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(i) मुनि क्षमा सागर जी - पू.आ.श्री श्रीलालजी म.सा. के एक शिष्य से एकबार एक पात्रा टूट गया। टूटेपात्र को जोड़ने हेतु मुनि चौथमल जी म. ने अपने पास रख लिया। आचार्य प्रवर ने यह टूटा पात्रा चौथमल जी म.सा. के पास देख, उन्हें खूब उपालम्भ दिया। और कहा तुमने लापरवाही से यह पात्र तोड़ दिया। पात्रे बड़े आरंभ से बानते हैं और प्रसुक पात्रे सर्वत्र सुएम भी नहीं होते। मुनि चौथंमल जी सब उपालम्भ सुनकर भी शान्त रहे, और क्षमता मांगते रहे। तभी जिस मुनि से पात्रा टूटा था, वे गोचरी लेकर लौटे। जब आचार्य श्री को मुनि चौथमल जी को उपालम्म देते सुना, तो वे हाथ जोड़कर बोले पात्रा तो मुझ से टूटा है, उपालम्भ चौथमल जी म.को क्यों दिया जा रहा है? आचार्य प्रवर ने तब मुनि चौथमल जी से शान्त रहकर क्षमा मांगने का कारण पूछा तो वे बोले गुरुदेव, मैं शान्त न रहता तो आप से अनमोल शिक्षाएं कहाँ सुन पाता? आचार्य प्रवर ने तब उनका नाम मुनि क्षमासागर रख दिया।
(ii) आचार्य मिक्खु - एक बार आचार्य मिक्खुसे चर्चा करते एक अन्य परंपरा के युवक ने क्रोधित हो उनके मस्तक पर ढोला मार दिया। इस पर वहाँ बैठे आचार्य के भक्तगण उत्तेजित हो युवक को मारने को तत्पर हो गए। किन्तु आचार्य देव ने सबको शान्त करते हुए स्वयं बिना उत्तेजित हुए बड़ी मधुरता से कहा -कोई नाराज न होवें। जब दो पैसे की मटकी भी बजाकर जांच कर लेते हैं, तो इस युवक बंधु को भी गुरु बनाना होगा, जिसके लिए परीक्षा ले रहा है। आचार्य के इन शब्दों ने जादू जैसा असर किया। जिस युवक ने आचार्य पर हाथ उठाया, वही उनके चरणों में गिरकर शिष्य बन गया।
(iii) एक बार एक संत ने कुछ भक्तों को हाथों में लाठियाँ, तलवारें लेकर जाते देखा। पूछने पर बताया गया कि दूसरे गाँव के कुछ लोगों ने उनकी मूर्ति तोड़दी है, जिससे वे भी उनका मंदिर तोड़ने जा रहे हैं। संत ने कहा -भक्तों को कोध न कर शान्ति से काम लेना चाहिए। भक्तों ने कहा यह हमारा सात्विक क्रोध है। संत बोले यह तो शैतान की भाषा बोल रहे हो। क्रोध कभी सात्विक नहीं होता। भक्तों ने पूछा शैतान की भाषा का क्या मतलब? कृपाकर समझावें। संत ने उन्हें प्रेम से बिठाया और कहा ध्यान से सुनो शैतान की भाषा समझाता हूँ।
एक बार एक महात्मा नौका में जा रहे थे। साथ में कुछ लोग उनको छेड़ते जा रहे थे। महात्मा ने उन पर कोई ध्यान नहीं दिया। सायंकाल होने से महात्मा ध्यानस्थ हो प्रार्थना में बैठ गए। तब उन लोगों ने अच्छा मौका समझ महात्मा पर कंकर, जूते, आदि मारने लगे। तभी आकाश वाणी हुई -'महात्मन्, तुम कहो तो मैं नांव उलट दूं।' यह सुनते ही शैतानी करने वाले सब महात्मा से क्षमा मांगने लगे और बचाने की गुहार करने लगे। महात्मा ने ध्यान खोला और आकाश की तरफ मुंह कर बोलेप्यारे! यह कैसी शैतानी की भाषा बोल रहे हो? यदि उलटना ही है, तो क्यों न इनकी बुद्धि को उलट दो। तभी पुनः आकाश वाणी हुई -महात्मा, आपने ठीक पहिचाना, जो आपने सुनी वह शैतान की भाषा ही थी। आप धन्य हैं, जो आप को सताने वालों का भी भला चाहते हैं।
शैतान की भाषा, और महात्मा की अद्भुत क्षमा का यह उदाहरण सुनकर, सभी भक्तगण, जो मंदिर तोड़ने जा रहे थे, शान्त हो गए और वापिस अपने गाँव को लौट गए। इस प्रकार क्षमा के उदाहरण मात्र से एक बड़ा संघर्ष टलकर झगड़ा शान्त हो गया। वस्तुतः क्षमा समता का अनन्य स्रोत है, जिसे क्षमता साधकों को, जीवन में अपनाना बहुत आवश्यक है।
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