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अथाह तत्व को धारण करने वाली। 'गीता' में तीन प्रकार की बुद्धि का उल्लेख मिलता है- सात्विकी, राजसी तथा तापसी। जो बुद्धि प्रवृत्ति-निवृत्ति मार्ग को, कर्तव्य-अकर्तव्य को, भय-अभय को और बंध मोक्ष को तत्व से जानती है, वह सात्विकी बुद्धि है। जिस बुद्धि के द्वारा मनुष्य धर्म-अधर्म एवं कर्तव्य-अकर्तव्य को यथार्थ रूप से नहीं जानता, वह राजसी बुद्धि है। तमोगुण से आवृत्त जो बुद्धि अधर्म को धर्म मानती है और सब पदार्थों को विपरीत समझती है, वह तामसी बुद्धि है। लोक में कहा गया है कि पानी में तेल बिंदु के तरह फैलने वाली बुद्धि तेलिया है। मोती में किए गए छिद्रवत्, समानरूप से रहने वाली बुद्धि मोतिया है। कंबल आदि में किए गए छिद्र की तरह नष्ट हो जाने वाली बुद्धि नमदा है। सेवा बुद्धिवाला सफलता को मुख्यता देता है। कर्तव्य बुद्धिवाला जिम्मेदारी से पीछे नहीं हटता। उपकार बुद्धिवाला अहसान करना चाहता है। स्वार्थ बुद्धिवालों के लिये कहावत है-'गंजेड़ी यार किसके, दम लगाया खिसके।'
एक बुद्धि तारक होता है और दूसरी होती है मारक। इन दोनों को दूसरे शब्दों में कहना चाहे तो एक को परमार्थ बुद्धि और दूसरी को स्वार्थबुद्धि कह सकते हैं। तारक बुद्धि दूसरों के हित और अपने हित को सोचती है, दूसरों का कल्याण, उपकार ही उसके द्वारा होता है। जहाँ तारक बुद्धि है वहां ठगी, धोखेबाजी, दंभ, छलप्रपंच, कपट, झूठ फरेब, अन्याय, अत्याचार, शोषण, बेईमानी आदि बुराइयां नहीं हो सकती और वहाँ सार्वत्रिक और सार्वकालिक हित और सुख की दृष्टि से ही सोचा जाता है। इसलिये उसे परमार्थ बुद्धि कहते है। मतलब यह है कि तारक बुद्धि दूसरों का अहित कभी नहीं सोच सकती। तारक बुद्धि वाला दूसरो को जिलाकर यानि अपना जीवन दूसरों के लिये बिताकर जीता है। उसका चिंतन सर्वस्व यही रहता है कि मैं कौन हूं? कहां से आया हूँ? कैसे मनुष्य बन गया? मेरा वास्तविक स्वरूप क्या है? किसके साथ मेरा क्या संबंध है? मेरा क्या कर्तव्य क्या है, क्या दायित्व और क्या लक्ष्य है? दूसरों के साथ मैं अपने उस परमार्थ संबंध को रखू या छोड़ दूं? इस प्रकार की तारक बुद्धि वाला अपनी बुद्धि को स्व.पर कल्याण में लगाएगा। ...
मारक बुद्धि स्व पर हिताहित की नहीं सोचती। उसके द्वारा दूसरों का कल्याण या उपकार नहीं होता। मारक बद्धि वाला अपने तच्छ और क्षणिक स्वार्थ की दृष्टि से सोचेगा। मारक बद्धि के हथियार होते हैं - हिंसा, झूठ, चोरी, दम्भ, कपट, धोखा, अन्याय, अत्याचार, शोषण, बेईमानी और बदमाशी आदि। मारक बुद्धि वाला दूसरों को मारकर जीने की सोचता है। उसका चिंतन खासतौर से रोद्रध्यान का विषय होता है। दूरदर्शी या अपनी आत्मा से संबंधी चिंतन का नाश करने का सोचने के साथ-साथ अपना भी सर्वनाश कर बैठती है। पुराणों में एक कथा आती है - सुन्द और उपसुन्द नामक दो राक्षस सगे भाई थे। दोनों बलवान थे, खूब काम करने वाले। एक बार उन्होंने कोई अच्छा काम किया तो विष्णुजी ने उन्हें वरदान मांगने को कहा। उन्होंने परस्पर सलाह मशविरा करके अपनी राक्षसी बुद्धि के अनुसार यह वरदान मांगा कि हम जिसके सिर पर हाथ रख दें, · वह भस्म हो जाये। विष्णुजी वचनबद्ध थे, अतः उन्होंने 'तथास्तु' कहकर उन दोनों राक्षसों को वरदान दे दिया। देवों और दानवों की परस्पर लड़ाई चलती ही रहती थी। अत: देवों को परास्त और नेस्तनाबूद करने के लिए उन्होंने द्वेषवश उन पर हाथ रखना शुरू कर दिया। धीरे-धीरे देवों का सफाया होने लगा। देवों में घबराहट मची और उन्होंने विष्णुजी से जाकर प्रार्थना की। विष्णु ने सोचा-यह तो मैने बंदरों के हाथ में तलवार देने जैसा काम कर दिया। अब क्या हो? सोचते-सोचते उन्हें इन दोनों भाइयों को हटाने के लिए एक उपाय सूझा। उन्होंने अपनी माया से
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