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'आध्यात्मिक ज्योति की दिव्य मशालें'
श्रीमधुकर शिष्या झणकार चरणोपारिका साध्वी श्री सुमंगलप्रभा 'सविता' आमेट
जन्म के बाद मृत्यु अवश्यंभावी है। किन्तु महापुरुष मृत्यु को समझकर उसके लिए सदा हाथ में मशाल की तरह मार्गदर्शक बना रहता है। जिस प्रकार मशाल का प्रकाश सब तरह से प्राप्त होता है और प्रकाश के साथ ही लवलीन हो जाता है। इसी प्रकार हम दो ऐसी महान आत्माओं की तुलना मशाल से कर रहे हैं जिन्होंने जन्म के बाद मृत्यु को अवश्यंभावी समझ कर भरी जवानी में श्री कानकुंवरजी म.सा. ने २१ वर्ष की उम्र में एवम् चम्पाकुंवर जी म.सा. ने २२ वर्ष की उम्र में अपने जीवन को मशाल की तरह बनाने के लिये जीवन रूपी डण्डे पर संयम रूपी कपड़ा लगाया तथा आध्यात्मिक साधना रूपी स्नेह से दिव्य ज्योति को प्रकट किया हैं। गुरु हजारी ब्रज - मधुकर रूपी दियासलाई ज्योति प्रकट करने वाले बने।
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मशाल जिस प्रकार अपना कार्य पूरा करके स्वस्थान पर आते-आते अदृश्य हो जाती है उसी प्रकार ये दोनों महान, आत्माऐं राजस्थान से मेवाड़, मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, आन्ध्रप्रदेश, कर्णाटक, मद्रास में कुछ समय विराजकर अपने आप में अंन्तर्ध्यान हो गई। मैं भी अपने आपको सौभाग्यशाली समझती हूं कि जिस धरती पर दोनों आत्मा ने जन्म व दीक्षा ग्रहण की उसी धरती के कणों में मेरी भी अभिवृद्धि हुई एवम् दीक्षा भी ।
अंत में मैं ऐसे महान् आध्यात्मिक ज्योति की दिव्य मशाल, कान- चम्पा की आत्मा दिव्यात्मा बन गई। मेरे मन दर्शन की अभिलाषा थी वह अंतराय कर्मों के कारण मन की मन में रह गई। अब मैं आपश्री के चरणों में कोटिशः श्रद्धांजलि अर्पित करती हूं।
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कितना पावन निश्चल जीवन सजग साधना में रत था, स्पष्ट-स्पष्ट कहने की आदत वाला पावन तव पथ था, छोड़ गये हो तुम तो हमको, याद तुम्हारी आती हैं, तेरे पद चिन्हों पर चलना, यही हमारी थाती हैं ||
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उच्च कोटि की द्वयात्मा
आमेट (राज.)
श्री मधुकर शिष्या झणकार चरणोपासिका साध्वी
अनादिकाल से हमारी आत्मा जन्म और मृत्यु के दोनों तटों के बीच रही है। अनन्त काल बीत गया इस प्रक्रिया में। ठाणांग सूत्र में भगवान ने कहा कि ऐसा कोई स्थान न बचा जहां इस आत्मा ने
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