________________
समूची आधुनिक भाषाओं को जन्म दिया और उनके विकास में महत्वपूर्ण योगदान दिया । एकात्मकता जीवन का सौंदर्य है। जैन संस्कृति ने जीवन को पुष्पित- फलित बनाने के शाश्वत साधन प्रस्तुत किये हैं। जीवन की यथार्थता प्रामाणिकता से परे होकर नहीं हो पाती। साध्य के साथ साधनों की पवित्रता भी आवश्यक है। साधन यदि पवित्र और विशुद्ध नहीं होंगे, सही नहीं होंगे तो उससे उत्पन्न होने वाले फल मीठे कैसे हो सकते हैं? जीवन की सत्यता ही धोखा - प्रवंचना जैसे असामाजिक तत्वों का उसके साथ कोई सामंजस्य नहीं । धर्म और है भी धर्म का वास्तविक संबंध खान-पान और दकियानूसी विचारधारा से जुड़े रहना नहीं, वह तो ऐसी विचार क्रांति से जुड़ा है जिसमें मानवता और सत्य का आचरण कूट-कूट कर भरा है। एकात्मकता और सर्वोदय की पृष्ठभूमि में जीवन का यही रूप पलता - पुसता
बीज यदि धर्म है।
क्या ?
है।
आज की भौतिकताप्रधान संस्कृति में जैन धर्म सर्वोदयतीर्थ का काम करता है। जैनधर्म वस्तुतः एक मानव धर्म है उसके अनुसार व्यक्ति यदि अपना जीवन रथ चलाये तो वह ऋषियों से भी अधिक पवित्र बन सकता है। श्रावक धर्म की विशेषता यह है कि उसे न्याय पूर्वक धन-सम्पत्ति का अर्जन करना चाहिए और सदाचारपूर्वक अपना जीवन व्यतीत करना चाहिए। सर्वोदय दर्शन में परहित के लिए अपना त्याग आवश्यक हो जाता है जैनधर्म ने उसे अणुव्रत किंवा परिमाणव्रत की संज्ञा दी है इसमें श्रावक अपनी आवश्यकतानुसार सम्पत्ति का उपभोग करता है और शेष भाग समाज के लिए बांट देता है।
प्रस्थापक
सर्वोदय और विश्व बंधुत्व के स्वप्न को साकार करने में भगवान महावीर के विचार निःसंदेह पूरी तरह सक्षम है। उनके सिद्धांत लोकहितकारी और लोकसंग्राहक हैं। समाजवाद और अध्यात्मवाद है। उनसे रामाज और राष्ट्र के बीच पारस्परिक समन्वय बढ़ सकता है और मनमुटाव दूर हो सकता है। इसलिये ये त्रिश्वशांति को प्रस्थापित करने में अमूल्य बन सकते हैं। महावीर इस दृष्टि सही दृष्टार्थ और सर्वोदयतीर्थं के सही प्रेणता थे । मानव मूल्यों को प्रस्थापित करने में उनकी यह विशिष्ट देन है जो कभी भुलायी नहीं जा सकती।
इस संदर्भ में यह आवश्यक है कि आधुनिक मानस धर्म को राजनीतिक हथकंडा न बनाकर उसे मानवता को प्रस्थापित करने के साधन का एक केन्द्रबिंदु माने । मानवता का सही साधक वह है जिसकी समूची साधना समता और मानवता पर आधारित हो और मानवता के कल्याण के लिए उसका मूलभूत उपयोग हो। एतदर्थ खुला मस्तिष्क, विशाल दृष्टिकोण, सर्वधर्म समभाव और सहिष्णुता अपेक्षित है। महावीर के धर्म की मूल आत्मा ऐसे ही पुनीत मानवीय गुणों से सिंचित है और उसकी अहिंसा वंदनीय तथा विश्वकल्याणकारी है। यही उनका सर्वोदयतीर्थ है।
Jain Education International
*****
(१२६)
न्यू एक्सटेंशन एरिया, सदर, नागपुर ४४० - ००१
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org