखों के आधार पर संपादित किया गया था । इस संस्करण में सर्वप्रथम 'प्राकृतपैंगलम्' के पूर्वी एवं पश्चिमी दोनों प्रकार के हस्तलेखों का उपयोग किया गया था । इस संस्करण में प्रयुक्त हस्तलेखों का विवरण निम्न है :
A. संस्कृत कालेज, कलकत्ता के पुस्तकालय का हस्तलेख सं० ८१० । यह अत्यधिक प्राचीन हस्तलेख था, जो स्थूल एवं स्पष्ट देवनागरी अक्षरों में था । इसके साथ कोई टीका नहीं थी।
B. पंडित भगवतीचरण स्मृतितीर्थ के किसी पूर्वज के द्वारा १६९० शक संवत् में वंगाक्षरों में लिखा हस्तलेख, जो उनके निजी पुस्तकालय मिदनापुर जिला के गर्बेटा के पास बोगरी कृष्णनगर में था । यह हस्तलेख सम्पूर्ण था, किंतु साथ में कोई टीका नहीं थी।
C. एशियाटिक सोसायटी आव् बंगाल के पुस्तकालय का हस्तलेख सं०५२२ । यह हस्तलेख सम्पूर्ण तथा वंगाक्षरों में लिखा था । इसके साथ विद्यानिवास के पुत्र विश्वनाथ पंचानन की टीका थी ।
D. उक्त स्थान पर ही सुरक्षित राजकीय हस्तलेख सं० १३७० । यह बहुत बाद का आधुनिक हस्तलेख था, जो केवल 'मात्रावृत्त' तक था । इसमें 'वर्णवृत्त' वाला परिच्छेद नहीं था । यह हस्तलेख स्पष्ट देवनागरी अक्षरों में था ।
१. Aufrecht; Catalogus Catalogorum. pt. II p. 132 (First ed.) २. Catalogue of Calcutta Sanskrit College Manuscripts. (छन्दःप्रकरण p. 5)
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