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प्राचीन लेखों में 'अठसखा' नाम आता है परन्तु अब अठसखा का अगल अस्तित्व नहीं है। विक्रम सम्वत् 1906 में 'सिंहपुरा' जाति 'नरसिंहपुरा' जाति में विलीन हो गई। विजयवर्गीय जैन की जनसंख्या कम होने पर खंडेलवाल जाति ने अपने में मिला लिया। कुछ लोग जैन धर्म पालन करने लगे उनकी भी अलग जाति बनी। उदाहरणतः जब वैष्णव ब्राह्मणों ने पद्मावती पुरवालों के यहां शादी विवाह की रस्म करने से इंकार कर दिया तो, पद्मावती पुरवालों ने गौड़ ब्राह्मणों को जैन धर्म में परिणित किया और इस प्रकार गौड़ जाति बनी। इससे पता चलता है कि एक जाति दूसरी जाति में सम्मिलित हुई है।
जाति निर्माण का यह संक्षिप्त इतिहास है और इसी में निहित है पद्यावती पुरवाल समाज का इतिहास जो आगे अध्यायों में वर्णित है। अस्तु!
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चाहत है धन होय किसी विध, तो सब काज सरे जियरा जी। गेह चिनाय करूं गहना कछु, व्याहि सुता सुत बांटिय भांजी ॥ चिन्तत यों दिन जाहिं चले, जम आनि अचानक देत दगा जी । खेलत खेल खिलारि गये, रहि जाइ रूपी शतरंज की बाजी ॥
-भूघरदास
पद्मावतीपुरवाल दिगम्बर जैन जाति का उद्भव और विकास