Book Title: Prakritpaingalam
Author(s): Bholashankar Vyas, Vasudev S Agarwal, Dalsukh Malvania
Publisher: Prakrit Text Society Ahmedabad
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१३४] प्राकृतपैंगलम्
[२.१२८ शब्द (लघु) हो, तथा अंत में तगण एवं गुरु हो-जिस छंद के प्रत्येक चरण में (इस प्रकार) चार योधा गण (गण) पड़े, नागराज कहते हैं, वह लक्ष्मीधर छंद है, ऐसा समझो ।
टि०-भणो-(भण का तुक के लिए विकृत रूप) < भणति । मुणो-आज्ञा'; म० पु० ए० व० (हि. मानो) । जहा,
भंजिआ मालवा गंजिआ कण्णला, जिण्णिआ गुज्जरा लुंठिआ कुंजरा ।
वंगला भंगला आड्डिआ मोड्डिआ, मच्छआ कंपिआ कित्तिआ थप्पिआ ॥१२८॥ [लक्ष्मीधर] १२८. कोई कवि किसी राजा का वर्णन कर रहा है :
उसने मालव देश के राजाओं को भगा दिया (हरा दिया), कर्णाटदेशीय राजाओं को मार दिया, गुर्जरदेशीय राजाओं को जीत लिया तथा हाथियों को लूट लिया; उसके डर से बंगाल के राजा भग गये, उड़ीसा के राजा ध्वस्त हो गये, म्लेच्छ काँप उठे तथा (इस प्रकार उसने) कीर्ति स्थापित की ।
टि०-भंजिआ-(भग्नाः), गंजिआ (=*गंजिताः), जिण्णिआ (जिता:), लुंठिआ (लुंठिताः), मोडिआ (मोटिता:), कंपिआ (कम्पिता:) कर्मवाच्य भूतकालिक कृदंत ब० व० ।
भंगला-कर्मवाच्य भूत० कृदंत ब० व० 'ल' प्रत्यय (दे० भूमिका) । थप्पिआ-< स्थापिता; कर्मवाच्य भू० कृदंत स्त्री० ए० व० ।
महापण्डित राहुल सांकृत्यायनने 'भंगला' को कृदन्त रूप न मानकर देश नाम का वाचक माना है, वे भंगला (=भागला) का अर्थ 'भागलपुर' करते हैं । (दे० हिन्दी काव्यधारा पृ. ३९८)
तोटक छंद:
सगणा धुअ चारि पलंति जही, भण सोलह मत्त विराम कही ।
तह पिंगलिअं भणिअं उचिअं, इह तोटअ छंद वरं रअं ॥१२९॥ १२९. जहाँ चार सगण पड़ें तथा सोलह मात्रा पर विराम (चरण समाप्त) हो, पैंगलिको ने उचित कहा है, यह श्रेष्ठ तोटक छन्द (पिंगल ने) बनाया है (तोटक:-1||SI5=१२ वर्ण)
टिप्पणी-पलंति-(=पडंति) < पतंति ।। जही-< यत्र । कही < कथित: > कहिओ > कहिअ > कही (ध्यान रखिये यह स्त्रीलिंग रूप नहीं है)। 'पिंगलिअं, भणिअं, उचिअं, वरं, अं' में छन्दोनिर्वाहार्थ अनुस्वार है।
जहा,
चल गुज्जर कुंजर तज्जि मही, तुअ बब्बर जीवण अज्जु णही ।
जइ कुप्पिअ कण्ण णरेंदवरा, रण को हरि को हर वज्जहरा ॥१३०॥ १३०. उदाहरण:
हे गुर्जरराज, हाथियों को छोड़कर पृथ्वी पर चल, बब्बर कहता है, आज तेरा जीवन नहीं (रहेगा), यदि नरेन्द्रों में श्रेष्ठ कर्ण कुपित हो जायँ, तो युद्ध में विष्णु कौन हैं, शिव कौन हैं, और इन्द्र कौन हैं ?
टिप्पणी-चल-आज्ञा म० पु० ए० व० ।
कुंजर-< कुंजरान्, कर्म ब० व० में प्रातिपदिक का प्रयोग । १२८. कण्णला-C. N. काणला । जिण्णिआ-N. णिज्जिआ। गुज्जरा N. कुक्कुडा । लुंठिआ-N. लुट्टिआ, 0. लूलिआ । कुंजरा-A. कुज्जरा । वंगला-N. वङ्गआ। भंगला-N. भङ्गआ। आड्डिआ-N. ओडिआ । माड्डिआ-C. मुडिआ, N. मोडिआ, 0. मुंडिआ । मच्छआ-A. मिच्छआ। कंपिआ-N. कण्णिआ । १२८-C. १२५ । १२९. धुअ-N. धुव । K. धुब । जहीB. जिही । भण-N. गण । पिंगलिअं-N. पिंगलअं। रइअं-N. रचितं । १३०. गुज्जर-N. गुञ्जर । कुंजर-A. कुञ्जर । तज्जिC. तज्जि । मही-0. देही । तुअ-B. रुह । कुप्पिअ-C. कोप्पिअ, N. कोपइ । रण-0. रणे।
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