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बन्ध का कारण -पुद्गल का बन्ध जीव के साथ भी होता है और इस के कई कारण भी हैं। यह तो अति स्पष्ट है कि पुद्गल द्रव्य सक्रिय है और जो सक्रिय होता है, उस का टूटते-फूटते रहना, जुड़ते मिलते रहना स्भावाविक है। उस में कोई न कोई कारम निमित्त के रूप में अवश्य होता है। उदाहरणार्थ -मिट्टी के अनेक कणों का बन्ध होने पर घड़ा बनता है। इस में कुम्भकार निमित्त कारण है।
बन्ध की प्रक्रिया वास्तव में अत्यन्त ही सूक्ष्म है। परमाणु से स्कन्ध, स्कन्ध से परमाणु और स्कन्ध से स्कन्ध किस प्रकार बनते हैं। इस विषय में मुख्यतः सात तथ्य हैं, वे ये हैं -
१ - स्कन्धों की उत्पत्ति कभी भेद से, कभी संघात से और कभी भेद-संघान से होती है। स्कन्धों का विघटन अर्थात् कुछ परमाणुओं का एक स्कन्ध से विच्छिन्न होकर दूसरे स्कन्ध में मिल जाना “भेद" कहलाता है। दो स्कन्धों का संघटन या संयोग हो जाना संघात है। और इन दोनों प्रक्रियाओं का एक साथ हो जाने भेद संघात ७१ है।
२ - अणु की उत्पत्ति केवल भेद-प्रक्रिया से ही सम्भव ७२ है। ३ - पुद्गल में पाये जाने वाले स्निग्ध और रुक्ष नामक दो गुणों के कारण ही यह प्रक्रिया संभव
४ - जिन परमाणुओं का स्निग्ध या रुक्ष गुण जघन्य अर्थात् न्यूनतम शक्ति स्तर पर हो उन का परस्पर बन्ध नहीं होता है।
५ - जिन परमाणुओं या स्कन्धों में स्निग्ध या रुक्ष गुण समान मात्रा में अर्थात् समशक्ति स्तर पर हो, उनका भी परस्पर बन्ध नहीं होता है।
६ - लेकिन उन परमाणुओं का बन्ध अवश्य होता है। जिनसे स्निग्ध और रुक्ष गुणों की संख्या में दो एकांकों का अन्तर होता है। जैसे चार स्निग्ध गुणयुक्त स्कन्ध का यह स्निग्ध गुण युक्त स्कन्ध के साथ बन्ध सम्भव है, अथवा छह रुक्ष गुण युक्त स्कन्ध से बन्ध संभव है।
७ - बन्ध की प्रक्रिया में संघात से उत्पन्न स्निग्धता अथवा रुक्षता में से जो भी गुण अधिक परिमाण में होता है। नवीन स्कन्ध उसी गुण रूप में परिणत होता है। उदाहरण के लिये एक स्कन्ध, पन्द्रह स्निग्ध गुण युक्त स्कन्ध और तेरह रुक्ष गुण स्कन्ध से बने तो वह नवीन स्कन्ध स्निग्ध गुण रूप होगा।
जीव और पुद्गल के पारस्परिक बन्ध की एक विशिष्ट परिभाषा है। जीव कषाय सहित होने के कारण जीव कार्मण वर्गणा के पुद्गल को ग्रहण करता है। इसी ग्रहण का नाम बन्ध है। " बन्ध या
७१ ७२ ७३ ७४
स्थानांग सूत्र स्थान -२ उदे -३ सू- ८२! तत्त्वार्थ सुत्र अ. ५ सू. २७! प्रज्ञापना सूत्र, परिणामपद १३ सूत्र - १८५! तत्त्वार्थ सूत्र अ. ८ सू. २!
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