Book Title: Mahasati Dwaya Smruti Granth
Author(s): Chandraprabhashreeji, Tejsinh Gaud
Publisher: Smruti Prakashan Samiti Madras

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Page 537
________________ आंतो की भीतरी बनावट असमतल है। इस असमतल सतह पर अंकुर निकले रहते है और इन अंकुरों में रस या द्रव के सोखने की शक्ति होती है। पचित आहार या रस जब इन अंकुरों के सम्पर्क में आता है तब वह इनके द्वारा सोख लिया जाता है और यह शोषित रस सम्पूर्ण शरीर में रक्तादि के माध्यम से प्रवाहित होता है और शरीर के जिस भाग को जिस तत्व की आवश्यकता होती है उसकी पूर्ति हो जाती है। अंकुरों तथा आतों की सतहों में रक्त वाहिकाओं का जाल बिछा रहता है और इनमें सदैव रक्त प्रवाहित होता रहता है। (२) रक्त धातु- धातुओं में जिसका वर्ण लाल होता है वह रक्त धातु के नाम से जाना जाता है। ५ योग शास्त्र में रक्त धातु के बारे में कहा गया है कि इसकी उत्पत्ति रस धातु से होती है। ६ वैज्ञानिक भी जैनों के इस मत का समर्थन करते हैं, लेकिन वे मात्र लाल वर्ण वाले धातु को ही रक्त नहीं मानते है। प्रयोगों तथा निरीक्षणों के आधार पर उन्होने यह सिद्ध कर दिया है कि रक्त लाल रंग के अतिरिक्त श्वेत रंग का भी होता है। संभवतः जैनों ने सप्त धातुओं की व्याख्या करने एवं उनमें कुछ अंतर दिखलाने के लिए ही लाल वर्ण वाले धातु को रक्त कहा है क्योंकि सामान्यतया लोग रक्त को लाल वर्ण वाला द्रव मानते है। परंतु वैज्ञानिक रक्त के तीन भेदों का उल्लेख करते है। ० १. प्लाज्मा, २. लाल रक्त कण और ३. श्वेत रक्त कण। रक्त के हल्के पीले रंग का द्रव होता है यही प्लाज्मा है। इसी प्लाज्मा में छोटे-छोटे गोल आकार - लाल रक्त कण तैरते रहते हैं। इन्हीं कणों के कारण रक्त का रंग लाल होता है। इन दोनों के अतिरिक्त शरीर में अनिश्चित आकार वाले एक दूसरे प्रकार का रक्ता होता है, जिसका वर्ण श्वेत होता है और श्वेत रक्त कण के नाम से जाना जाता है। __ रक्त का रंग लाल उसमें घुले हुए हीमोग्लोबिन नामक लौह तत्व के कारण है। हीमोग्लोबिन आक्सीजन नामक गैस को सोख लेता है और उसे सम्पूर्ण शरीर में पहुँचाता है। आक्सीजन जीवन को टिकाए रखने के लिए एक आवश्यक गैस है क्योंकि शरीर में पाई जाने वाली वस्तुएँ इससे मिलकर जलती है और इस कारण शरीर को आवश्यक ऊर्जा और गर्मी मिलती है। इसी ऊर्जी के कारण जीव अपनी गतिशीलता को कायम रखता है। मनुष्य पशु के शरीर में पाया जाने वाला यह लौह तत्व पौधों के शरीर जैसे हरी पत्तियों आदि में भी पाया जाता है। यहाँ यह कार्बनडायक्साईड नामक गैस को सोखकर पौधों को भोजन बनाने में सहयोग करता है। अत: इतना तो तय हो गया कि रक्त जीव के शरीर में गैस संवाहक का कार्य करते हैं। गैस संवहन की इस प्रक्रिया में किसी परिस्थिति में ये श्वसन का कार्य करते हैं तो कभी आहार निर्माण में सहयोग करते है। यह तो पूर्व में ही बताया जा चुका है कि रक्त का रंग मात्र लाल नहीं होता सफेद भी होता है। यह श्वेत रक्त कण जीवों को रोगाणुओं से लड़ने में मदद करता है। किंतु इस संसार में कुछ ऐसे भी जंतु है जिनके शरीर में लाल रक्त कण पाया ही नहीं जाता है अर्थात ऐसे जीवों के शरीर में जो रक्त होता है उनमें लौह तत्व नहीं पाया जाता है। लौह तत्व नहीं रहने के कारण ही उनके रक्त का रंग लाल नहीं होता है। तिलचट्टा इसका सामान्य उदाहरण है। (३) मांस धातु - जीव के शरीर की सारी आकृति, मुख की सुंदरता, अंगों की सुडौल रचना ये सभी मांस के द्वारा ही संभव है। मांस ही जीव के शरीर में उपस्थित अस्थि आदि ढाँचे के ऊपर इस (२१४) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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