Book Title: Prakritpaingalam
Author(s): Bholashankar Vyas, Vasudev S Agarwal, Dalsukh Malvania
Publisher: Prakrit Text Society Ahmedabad
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प्राकृतपैंगलम्
"नभाओ का पूर्णरूप से उदय हो जाने पर भी अपभ्रंश ( एवं कुछ अंशों में प्राकृत) की परम्परा बराबर चलती रही, ई० १५वीं शताब्दी के अन्त में संकलित 'प्राकृतपैंगल' इस बात का ज्वलन्त उदाहरण है।" (डा० चाटुर्ज्या : भारतीय आर्यभाषा और हिंदी) १
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(१०) "प्राकृतपैंगलम् ' प्राकृत छन्दः शास्त्र का एक ग्रन्थ है। यह विविध ग्रन्थों से संकलित संग्रह है, तथा यह संग्रह चौदहवीं शती के पूर्वभाग में ही पूर्ण हो गया जान पड़ता है।" (डी० सी० गांगुलिः)
(११) "छन्दः शास्त्र में एक प्राकृत ग्रन्थ उपलब्ध है, जो पिंगल के बहुत बाद में लिखा गया है, तथा 'प्राकृतपैंगल' के नाम से प्रसिद्ध है। इस निष्कर्ष के कारण है कि यह ग्रन्थ राजपूताना में तथा १४वीं शती में लिखा गया था।" (डा० हरप्रसाद शास्त्री) *
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(१२) "मैंने उक्त ग्रन्थ (प्राकृतपैंगलम् ) का समय १३५० - १३६९ के मध्य में माना है, जो याकोबी के अनुमान तथा संकेत से मेल खाता है।" (डा० घोपाल) *
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किन्तु इसके ठीक चार वर्ष पूर्व डा० घोषाल पहले इस निष्कर्ष पर पहुँचे थे कि 'प्राकृतपैंगलम्' का रचनाकाल १५वीं शती है तथा उन्होंने प्रो० गुणे एवं डा० सुनीतिकुमार चाटुर्ज्या के मत की पुष्टि की थी, जो १५वीं शती ही इसका रचनाकाल मानते हैं ।
इस प्रकार 'प्राकृतपैंगलम्' के विषय में तीन मत जान पड़ते हैं।
(१) इसकी रचना चौदहवीं शती के पूर्वार्ध में राजस्थान में हुई थी। श्री गांगुलि तथा म० म० हरप्रसाद शास्त्री
का मत ।
(२) इसका संग्रहकाल चौदहवीं शती का उत्तरार्ध है। - याकोबी, घोषाल आदि का मत ।
(३) इसका संग्रहकाल पन्द्रहवीं शती है । - प्रो० गुणे तथा डा० चाटुर्ज्या का मत ।
हमें प्रथम मत ही विशेष प्रामाणिक तथा वैज्ञानिक जान पड़ता है। 'प्राकृतपैंगलम्' का संग्रह मूल रूप में 'राजपूताना' में संभवत: 'रणथम्भौर' ही में 'हम्मीर के शासनकाल के आसपास किया गया था। हम्मीर के अलाउद्दीन के द्वारा हराये जाने पर वहाँ के भट्ट निराश्रित होकर पूर्व की ओर आ गये थे। 'प्राकृतपैगलम्' का मूल रूप भी उन्हीं दिनों इधर लाया गया, तथा इसका अन्तिम परिवर्धित रूप मिथिला-नेपाल के राजा हरिसिंहदेव के समय रणथम्भौर से आये 'ब्रह्मभट्ट के द्वारा किया गया, जिसमें हरिब्रह्म के चंडेश्वर से संबद्ध पद्य जोड़ दिये गये इस प्रकार 'प्राकृतपैंगलम्' का संग्राहक राजपूताना का ही था, इसका संग्रह भी सर्वप्रथम 'रणथम्भौर' में ही ईसा की चौदहवीं शती के प्रथम चरण (१३००-१३२५ ई०) में ही हो चुका था, बाद में कुछ अंश मिथिला में भी जोड़ा गया। हम 'प्राकृतपैंगलम्' के अन्तः साक्ष्य तथा बहि:साक्ष्य की दृष्टि से अब इसी पर विचार करेंगे।
$ ५. अन्तः साक्ष्यः
(अ) प्राकृतपैंगलम् एक संग्रह ग्रन्थ है, जिसमें गाथासप्तशती और सेतुबन्ध के एक एक तथा राजशेखर के
१. डा० चाटुर्ज्या : भारतीय आर्यभाषा और हिन्दी, पृ. १०६
R. D. C. Ganguli I. H. Q. Vol. XI. p. 565.
3. Mm. H. P. Sastri Priliminary Report on mss. of Bardic Chronicles. p. 18
४. Dr. S. N. Ghosal Translator's note (c) to the Eng. translation of Jacobi's introduction to 'Bhavisattakaha' (JOI. M. S. Univ. Baroda, vol. II-3. p. 242)
५. Dr. S. N. Ghosal: The date of the Prakrit - paingala. I. H. Q. March 1949, p. 57
६. जेण विणा ण जिविज्जइ अपुणिज्जइ सो कआवराहो वि
पत्ते वि णअरडाहे भण कस्स ण वल्लहो अग्गी ॥
(मात्रावृत्त ५५ पर उद्धृत)
७. जं जं आणेइ गिरिं रइरहचक्कपरिघट्टणसहं हणुआ ।
तं तं लीलाइ णलो वामकरत्थंहिअ रएइ समुद्दे ॥
(सेतुबंध पद्य १० - ४३. प्रा० पैं० में स्कन्धक के उदाहरण में १.७४ पर उद्धृत) ।
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