Book Title: Mahasati Dwaya Smruti Granth
Author(s): Chandraprabhashreeji, Tejsinh Gaud
Publisher: Smruti Prakashan Samiti Madras

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Page 551
________________ कश्चिन अन्य आदि शब्दों द्वारा अपने पूर्वाचार्यों का संकेत दिया ही है। इस व्याकरण ग्रंथ में समाविष्ट प्राकृत व्याकरण पर चंद्र और वररुचि का प्रभाव स्पष्टतः लक्षित होता है। पाणिनि ने भी 'प्राकृत लक्षण' नामक ग्रंथ लिखा था ऐसा कहा जाता है। किंतु इसकी अनुपलब्धि में प्राकृत प्रकाश के कर्ता वररुचि ही प्राचीनतम प्राकृत वैयाकरणी है। व्याकरण की रचना में परिभाषा का खास महत्व है। जार्ज कोडो के अनुसार परिभाषा metarules को कहते है। उसको Rules of interpretation भी कहा जाता है। उसको अव्यवस्था दूर करने के लिये प्रयुक्त वास्तविक विधान भी कहा जाता है। हेमचंद्र ने परिभाषा के लिये 'न्याय' शब्द का प्रयोग किया है और अध्येता की अल्प, मध्यम, उच्च कक्षा ध्यान में रख कर स्वयं आचार्यश्री ने तीन प्रवृत्तियां भी लिखी है। श्री हेमचंद्राचार्य ने पाणिनि कृत 'अष्टाध्यायी' में प्रविष्ट क्लिष्टता को अपने ग्रंथ से दूर रखा है। विद्यार्थी के लिये वर्ण्य विषय का सरलता निरूपित करने का ध्येय उन्होंने निभाया है। और इस प्रक्रिया में वे महद् अंशत: शाकटायन के अनुगामी रहे हैं। संक्षेप में कहा जाय तो पाणिनि द्वारा सूत्रबद्ध पतंजलि द्वारा विस्तृत, जयादित्य द्वारा वृत्ति बद्ध कैयट द्वारा व्याख्यान और बाद में नागेशपंडित द्वारा स्थिरीकृत व्याकरण को श्री हेमचंद्राचार्य ने सरलीकृत करने का प्रयास किया है। पुष्प कु सो. हिल ड्राइव भाव नगर, ३६४००२ (गुजरात) चिंतन कण 288000080020038888888888888888808883 • आज के मानव प्रेम की पुकार कर रहे हैं किंतु प्रेम पुकारने की चीज नहीं, जीवन में उतारने की। चीज हैं। • जो व्यक्ति मन, वजन व कर्म से प्रेम की सरिता बहाता हैं, वह सबता प्रिय बन जाता हैं। • जो वास्तव में प्रेम की सरिता में अहर्निश सराबोर रहता है, उसके सम्पर्क में आने वाला दुःखी प्राणी भी उस आहादित सुख से वंचित नहीं हो पाता। फूट को बिदाकर एकता के सूत्र में प्रत्येक प्राणी को पिटोने वाला सूत्र प्रेम ही तो हैं। • परम विदुषी महासती श्री चम्पाकुवंरजी म.सा. Mad208889868808888888858 (२२८) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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