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लगभग पांच वर्ष तक महासतियां जी का मद्रास में रहना हुआ। महासती श्री कान कुवंर जी म. सा. की अस्वस्थावस्था के कारण कहीं विहार नहीं हो पा रहा था। इस अवधि में मैने देखा कि महासतीजी में अटूट धैर्य और सहिष्णुता है। अपनी अस्वस्थता की चिंता किये बिना वे अपनी दैनिक क्रियाओं के प्रति पूर्ण सजग रहती थी। अपनी शिष्याओं को मार्ग दर्शन प्रदान किया करती थी । संयम में जरासी भी शिथिलता नही आने पाई थी।
लगभग पांच वर्षों की अवधि तक महासतियांजी के सान्निध्य में रहकर धर्म ध्यान करने का अवसर तो मिला ही साथ ही इतने वर्षों तक सेवा करने का भी अवसर मिला, यह हमारा सौभाग्य है।
माह मार्च १९९९ हमारे लिये शुभ नहीं रहा । कुशल प्रवचनकर्त्री, परम विदुषी महासती श्री चम्पाकुवंरजी म.सा. एकाएक अस्वस्थ हो गये। वे लगभग आठ बजे रात्रि में अस्वस्थ हुए और रात्रि ११.४५ बजे समाधि मरण को प्राप्त हो गये। इस अल्पावधि में हम विशेष कुछ भी उनके लिये नहीं कर पाये। समाज पर उनका असीम उपकार था । अस्वस्थ होते ही ऐसा लग रहा था मानो काल का आक्रमण प्रतिपल चालू है-नत्थि कालस्स अणागमो । काल के सम्मुख किसी की नहीं चलती है। टूटी की कोई बूटी नही है। अंततः क्रूर काल के पंजे अधिक कस गए और दिनांक १७-३-९१ को क्रूर काल ने महासती श्री चम्पाकुवंर जी म. जा. को अपना ग्रास बना लिया। शोक की लहर व्याप्त हो गई। जो नहीं सोचा था वह हो गया।
परम विदुषी महासती श्री चम्पाकुवंरजी म.सा. के वियोग को अभी भुला भी नहीं पाये थे कि दि. ४-८-९१ को महासती श्री कानकुवंरजी म.सा. को क्रूर काल ने हमसे छीन लिया और हम सब बेबस देखते रह गये । पू. गुरुवर्य्या महासती श्री कानकुवंरजी म.सा. की अस्वस्थता को देखते हुए उनके उपचार की समुचित व्यवस्था की गई। एक से बढ़कर एक डाक्टर एवं विशेषज्ञ डाक्टरों को भी बताया। इस अवधि में डा. सुराणा ने पू. गुरुवर्य्या श्री की जो सेवा की वह सराहनीय है। वे अंत समय तक सेवा में जुटे रहे। किंतु विकराल काल के पंजों से वे महासतीजी को नहीं बचा सके।
अल्पावधि में दो वरिष्ठ महासतियां जी का वियोग एक बहुत बड़ी अपूरणीय क्षति होती है। मैं अपनी ओर से तथा अपने समस्त परिवार की ओर से दोनों महासतियांजी को श्रद्धांजलि अर्पित करता हूँ, और शासन देव से उनकी आत्मा शांति के लिये प्रार्थना करता हूँ ।
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उनके बताये मार्ग का अनुसरण करें
परमपूज्य विदुषी महासतियाँ जी श्री कानकुवंरजी म.सा. के देवलोक होने के समाचार तार द्वारा मिले। यह समाचार यहां विराजित घोर तपस्वी संघ सेवा भावी पूज्य गुरुदेव श्री मोहनमुनि महाराज साहब को जैसे ही मिले यहां सर्वत्र शोक की लहर फैल गई। यहां श्री संघ ने शोक संवेदना प्रकट की है।
पूज्य गुरुदेव ने शोक संदेश भेजा है एवं सभी महासतियां जी म.सा. को धर्म संदेश फरमाया है। महासतियां जी पूज्य गुरुदेव श्री हजारीमल जी म.सा. की बड़ी शिष्या थी और उन्होंने अपने जीवन में
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