Book Title: Prakritpaingalam
Author(s): Bholashankar Vyas, Vasudev S Agarwal, Dalsukh Malvania
Publisher: Prakrit Text Society Ahmedabad
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५०] प्राकृतपैंगलम्
[१.९९ अह घत्ता,
पिंगल कइ दिट्ठउ छंद उकिट्ठउ घत्त मत्त बासट्ठि करि।
चउमत्त सत्त गण बे विपाअ भण तिण्णि तिणि लहु अंत धरि ॥९९॥ [घत्ता] ९९. घत्ता छंद:
पिंगल कवि के द्वारा देखे गए उत्कृष्ट छंद घत्ता में बासठ मात्राएँ करो; दोनों चरणों में चतुर्मात्रिक सात गण तथा अंत में तीन तीन लघु धरो ।
टिप्पणी-करि, धरि-कुछ टीकाकारों ने इन्हें पूर्वकालिक रूप माना है, कुछ ने आज्ञा म० पु० ए० व० रूप, जिसमें 'इ' सुप् चिह्न है। हमने इसे आज्ञा म० पु० ए० व० ही माना है। 'इ' के लिए दे० ८६ ।
घत्त, मत्त-< घत्ता, मात्राः; 'लिंगव्यत्यय' के उदाहरण । बासट्टि-< द्वाषष्ठि । (पिशेल ६ ४४६; अर्धमा० जैनमहा० वासटुिं, बावट्ठि) । अंत-< अंते-अधिकरण कारक ए० व० (शून्य विभक्ति का शुद्ध प्रातिपदिक का प्रयोग) ।
पढमं दह बीसामो बीए मत्ताइँ अट्ठाई।
तीए तेरह विरई घत्ता मत्ताइँ बासट्ठि ॥१००॥ [गाहा] १००. घत्ता में पहले दस मात्रा पर विश्राम (यति) होता है, दूसरा विश्राम आठ मात्रा पर तथा तीसरा तेरह मात्रा पर होता है (इस तरह घत्ता के एक दल-अर्धाली में १०+८+१३=३१ मात्रा होती हैं), पूरे घत्ता छंद में ६२ मात्रा होती हैं।
टिप्पणी-वीसामो < विश्रामः 'ओ' प्राकृत रूप, कर्ता ए० व० सुप् विभक्ति ।
जहा,
रणदक्ख दक्खहणु जिण्ण कुसुमधणु अंधअगंधविणासकरु ।
सो रक्खउ संकरु असुरभअंकरु गोरि णारि अद्धंग धरु ॥१०१ ॥ [घत्ता] १०१ उदाहरण
वे शंकर, जो रण में दक्ष है, दक्ष के हन्ता है, जिन्होंने कुसुमधनु (कामदेव) को जीता है, जो अंधक, गंध आदि असुरों का नाश करने वाले हैं, असुरों के लिए भय उत्पन्न करनेवाले हैं, तथा अर्धांग में गौरी को धारण करनेवाले हैं, (हमारी) रक्षा करें।
टिप्पणी-रणदक्ख < रणदक्षः (कर्ता ए० व० शून्य विभक्ति) °धणु, “विणासकरु, संकरु, करु, धरु । (कर्ता ए० व० 'उ' विभक्ति) ।
रक्ख-/ रक्ख+उ, आज्ञा प्र० पु० ए० व० ।
गोरिणारि अद्धंग धरु-कुछ टीकाकारों ने इसे समस्त पद माना है। दूसरे टीकाकार इसे 'गौरीनारी अर्धागे धारयति' मानते हैं। यह अधिक ठीक अँचता है।
गोरि णारि-अवहट्ठ में पदांत दीर्घ 'ई' का ह्रस्वीकरण । अद्धंग-< अर्धांगे अधिकरण कारक ए० व० शून्य विभक्ति ।
धरु Vधर+उ (अवहट्ठ में वर्तमान काल में शुद्ध धातु रूप (स्टेम) का प्रयोग पाया जाता है, इसका संकेत हम कर चुके हैं, इसीमें 'उ' जोड़कर 'धरु' रूप बन सकता है।) ९९. दिछउ, उकिट्ठ-C. दिठ्ठउ, उकिछुउ । बासट्ठि-C. वासठ्ठि । चउमत्त-A. B.C. चौमत । तिण्णि तिण्णि-C. तिण्णि विण्णि । C. प्रतौ संख्या न दत्ता । १००. मत्ताईं अट्ठाइँ-B. अट्ठाहि सुमत्ताहि, C. मत्ताइ अठ्ठाइ । मत्ताइँ बासट्ठि-0. मत्ताइ बासट्ठी । १००-C. १०२ । १०१. जिण्ण-A. B.C. K. जिण्णु । कुसुम -C. कुशुम । अंधअगंध-A. अंधअंधकगंध, C. अंधअमंध । करु-C. करु । संकर-C. शंकर। भअंक-C. भअंकर । गोरिणारि -K. गिरिणारि । O. नारि । अद्धंग-B. अधंग । धरुC. धरु । C. घत्ता । १०१-C. १०३ ।
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