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सप्तधातु और आधुनिक विज्ञान
• डॉ. रज्जन कुमार
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जैनदर्शन एक प्राचीन वैज्ञानिक दर्शन है। विज्ञान जगत में हो रहे नित नूतन अविष्कारों तथा अनेक वैज्ञानिक मान्यताओं का अभूतपूर्व वर्णन जैनागमों में किया गया है। यही नहीं अनेक ऐसी जटिल समस्याएँ जिनके बारे में आज वैज्ञानिक हतप्रभ है उनका अनूठा समाधान भी कई जगह पर जैन ग्रंथों में प्राप्त होना है। शाकाहार एवं उसके लाभ पर्यावरण की रक्षा क्यों और कैसे, हिंसा निवारण आदि कुछ ऐसे ही ज्वलंत प्रश्न हैं जिन पर विज्ञान निश्चित रूप से कोई सर्वमान्य हल नहीं खोज पाया है परंतु जैन ग्रंथों में इन समस्याओं का समुचित समाधान मिलता है। इसी प्रकार हमारा शरीर तथा संसार के अंयान्य जीवों का शरीर किन-किन तत्वों से मिलकर बना है, इनके शरीर में कौन कौन से धातु, उपधातु आदि पाए जाते है, इन विषयों पर जैनाचार्यों ने व्यापक रूप से चिंतन किया है। प्रस्तुत निबंधों में जैनों द्वारा प्रतिपादित सप्तधातु की व्याख्या आधुनिक विज्ञान के परिप्रेक्ष्य में करने का प्रयास किया जा रहा है।
धातु क्या है इस संबंध में जैनों का कहना है कि जीव का शरीर कुछ तत्वों से मिलकर बना है और ये तत्व ही धातु कहलाते है। इन धातुओं की कुल संख्या सात है। ' इन सप्त धातुओं के नाम हैं। १.रस, २.रक्त, ३. मांस, ४. मेद, ५. अस्थि, ६. मज्जा और ७. वीर्य। तात्पर्य यह है कि जीव के शरीर में कुल सात प्रकार के ही धातु पाए जाते है और ये सातों मिलकर ही शरीर का निर्माण करते हैं।
(१) रस धातु- जीव अपने जीवन को टिकाए रखने के लिए आहार लेता है। यह आहार ठोस और द्रव दोनों ही रूपों में लिया जाता है। यह आहार जीव के शरीर में जाकर भिन्न-भिन्न प्रकार की क्रिया प्रक्रिया के फलस्वरुप एक पतले रस के रूप में परिणत हो जाता है और यही पतला रस रस धातु कहलाता है। योगशास्त्र में आचार्य हेमचंद्र रस के बारे में लिखते हैं खाए गए अन्न व पिए गए पान के परिपाक से जो पतला निस्पंद (पतली धातु विशेष) उत्पन्न होता है उसी का नाम रस धातु है। रे
___ जीव ठोस आहार को अपने दाँतों की सहायता से छोटे-छोटे टुकड़े में बाँटता है। फिर उन छोटे-छोटे टुकड़े को पीसता है। यह पीसा हुआ भोजन मुँह से आहार नाल में जाता है और वहाँ से होते हुए पेट एवं छोटी बड़ी आंतों में पहुँचता है। इन सभी स्थानों पर जीव के शरीर पर पाए जाने वाले विभिन्न तरह के रासायनिक तत्व (enzymes) भोजन से मिलते हैं। जब ये तत्व भोजन, से मिलते है तो पीसा हुआ भोजन और ज्यादा महीन हो जाता है। इसके साथ ही साथ शरीर के विभिन्न अंगों में संकोच-विकोच रहता है इस कारण भी आहार और ज्यादा पतला हो जाता है। इन सब क्रियाओं के फलस्वरूप आहार द्रव के रूप में बदल जाता है और यही रस धातु कहलाती है।
इस रस धातु से शरीर का निर्माण कैसे होता है, इस संबंध में विज्ञान सम्मत सिद्धांत का अवलोकन किया जा सकता है। वैज्ञानिकों ने आँतों को काटकर देखा है और इस निष्कर्ष पर पहुँचे है कि
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