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पर अभावों को समृद्ध करने के लिए : दूसरों की भी मंत्रों के प्रयोग से विद्यमान कमियों को दूर करने की कोशिश की जाती है। जैसे पुत्रवान होने 'चाह', मकान दुकान, रोजगार आदि होने की 'चाह'। मंत्रों के प्रयोग से दूसरों के समृद्ध होने की घटनाएँ सुनने को प्रायः मिलती है।
दूसरों को दुःख पहुँचाने या बदला लेने के लिए : कुछेक व्यक्ति इस वृत्ति के लिए प्रसिद्ध हो जाते हैं जो दूसरों के अहित के लिए मंत्रों का प्रयोग करते हैं। वे ऐसा इसलिए करते हैं जिससे कि उनके मन की ईर्ष्या कम हो जाए, किन्तु ऐसा हो नहीं पाता । बुरी भावनाओं के लिए मंत्रो का प्रयोग किया जाता है।
(२)
अलौकिक जीवन के लिए: (३) जिस प्रकार लौकिक जीवन के लिए मंत्रों का अपना महत्व है ठीक उसी प्रकार अलौकिक जीवन के लिए मंत्रों का महत्व है। शुभ उपयोग के लिए मंत्रों का किया गया प्रयोग अलौकिक जीवन के लिए अच्छा माना गया है।
(४)
(4) आत्म कल्याणार्थ : ‘अलौकिक जीवन' के लिए मंत्रों की महिमा महत्वपूर्ण बतायी गयी है । मंत्रों के द्वारा व्यक्ति का विवेक जग सकता है और विवेक के जागने पर समूचा उद्यम आत्म कल्याण के लिए उन्मुख हो जाता है । णमोकार महामंत्र इसी का एक महत्वपूर्ण उदाहरण है।
(६)
अर्जित कर्मों को क्षय करने के लिए : कर्म का भोग प्रत्येक प्राणी को भोगना पड़ता है। मंत्रों के माध्यम से भोगे जा रहे विगत कर्मों के समय, 'भावों' की शुचिता का महत्वपूर्ण योगदान, कर्मों के क्षय करने में मिल जाता है। 'भावों' के बिगड़ने पर कर्म पुनः संक्रामक रोग की तरह फैलते जाते हैं, मंत्रों के माध्यम से उनमें शुचिता विद्यमान हो जाती है।
अतः
व्यवहार में, चूँकि आज का युग भौतिकवादी युग है अतः लौकिक जीवन के लिए मंत्रों की उपयोगिता आवश्यक हो गयी है। कुछ व्यक्ति ऐसे होते हैं जो अपने निजी जीवन के लिए मंत्रों की सिद्धि करते हैं। वे अभावों में गरीबी के प्रभावों के दर्शन खोज लेते हैं । किन्तु, कुछ मंत्र ऐसे भी होते हैं जो अपने लिए ही नहीं, अपितु प्राणिमात्र के लिए प्रयोग किये जाते हैं। वास्तव में जैन धर्म में ऐसे ही मंत्रों की चर्चा की जाती है, जो अपेक्षित ही नहीं, अनिवार्य भी हैं।
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(८)
जैन साहित्य और मंत्र : जैन साहित्य में उन मंत्रों का भी उल्लेख मिलता है जो जीवन के बहुमुखी क्षेत्रों में प्रयोग किये जाते हैं। वास्तव में जैन धर्म में रूढिगत स्थितियाँ नहीं होतीं। यहाँ तो व्यक्ति के स्थान पर उसके गुणों की वंदना का पाठ पढ़ाया गया है। हम उनके गुण को धारण कर उन जैसे हो जाएँ, ऐसी स्थिति जैनधर्म और साहित्य के मूल में है । कुछेक मंत्रों का उल्लेख निम्न प्रकार किया जा सकता है।
(९ अ)
१. गर्भाधान क्रिया के मंत्र - “सज्जाति भागी भव, सद्गृहि भागीभव, मुनीन्द्र भागीभव, सुरेन्द्र भागीभव, परम राज्य भागी भव, आर्हन्त्यभागी भव, परम निर्वाण भागीभव”
२. प्रीति क्रिया के मंत्र - " त्रैलोक्यनाथो भव, त्रैकाल्वज्ञानी भव, त्रिरत्नस्वामी भव”
३. सुप्रीति क्रिया के मंत्र " अवतार कल्याण भागीभव, मंदरेन्द्राभिषेक कल्याण भागीभव,
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निष्क्रान्ति कल्याण भागीभव, आर्हन्त्य कल्याण भागीभव, परमनिर्वाण कल्याण भागीभव”
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