Book Title: Prakritpaingalam
Author(s): Bholashankar Vyas, Vasudev S Agarwal, Dalsukh Malvania
Publisher: Prakrit Text Society Ahmedabad
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२.८४] वर्णवृत्तम्
[१२१ वहुलिआ-वधू-टी+का (वधूटिका) > अप० वहु+डी (ली)+आ (वहुडिआ), वहुलिआ-वहुलिया; इसमें एक साथ दो दो स्वार्थे प्रत्यय पाये जाते हैं। [तु० बहुरिया (कबीर)] | . बिंब छंदः. रअइ फणि बिंब एसो गुरुजुअल सव्वसेसो ।
सिरहि दिअ मज्झ राओ गुणह गुणिए सहाओ ॥८४॥ ८४. जहाँ सिर पर (पदादि में) द्विज (चतुर्लघ्वात्मक गण), मध्य में राजा (मध्यगुरु चतुष्कल; जगण) तथा शेष में दो गुरु दिये जायें, गुणियों के सहायक फणी (पिंगल) इसे बिंब कहते हैं (फणी ने इस बिंब छन्द की रचना की है); इसे गुणो (समझो) । बिंब:-||II, IS1, 55)।
टिप्पणी-सिरहि-< शिरसि, सिर+हि; अधिकरण कारक ए० व० । गुणहि-अनुज्ञा म० पु० ब० व० । जहा, . चलइ चल वित्त एसो णसइ तरुणत्तवेसो ।
सुपुरुसगुणेण बद्धा थिर रहइ कित्ति सुद्धा ॥८५॥ [बिंब] ८५. उदाहरण:
यह चञ्चल धन चला जाता है, तरुणत्व का वेष (यौवन) (भी) नष्ट हो जाता है, अच्छे पौरुष गुणों से (गुण रूपी रस्सी से) बाँधी हुई शुद्ध कीर्ति स्थिर रहती है।
टिप्पणी-तरुणत्त-< तरुणत्वं (दे० पिशेल ६ ५९७; त्व > त्त, तु० पुमत्त < पुंस्त्व), रुक्खत्त (रुक्षत्व) मणुयत्त (मनुजत्व), भट्टित्त (भर्तृत्व)। ___तोमर छंद:
जसु आइ हत्थ विआण तह बे पओहर जाण ।
पभणेइ णाअणरिंद इम माणु तोमर छंद ॥८६॥ ८६. जिसके आदि में हस्त (गुर्वत सगण) समझो, तब दो पयोधर (जगण) जानो, नागों के राजा पिंगल कहते हैं कि इस तरह तोमर छन्द मानो । (तोमर ॥5 151, ISI) ।
टिप्पणी-आइ-< आदौ । विआण-वि + जानीहि; जाण < जानीहि, माणु < मन्यस्व (मानय), ये सब आज्ञा म० पु० ए० व० के रूप हैं। जहा,
चलि चूअ कोइलसाव महुमास पंचम गाव ।
मण मज्झ वम्मह ताव णहु कंत अञ्ज वि आव ॥८७॥ [तोमर] ८७. उदाहरण:कोई विरहिणी सखी से कह रही है
(हे सखी), कोयल के बच्चे आम की ओर जाकर वसंत समय में पंचम का गान कर रहे हैं। मेरे मन को कामदेव तपा रहा है, प्रिय अभी तक नहीं लौटा है।
टि०-चलि-< चलित्वा; पूर्वकालिक क्रिया रूप । ८४. अइ-C. रइअ । जुअल-A. जुवल । सिरहि-C. O. सिरसि । मज्झ-C. K. मझ्झ । ८५. चल वित्त-B. चलि चित्त। तरुणत्तवेसो-B. तरुणंत । सुपुरुस-A. B. सुपुरिस । बद्धा-C. णद्धा। थिर रहइ-0. रहइ थिर। ८६. जसु-A. जसू । विआणA. वेआण । बे-N. ब । णाअ-A. B. णाउ। णरिंद-C. णरेंद, O. णरेंदु । इम-C.O. एम । माणु-K.C. जाण, 0. माण । छंद-0. छंदु । ८७. “साव-0. 'साउ । गाव-0. गाउ । मज्झ-K. मझ्झ । वम्मह-0. वम्म । ताव-0. ताउ । णहु-0. णहि। अज्ज-N. अज्जु । आव-O. आउ । ८७-०.८६ ।
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