Book Title: Prakritpaingalam
Author(s): Bholashankar Vyas, Vasudev S Agarwal, Dalsukh Malvania
Publisher: Prakrit Text Society Ahmedabad
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१६६] प्राकृतपैंगलम्
[२.१९० ले वन चले गये; तथा जिन्होंने विराध को मारा एवं कबंध (नामक राक्षस) का हनन किया, जिन्हें हनुमान मिले, जिन्होंने बालि का वध किया तथा सुग्रीव को निष्कंटक राज्य दिया और समुद्र बाँधकर रावण का नाश किया, वे राघव तुम्हें निर्भय (अभय) प्रदान करें।
टिप्पणी-वप्पह-< *वस्तुः (वप्प+ह षष्ठी ए० व०) । उक्कि< उक्तिः, सिरे-सिर+ए, सप्तमी ए० व० । जिणि-< येन ।
लिज्जिअ-सं० नीता, यह वस्तुतः कर्मवाच्य रूप 'लिज्जई' से भूतकालिक कृदन्त रूप है। लिज्ज+इअ (=इआ) स्त्रीलिंग रूप ।
तेज्जिअ-< त्यक्ता; Vतज्ज+इअ, पूर्वकालिक क्रिया रूप ।
लग्गिअ-< लग्नौ (=लग्न), Vलग्ग+इअ, भूतकालिक कृदन्त Vलग्ग धातु सं० के भूत० कर्म० कृदन्त 'लग्नः' से विकसित हुआ है।
मिल्लिअ-(=मिलिअ) < मिलितः (Vमिल+इअ भूत० कर्म० कृदन्त); छन्दोनिर्वाहार्थ 'ल' का द्वित्व । सुग्गीवह-< सुग्रीवाय, 'ह' यहाँ सम्प्रदान (संबंध) का चिह्न है। शालूर छंदः
कणक्क पढम दिअ सरस सुपअ धुअ पअहि पलइ तह ठइअ वरं । सल्लूर सुभणि मणहरणि रअणिपहुवअणि कमलदलणअणि वरं । बत्तीसह कल पअ ठवह पअलिउ तह मह करअल दिअ विलअं ।
मत्ता वण सुललिअ छउ चउकल किअ कइ दिणअर भण भुअअपए ॥२१२॥ २१२. शालूर छंद का लक्षण :
हे रजनीप्रभुवदने (चन्द्रमुखि), हे कमलदलनयने, हे मनोहरणि, जिस छंद में एक कर्ण (55) पहले पड़े, तब चतुर्लघु (द्विज) गणों को स्थापित कर गुर्वन्त चतुर्मात्रिक गण (सगण ॥5) को स्थापित करे; उसे शालूर कहते हैं । इस छंद के प्रत्येक चरण में ३२ मात्रा स्थापित करे, तथा अंत में करतल (=सगण) प्रकटित होता है, और मध्य में द्विजगण (सर्वलघु चतुर्मात्रिक गण) हो । यह छंद मात्रा एवं वर्णों से सुललित (सुंदर) होता है । यहाँ छः सर्वलघु चतुष्कल किये हैं, ऐसा कविदिनकर (कविश्रेष्ठ) भुजगपति पिंगल कहते हैं ।
(शालूर 55, | x 6, 15 = २९ वर्ण, ३२ मात्रा) ।
जहा,
जं फुल्लु कमलवण वहइ लहु षवण, भमइ भमरकुल दिसि विदिसं । झंकार पलइ वण रवइ कुइलगण, विरहिअ हिअ हुअ दर विरसं । आणंदिअ जुअजण उलसु उठिअ मण, सरसणलिणिदल किअ सअणा ।
पल्लट्ट सिसिररिउ दिअस दिहर, भउ कुसुमसमअ अवतरिअ वणा ॥२१३॥ [शालूर] २१३. शालूर छंद का उदाहरण:
कोई कवि वसन्त का वर्णन कर रहा है:-आज वन में सरस-कमल दल के बिछौनेवाला वसन्त आ गया है, २१२. सुपअ-C. N. पअह । ठइअ-C. N. ठविअ । वरं-N. करं । ठइअ वरं-0. ठवि सुवरं । कलपअ-C. मत्त मउ, N. मउ पउ । ठवह-C. N. ठवहु । पअलि-N. वअलिअ । दिअविलअं-N. दिअगणअं। पए-C. परं। २१२-C. २१५, N. २८९, 0. २१५ । २१३. कुइल-A. B. कोइल, C. कोकिल, K. कुहिल । विरहिअ... C. विरहिहिआतरुअरु विरसं, N. विरहिअगणमुह अइविरसम् । पालट्ट-C. N. पल्लट्टि । उलसु-A. B. हुलसि । उलसु उठिअ मण-O. तविअ विरहि मण । दिअसN. दिवस । दिहस्-N. दिघर । अवतरिअ-N. अवअविअ। २१३-C. २१६, N. २९०, ०. २१६ ।
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