Book Title: Prakritpaingalam
Author(s): Bholashankar Vyas, Vasudev S Agarwal, Dalsukh Malvania
Publisher: Prakrit Text Society Ahmedabad
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२.१०]
वर्णवृत्तम्
[१०१
६६-४) । इसीसे हि० यह का संबंध है।
जहा,
संभु एउ।
सुब्भ देउ ॥१०॥ [सारु] १०. उदाहरण:-यह शंभु (तुम्हें) कल्याण (शुभ) प्रदान करें ।
टिप्पणी-एउ-यह 'एह-एहु' का ही वैकल्पिक रूप है । तु० 'तिह पुरउ पढिव्वउ ण हु वि एउ (यह काव्य उनके आगे नहीं पढ़ा जाना चाहिये) संदेशरासक पद्य २० । देउ-दे० देऊ । (२-४) । त्र्यक्षर छंद, ताली छंद:
ताली ए जाणीए।
गो कण्णो तिव्वण्णो ॥११॥ ११. यह ताली समझी जानी चाहिए, (जहाँ) गुरु तथा कर्ण (दो गुरु) अर्थात् तीन गुरु (सर्वगुरु) वर्ण हों । (555)। टिप्पणी-ए-प्रत्यक्ष उल्लेख सूचक सर्वनाम । जाणीए<ज्ञायते; कर्मवाच्य रूप । तिव्वणो-छंदो-निर्वाहार्थ द्वित्व की प्रवृत्ति 'व्व' में देखी जा सकती है।
जहा,
तुम्हाणं अम्हाणं ।
चंडेसो रक्खे सो ॥१२॥ [ताली] १२. उदाहरण-वह चण्डेश (शिव) तुम्हें और हमें रक्खें (तुम्हारी और हमारी रक्षा करें)।
टि०-तुम्हाणं, अम्हाणं-म० पु० वाचक तथा उ० पु० वाचक सर्वनामों के कर्मकारक ब० व० रूप (युष्मान्, अस्मान्,); यद्यपि यहाँ इनका प्रयोग कर्मकारक में पाया जाता है, तथापि ये मूलतः सम्प्रदान-संबंधकारक ब० व० के रूप हैं । तुम्हाणं (*त्वस्मानाम् युष्माकं), अम्हाणं (*अस्मानाम् अस्माकं)। म० भा० आ० में ये रूप सम्प्रदान-संबंध ब० व. में ही पाये जाते हैं । (दे० पिशेल $ ४२०-४२२, $8 ४१५-४१७) । अपभ्रंश में यह रूप सम्प्र०-संबंध ब० व० के अतिरिक्त अपादान ब० व० में भी पाया जाता है, दे० तगारे $ ११९ अ, ६ १२० ब । तगारे के मतानुसार ये रूप १००० ई० के लगभग की अपभ्रंश में पाये जाते हैं (दे० वही पृ० २१७); इसके बाद 'तुम्ह, तुम्हह, तुम्हहँ रूप विशेष प्रचलित पाये जाते हैं। वस्तुत: 'तुम्हाणं, अम्हाणं' प्राकृत प्रवृत्ति का संकेत करते हैं, तथा इन्हे प्राकृतीकृत (प्राकृताइज्ड) रूप कहना विशेष ठीक होगा । ये रूप प्रा० पैं० की अवहट्ट की अपनी निजी विशेषताओं में से नहीं हैं ।
चंडेसो, सो-प्राकृतीकृत; 'ओ' रूप (कर्ता कारक ए० व०) रक्खे-< रक्षतु; आज्ञा प्र० पु० ए० व० रूप, तिङ् विभक्ति 'ए' । प्रिया छन्दः
हे पिए लेक्खिए।
अक्खरे तिण्णि रे ॥१३॥ १३. हे प्रिये, (जहाँ) रगण रूप तीन अक्षर लक्षित हों, वह प्रिया छंद है। टिo-लेक्खिए-> लक्ष्यते; कर्मवाच्य रूप ।
अक्खरे-< अक्षराणि; 'ए' सुप् विभक्ति का कर्ता ब० व० में यह प्रयोग निःसन्देह विचित्र है। वैसे इसका संबंध मा० अर्धमा० ब० व० 'ए' (पुत्ते, देवे < पुत्रा, देवाः) से है।
तिण्णि-< त्रीणि । १०. एउ-A. N. एउ, C. एहु, K. देउ । सुब्भ-K. 0. सुभ्भ, C. सक्ख । ११. कण्णो -A. B. N. O. कण्णा । वण्णोA. B.C.N. बण्णो, ०.१२. तुम्हाणं अम्हाणं-C.O. तुह्माणं अह्माणं, N. तुह्मीण अह्माण । रक्खे-O.रक्खो । १३. लेक्खिएA. लक्खिए । C. प्रतौ 'तिण्णि रे' पदद्वयं न प्राप्यते । For Private & Personal Use Only
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