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होते हैं। जिस स्कन्ध में जितने परमाणु होते हैं। वह तत्परिमाण प्रदेशी स्कन्ध कहलाता है। क्षेत्र की अपेक्षा से सप्रदेशी भी है और अप्रदेशी भी है। जो एक आकाश प्रदेशावगाही होता है, वह अप्रदेशी है और जो दो आदि आकाश-प्रदेशावगाही होता है। वह सप्रदेशी है। काल की अपेक्षा से जो स्कन्ध एक समय की स्थिति वाला होता है, यह अप्रदेशी और जो इस से अधिक स्थिति वाला होता है, वह सप्रदेशी है। भाव की दृष्टि से एक गुण वाला अप्रदेशी और अधिक गुणवाला सप्रदेशी है। यह स्पष्ट लक्ष्य है कि अनन्त प्रदेशी स्कन्ध भी जब तक सूक्ष्म परिणति में रहता है, तब तक इन्द्रिय ग्राह्य नहीं बनता है। और सूक्ष्म परिणति वाले स्कन्ध चतुःस्पर्शी होते हैं। उत्तरवर्ती चार स्पर्श बादर परिणाम वाले चार स्कन्धों में ही होते हैं। गुरु-लघु और मृदु कठिन ये स्पर्श पूर्ववर्ती चार स्पर्शों की अपेक्षा पूर्ण संयोग से बनते हैं। रुक्ष स्पर्श की बहुलता से लघु स्पर्श होता है और स्निग्ध की बहुलता से गुरु-स्पर्श होता है। शीत और स्निग्ध इन दोनों स्पर्शों की बहुलता से मृदु स्पर्श और ऊष्ण तथा रुक्ष की बहुलता से कर्कश स्पर्श बनता है। तात्पर्य की भाषा में स्पष्ट रूपेण कहा जा सकता है कि सूक्ष्म परिणति की विकृति के साथ-साथ जहाँ स्थूल परिणति होती है। वहाँ चार स्पर्श भी बढ़ जाते हैं।
पुद्गल द्रव्य परिणमनशील है। उस में परिणमन स्वयंमेव होता है। जीव के संयोग से भी होता है। इसी दृष्टि को लेकर उस के तीन भेद संभव ५२ है।
१ - प्रयोग -परिणत ऐसे पुद्गलों की प्रयोग परिणत कहते हैं। जिन्होने जीव के संयोग से अपना परिणमन किया है।
२ - विस्रसा-परिणत-विस्रसा परिणत ऐसे पुद्गलों को कहते हैं, जो अपना परिणमन स्वतः किया करते हों, जीव का संयोग ही जिन से न हुआ हो।
___३ - मिश्र परिणत - ये वे पुद्गल हैं, जिन का परिणमन जीव के संयोग से और स्वयंमेव, दोनों प्रकार से एक ही साथ रहा होता है। मिश्र परिणत पद्गल उन्हें भी कहा जा सकता है, जिन का परिणमन कभी जीव के संयोग से हुआ हो, लेकिन अब किन्ही कारणों से जो स्वयंमेव अपना परिणमन कर रहे हैं।
___ अपेक्षा दृष्टि से पुद्गल के दो भेद भी हैं, ५३ तीन भेद भी हैं, और परमाणु का एक भेद मिलकर पुद्गल के चार भेद भी हो जाते ५४ हैं। ये भेद अपेक्षा-विशेष से हुए हैं। द्रव्य दृष्टि से पुद्गल एक ही भेद हैं, अथवा यों भी कहा जा सकता है कि वह वस्तुतः अभेद ही है।
परमाणु और स्कन्ध के रूप में हम ने पुद्गल का अध्ययन किया और हम स्पष्टतया उस का अध्ययन अन्य रूप में देखेगें परमाणु सूक्ष्म है। और अचित्त महास्कन्ध स्थूल है। इन के मध्यवर्ती सौक्ष्ष्म्य और स्थोल्य ये दोनों आपेक्षित भेद हैं। एक स्थूल वस्तु की अपेक्षा, किसी दूसरी वस्तु को सूक्ष्म और एक
भगवती सूत्र -८/१/१! ५३ क- उत्तराध्ययन सूत्र -३६/११!
ख- स्थानांग सूत्र -स्थान -२! ५४ ५४ -भगवती सूत्र -२/१०/६६!
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