Book Title: Prakritpaingalam
Author(s): Bholashankar Vyas, Vasudev S Agarwal, Dalsukh Malvania
Publisher: Prakrit Text Society Ahmedabad
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प्राकृतपैंगलम्
[ १.१६६
१६५. पहले नौ विप्र गण (चतुर्लघ्वात्मक गण) हों, फिर क्रम से रगण (जोहल) तथा कर्ण (दो गुरु) की स्थापना करो । गाथा छंद का आधा (उत्तरार्ध) अंत में देकर उसे माला छंद कहो ।
८०]
टि० - ठवेहु - णिजंत का अनुज्ञा म० पु० ब० व० रूप; दे० ठवहु (१-१६४) ।
कहु - अनुज्ञा म० पु० ब० व० ।
दइ- < दत्वा पूर्वकालिक क्रिया रूप ।
जहा;
बरिस जल भइ घण गअण सिअल पवण मणहरण कणअपिअरि णचइ विजुरि फुल्लिआ णीवा ।
पत्थरवित्थरहिअला पिअला णिअलं ण आवेइ ॥ १६६॥ [ माला ]
१६६. उदाहरण
कोई विरहिणी सखी से कह रही है
'जल बरस रहा है, बादल आकाश में मंडरा रहे हैं, शीतल पवन मन को हरनेवाला (बह) रहा है, सोने के समान पीली बिजली नाच रही है, कदंब के फूल फूल गये हैं । पत्थर के समान विस्तृत ( एवं कठोर) हृदय वाला प्रिय निकट (ही) नहीं आता ।
टिप्पणी- बरस - < वर्षति भमइ < भ्रमति ।
गअण- गगने; अधिकरण कारक ए० व० में शुद्ध प्रातिपदिक का प्रयोग ।
पिअरि< पोत+र ( स्वार्थे) + ई स्त्रीलिंग = *पीतरी
अप० पिअरि ।
भमइ - (भ्रमति), णचइ ( नृत्यति ) ।
विजुरि < विद्युत् > विज्जु+रि ( र स्वार्थे + स्त्रीलिंग इ); हि० बिजली, पू० राज० बीजळी, व्रज० बिजुरी प० राज० वीजळी-वीजुळी |
फुल्लिआ - फुल्लिता, कर्मवाच्य भूतकालिक कृदन्त पु० ब० व० रूप ।
'हिअला- 'हृदयः > •हिअओ > हिअअ+ल ('हिअल) के पदान्त 'अ' का दीर्घीकरण (राज० में इसका 'ड' स्वार्थे प्रत्ययवाला व श्रुतिक रूप पाया जाता है - ' हिवड़ो' ) ।
पिअला - < * प्रियल:; यहाँ भी छन्दोनिर्वाहार्थ 'पिअल' के पदान्त 'अ' को दीर्घ बना दिया गया है ।
आवेइ - < आयाति; (अथवा आ + एति) आएइ <आवेइ (व - श्रुतिवाला रूप) ।
[ चुलिआला छंदः ]
चुलिआला जइ देह किमु दोहा उप्पर मत्तह पंचइ ।
पअ अ उप्पर संठवहु सुद्ध कुसुमगण अंतह दिज्जइ ॥ १६७ ॥
१६७. चुलियाला छन्द
यदि दोहे के ऊपर (प्रत्येक अर्धाली में) पाँच मात्रा दो, प्रत्येक पद (यहाँ पद का अर्थ 'दल' या अर्धाली है) पर पाँच मात्रा स्थापित करो, दल के अन्त में शुद्ध कुसुमगण ( ISII) को दो; तो यह चुलिआला छन्द है ।
टिप्पणी- देह < दत्त 1
संठवहु- संस्थापयत, णिजंत अनुज्ञा म० पु० ब० व० ।
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१६६. बरिस - A. B. C. K. वरिस, C. वरस । गणअ-. मलअ । सिअल -C. मलअ । विजुरि-B. विजुरी, C. विजुरिआ । हिला - A. हिअणा । पिअला - A. पिअला । णिअलं- A. णिअला । आवेइ - A. अवेइ । १६६ - C. १६३ | १६७. जइ - N. पइ । किमु - C. किम । उप्पर - C. N. उप्परि । मत्तह - A. B. मत्तहि । पअ पअ - C. पअ । अंतह दिज्जइ - B. अंतहि, C. अंतत हिअर, O. अंतहि ठिआ ।
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