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“जब तेरी बद फेलियो का खातमा हो जायगा।
तब तेरी यह आत्मा ही परमात्मा हो जाएगा।" महान विद्वान आचार्य हरि
“संयबरो वा, आसक रोवा, बुद्धो वा तहे व अन्नोवा।
समभाव भावि अप्पा, लहह मोबरवं न संदेहो॥" अर्थात् चाहे श्वेताम्बर हो चाहे दिगम्बर चाहे बौद्ध हो या अन्य समता योग से भावित आत्मा ही मोक्ष प्राप्त करता है यह निस्संदेह सत्य है।
(९) समता योग में सच्चे सुख की उपलब्धि - समता धारण से तत्क्षण सच्चे सुख की उपलब्धि होती है। म. कबीर ने कहा है -
__ “जीवित समझो जीवित बूझो, जीवित मुक्ति वासा।
मुए मुक्ति गुरु लोभी बतावे, झूठा दे विश्वासा॥" ११ समता साधना से इसी भव में और वह भी बाद में नहीं तत्काल साधना के उसी क्षण मुक्ति के सुख की साधक अनुभूति कर लेता है। इसलिए यह समता योग धर्म उधार धर्म नहीं नगद धर्म है। जब भी समता में आओ तभी सुख पाओ। समता में अद्भुत शक्ति है। सामान्यतः सुखी वही होते हैं, जो पुण्य शाली होते हैं। किन्तु पुण्य विहीन दुखी आत्माएं भी, समता धर्म को अपना कर, पुण्य शलियों से भी अधिक सुखी हो जाती है। उसके सुख के आगे चक्रवर्ती और इन्द्र के सुख भी फीके पड़ जाते हैं। कहा
है -
“तीन ट्रक को पिन के, रोठी किन भाजी बिन जण।
जो सुख हो समभाव का, इन्द्र बिचारा कूण॥" । समता योग से प्रापृत् सुख अनुत्तर होता है। उसके आगे संसार के अन्य सारे पौगलिक सुख तुच्छ है। कहा है -
“तन सुख, मन सुख, मान सुख, भले अर्थ सुख होय।
पर समता सुख परम सुख, ऐसा सुख ना कोय॥" समता योग साधना का महत्व -
“समता से सुख स्वर्ग मोक्ष का, जो रमता वह पाता है। समता की ज्योति पाकर के, पाषी भी तिर जाता है।
समता अनुपम देन प्रभु की, यह चिन्तामणि मोती है।
इस भूतल पर स्वर्ग देख लो, जहाँ समता की ज्योति है।* १२ ११ म. कबीर के पदों से। १२. स्वरचित मुक्तक।
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