Book Title: Prakritpaingalam
Author(s): Bholashankar Vyas, Vasudev S Agarwal, Dalsukh Malvania
Publisher: Prakrit Text Society Ahmedabad
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१. ९८ ]
मात्रावृत्तम्
टिप्पणी- पाएहि < पादे, एहि अधिकरण कारक ए० व० चिह्न 'वस्तुतः यह 'ए+हि' का योग है । करि, घरि – 'इ' < इअ < य; 'इ' अव० पूर्वकालिक कृदन्त ।
असि<अशीति (दे० पिशेल ६ ४४६; प्रा० जैनमहा० असीई, असीइं, टेसिटोरी अइसि 8८०, गु० एैशी, हि०
अस्सी ।)
लविज्जइ, किज्जइ - 'कर्मवाच्य' प्र० पु० ए० व०, 'ज्ज' (इज्ज') (सं० य) कर्मवाच्य का प्रत्यय है । भेऊ-सं० भेदः > भेओ > भेउ । अव० में पदांत 'उ' को छंद के लिए दीर्घ बना दिया गया 1 एहू-यहाँ भी 'एहु' (एषः एहो एहु ) का पदांत 'उ' दीर्घ बना दिया गया है । एहू-यहाँ भी 'एहु' (एषः > एहो > एहु) का पदांत 'उ' दीर्घ बना दिया गया है ।
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जहा
जसु सीसहि गंगा गोरि अधंगा गिव पहिरिअ फणिहारा । कंठट्ठिअ वीसा पिंधण दीसा संतारिअ संसारा ॥
किरणावलिकंदा वंदिअ चंदा णअणहि अणल फुरंता ।
सो संपअ दिज्ज बहु सुह किज्जउ तुम्ह भवाणीकंता ॥९८॥ [चउपइआ]
[ ४९
९८. उदाहरण:
जिनके सिर पर गंगा है, अधौंग में गौरी है, और जो ग्रीवा (गले) में सर्प का हार पहनते हैं, जिनके कंठ में विष है, जिनके वस्त्र दिशायें हैं, तथा जिन्होंने संसार को तार दिया है, जो किरणावलि के कंद (समूह) है, जिन्होंनें चन्द्रमा की वंदना की है (अर्थात् उसे सिर पर धारण किया है), जिनके नेत्रों में अग्नि चमकती है, वे भवानी के पति शिव, तुम्हें संपत्ति दें, तथा तुम्हारे बहुत सुख करें ।
टिप्पणी- गिव (ग्रीवा > गीआ> गीव-गिउ-गिव) 'उ' का 'व' के रूप के संप्रसारण (गि+व्+अ) । अकारांत स्त्रीलिंग रूप, अधिकरण कारक ए० व० (ग्रीवायां) ।
पहिरिअ - < *परिहितः 'ह' (<ध) तथा 'र' का वर्णविपर्यय करने से 'पहिरिअ' रूप बनेगा (* परिहिअ > पहिरिअ); इअ (कर्मवाच्य भूत० कृदंत प्रत्यय )
पिंधण - पिधानं; 'आ' का हस्वीकरण; प्रथम अक्षर में अनुस्वार का आगम ।
संतारिअ - संतारित सं+ / तर + आ ( णिजंत ) + इअ । ( कर्म० भू० कृ०)।
वंदिअ - वंदितः ।
"हारा, वीसा, दीसा, संसारा, 'कंदा, चंदा, फुरंता, कंता में छंद की सुविधा के लिए 'इ' (वीसा, दीसा में) तथा पदांत अ ( दीसा के अतिरिक्त अन्य शब्दों में) को दीर्घ बना दिया है ।
अणहि -< नयने; 'हि' अधिकरण ए० व० ब० व० चिह्न ।
संपअ - - संपत्; संस्कृत हलंत प्रातिपदिक का अजंतीकरण ।
दिज्जउ, किज्जउ- 'ज्ज' (इज्ज) < सं० य' विधि प्र० पु० ए० व० । सुह- सुखं शून्य विभक्ति कर्मकारक । ए० व० । तुम्ह - दे० $ ६८ ।
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९८. सीसहि - K. सीसइ, B. सीस । गोरि -C. गोरी । अधंगा - C. अद्धंगा । गिव - C. O गिम । पहिरिअ - C. पिंधिअ । कंठअि - C. कंट्ठीअ । वीसा -0. विसा । वंदिअ - B. N. नंदिअ, C. नंदिउ । सो संपअ -C. मंगल । तुम्हO. तुहू । ९८C. १०१ । C. चउपैआ० ।
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