Book Title: Prakritpaingalam
Author(s): Bholashankar Vyas, Vasudev S Agarwal, Dalsukh Malvania
Publisher: Prakrit Text Society Ahmedabad
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२.१३९] वर्णवृत्तम्
[१३७ १३८. उदाहरण:
कमल के समान नेत्रवाले, गिरिवरशयन, त्रिशूलधर, चन्द्रमा के तिलक वाले, तिनेत्र शिव, जिनके गले में गरल है, मुझे अभीष्ट वर दें ।
टिप्पणी-तिसुलधर-(=त्रिसूलधर, अर्धतत्सम रूप 'ऊ' का हस्वीकरण छन्दोनिर्वाहार्थ) । वितरऊ-अनुज्ञा प्र० पु० ए० व० । महु-< मह्यं (दे० तगारे ६ ११९ ए०, पृ. २०९) । सुंदरी छंदः
णगण चामर गंधजुआ ठवे, चमर सल्लजुआ जइ संभवे ।
रगण एक्क पअंतहि लक्खिआ, सुमुहि सुंदरि पिंगलदक्खिआ ॥१३९॥ १३९. हे सुमुखि जहाँ क्रमशः नगण, चामर (एक गुरु), गंधयुग (दो लघु) स्थापित किए जायँ, तथा फिर चामर (एक गुरु), शल्ययुग (दो लघु) हों, तथा अन्त में एक रगण लिखा जाय, उसे पिंगल ने सुन्दरी नामक छन्द (के रूप में) देखा हैं।
(सुन्दरी ||७|5515=१२ वर्ण) इसी को संस्कृत छन्दःशास्त्र में 'द्रुतविलंबित' कहते हैं:-"द्रुतविलम्बितमाह नभौ भरौ' । टि०-ठवे-< स्थाप्यते; संभवे < संभवति (संभवइ > संभवे) (वैकल्पिक रूप 'संहोइ' होगा)।
लक्खिआ-< लिखितः, दक्खिआ < दृष्टः =*दृक्षितः ये दोनों वस्तुतः 'लक्खिअ', 'दक्खिअ' के छंदोनिर्वाहार्थ दीर्घ रूप हैं।
जहा,
वहइ दक्खिण मारुअ सीअला रवइ पंचम कोमल कोइला ।
महुअरा महुपाण बहूसरा, भमइ सुंदरि माहव संभवा ॥१४०॥ [सुंदरी] १४०. उदाहरण:कोई सखी कलहांतरिता नायिका को मनाती कह रही है:
शीतल दक्षिण पवन बह रहा है, कोयल कोमल पंचम स्वर में कूक रही है। मधुपान के कारण अत्यधिक शब्द करते भौरे घूम रहे हैं, (सचमूच) वसंत उत्पन्न हो गया है।
टि०-बहूसरा-< बहुस्वराः । त्रयोदशाक्षर प्रस्तार, माया छंदः
कण्णा दुण्णा चामर सल्ला जुअला जं बीहा दीहा गंधअजुग्गा पअला तं ।
अंते कंता चामर हारा सहकाआ बाईसा मत्ता गणजत्ता भण माआ ॥१४॥ १४१. जहाँ प्रत्येक चरण में दुगुने कर्ण (दो गुरुद्वय अर्थात् चार गुरु), फिर चामर, दो शल्य (लघु) तब दो दीर्घ (गुरु) तथा दो गंध (लघु) प्रकट हों, पद के अन्त में सुंदर चामर तथा हार (दो गुरु) हों, तथा बाईस मात्रा हो, उसे शुभ शरीर एवं गुणयुक्त माया छन्द कहो । (माया:-55555155155=१३ वर्ण)
टि०-जं-< यत्र, तं<तां ।
पअला-< प्रकटिताः । १३९. सल्ल-C. सेल्ल। एक्क-B. एक । लक्खिआ-C. देखिआ। दक्खिआ-C. पेक्खिआ । १४०. मारुअ-A. माह। सीअलाA. सिअला । रवइ-K. गबइ । बहूसरा-C. महसुवा । भमइ-N. धरइ, C. तवइ, O. गवहि । सुंदरि-A. सुंदरि । माहवB. मावह । संभवा-B. संभरा । माहवसंभवा-C. संभर माहवा, N. संभममादरा । १४१. वीह दीह-C. दीहा वीहा, N. बीहा । पअला-C. पलिआ (=पतिताः) । तं-B. जं । कंता-C. कण्णा । सुकाआ-A. सूहकाआ । भणु-A. भणू ।
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