Book Title: Mahasati Dwaya Smruti Granth
Author(s): Chandraprabhashreeji, Tejsinh Gaud
Publisher: Smruti Prakashan Samiti Madras

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Page 561
________________ द्वारों को बंद करके पहले भरे हुए पानी जिस प्रकार बड़े भारी तालाब को खाली करने के लिये पहले उसके पानी के बाहर से आने वाले पानी को रोकने की आवश्यकता रहती है। उसके बाद तालाब की निकालने की प्रक्रिया होती है। जिसमें सिंचाई से एवं सूर्यादि के ताप से क्रमशः सूख जाता है। इसी प्रकार संयमी पुरुष पहले संवर द्वारा नये कर्मों की आवक को रोक देता है। और बाद में अपनी आत्मा में करोंड़ो भवों के संग्रह किये हुए कर्मों को तपस्या के द्वारा क्षय कर देते है । प्रश्न हे भगवान! तप किस फल की प्राप्ति होती है? उत्तर - तप से व्ययदान = पूर्व के बंधे कर्मों की निर्जरा होती है। तपस्या का प्रतिफल बताते हुए इस प्रकार कहा है । तवेणं भंते । जीवे किं जणयइ ? तवेणं वोदाणं जणयई । - तप किया जाता था। मध्य तीर्थंकरों के तप किया जाता था। स्वयं भगवान ने पवित्र होती है। तप का आचरण पूर्व के सभी महापुरुषों ने किया है। भगवान ऋषभ देव के समय एक वर्ष तक समय आठ माह तक भगवान महावीर के समय ६ महिने तक का भी ६ मास का तप किया था। वास्तव में तप से आत्मा शुद्ध और Jain Education International सदोषमपि दीप्तेन, सुवर्ण वाहिनी यथा । तपोऽग्निता तप मनस्तथा, जीवो विशुध्यति ॥ जैसे मिट्टी से लिप्त सोना तप कर आत्मा विशुद्ध हो जाता है। अशुद्ध है। यह अशुद्धता वैभाविक है। आचार्य हेमचंद्र अग्नि में तप कर शुद्ध बन जाता है। इसी प्रकार तप रूपी अग्नि में क्योंकि आत्मा अनंत काल से क्रोधादि कषाय एवं काम विकारों से अतः स्वाभाविक स्थिति में लाने हेतु तप को प्रमुख माना है। चरितेण निगिण्हाई तवेण सुज्झई उतराध्ययन उतराध्ययन सूत्र चरित्र में आने वाले कर्मों को रोका जाता है। किंतु तप से विगत जन्मों के एकत्र पाप को क्षय किया जाता है जिस प्रकार तप रूपी धर्म, एक ओर संयम की रक्षा करता है तो दूसरी ओर आत्मा की सफाई करता हुआ निर्मल बनाता है । अन्तर्मन की शुद्धि तप से ही होती है। इच्छा निरोध स्तप: तप से विषय वासनाओं का निरोध होता है अतः तप का काम भौतिक इच्छाओं का निरोध करना (२३८) 0 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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