Book Title: Prakritpaingalam
Author(s): Bholashankar Vyas, Vasudev S Agarwal, Dalsukh Malvania
Publisher: Prakrit Text Society Ahmedabad
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२.१४५] वर्णवृत्तम्
[१३९ आछे < अस्ति (गुज० छे, पूर्वी राज० छै), सहायक किया । . जाइहि > यास्यति, भविष्यत् कालिक क्रिया प्र० पु० ए० ० । णत्थि <न+अस्ति=नास्ति । णआ (=णअ), कंता (=कंत), वसंता (=वसंत) छन्दोनिर्वाहार्थ पदांत स्वर का दीर्धीकरण । कंद छंद :
धआ तूर हारो पुणो तूर हारेण, गुरु सद्द किज्जे अ एक्का तआरेण ।
कईसा कला कंदु जंपिज्ज णाएण असो होइ चो अग्गला सव्व पाएण ॥१४५॥ १४५. जहाँ प्रत्येक चरण में क्रमश: ध्वज (लघ्वादि त्रिकल, I5), तूर्य (गुर्वादि त्रिकल ।), हार (गुरु), पुनः हार (गुरु) के साथ तूर्य (51) हो; तथा अंत में एक तगण के साथ गुरु तथा शब्द (लघु) किये जायें-कवीश नाग (पिंगल) ने कहा है कि इस कंद नामक छंद में सब चरणों में चार अधिक अस्सी अर्थात् चौरासी मात्रा होती हैं।
(कंद:-155155155155)=१३ वर्ण) टिo-किज्जे-< क्रियते, कर्मवाच्य रूप । जंपिज्ज-< जल्प्यते, धातु के कर्मवाच्य शुद्ध मूल का प्र० पु० ए० व० में प्रयोग ।
देइ भुअंगम अंत लहु तेरह वण्ण पमाण ।
चउरासी चउ पाअ कल कंद छंदु वर जाण ॥१४६॥ [दोहा) १४६. अंत में भुजंगम (गुरु) तथा लघु तेरह वर्ण प्रमाण से तथा चारों चरणों में ८४ मात्रा होने पर कंद छन्द जानो। टि०-देइ-< दत्त्वा, पूर्वकालिक क्रिया ।
चउरासी-< चतुरशीति (अर्धमा० चउरासीइं, चोरासीई, चोरासी, जैनमहा० चउरासीइं, चुरासीई, दे० पिशेल , ४४६) (हि० चौरासी, पू० राज. चोरासी) ।
जहा,
ण रे कंस जाणेहि हो एक्क बाला इ, हऊँ देवईपुत्त तो वंसकालाइ ।
तहा गेण्हु कंसो जणाणंदकंदेण, जहा हत्ति दिट्ठो णिआणारिविंदेण ॥१४७॥ [कंद] १४७. उदाहरण:
'हे कंस, यह न समझ कि मैं एक बालक हूँ, मैं तेरे वंश का काल देवकीपुत्र हूँ।' इस प्रकार कहकर जनानंदकंद श्रीकृष्ण ने कंस को इस तरह पकड़ा कि वह अपनी स्त्रियों के द्वारा मारा हुआ देखा गया ।
टिप्पणी-जाणेहि-वर्तमान म० पु० ए० व० । हउँ-उत्तमपुरुष वाचक सर्वनाम (दे० भूमिका) । गेण्हु <गृहीतः, कर्मवाच्य भूतकालिक कृदंत । ह त्ति < हत इति (=हअ त्ति) । छन्दोनिर्वाह के लिए 'अ' का लोप । दिट्ठा < दृष्टः । णिआणारिविदेण < निजनारीवृन्देण । 'णिआ' में आ का दीर्धीकरण छन्दोनिर्वाहार्थ । पंकावली छंदः
चामर पढमहि पाप गणो धुअ, सल्ल चरण गण ठावहि तं जुअ ।
सोलह कलअ पए पअ जाणिअ, पिंगल पभणइ पंकअवालिअ ॥१४८॥ १४५. धआ-N. धजा । गुरु...तआरेण-C. गुरु काहला कण्ण एक्केण पाएण। कईसा-N. कएसा । कंदु-C. छंदु । चो-A. चउ, B. चौ । १४५-C. १४२, N. १६३ । १४६. A. B.C. प्रतिषु निर्णयसागरसंस्करणे च न प्राप्यते । १४७. हो-B. N. हौ, C. हउ । बालाइ-C. बाला, N. वालाइ । हऊँ-K. मुहे । देवई-A. B. देवइ । गेण्हु-A. गण्हु, K. गण्ह, N. गेल। हत्ति-N. ह त्ति, K. हंति । दिट्ठो-C. K. दिट्ठो । विदेण-A. वृन्देण । १४८. गणो-A. B. गणा । धुअ-B. धुव । जुअ-A. B. ज्जुव। पए पअ-N. O. पआपअ, B. पअप्पअ । सोलह-A. सोल । पभणइ-B. पभणिअ । १४८-C. १४४ ।
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