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सूक्ष्म वस्तु की अपेक्षा किसी दूसरी वस्तु को स्थूल कहा जाता है। स्थूलता और सूक्ष्मता के आधार पर पुद्गल को छह वर्गों में विभाजित किया जा सकता है। ये छहों भेद स्कन्ध को दृष्टि में रखते हुए किये १५ गये हैं।
१ - स्थूल-स्थूल लकड़ी, पत्थर आदि जैसे ठोस पदार्थ इस वर्ग में आते हैं। २ - स्थूल- इस वर्ग में जल, तेल आदि द्रव्य पदार्थ आते हैं। ३ - स्थूल -सूक्ष्म - प्रकाश, छाया, अन्धकार आदि जैसे दृश्य पदार्थ इस वर्ग में आते हैं।
४ - सूक्ष्म -स्थूल ऐसे पदार्थ इस वर्ग में आते हैं। जिन्हें हम नेत्र इन्द्रिय से तो नहीं जान पाते, लेकिन शेष चारों में से किसी न किसी इन्द्रिय द्वारा अवश्य जान सकते हैं।
५ - सूक्ष्म - शास्त्रीय भाषा में जिन्हें कार्मणवर्गणा कहते हैं। उन पुद्गलों को इस वर्ग में रखा गया है। ये वे सूक्ष्म हैं। पर स्कन्ध अवश्य है। जो हमारी विचार-क्रिया जैसी क्रियाओं के लिये अनिवार्य है। हमारे विचारों और भावों का प्रभाव इन पर पड़ता है। तथा इन का प्रभाव जीव द्रव्य एवं अन्य पुद्गलों पर पड़ता है।
६ - सूक्ष्म -सूक्ष्म - कर्मवर्गणा से भी अति सूक्ष्म!
एक अन्य दृष्टि से पुद्गल के तेवीस भेद भी किये जाते हैं। ५६ इन भेदों को शास्त्रीय भाषा में वर्गणाएँ कहते हैं। उन में से आठ मुख्य वर्गणाएँ हैं, और इन के अनेक उपभेद १७ भी होते हैं। अष्ट विधि वर्गणाएँ इस प्रकार हैं। १. औदारिक वर्गणा!
५ - कार्मण वर्गणा! २ - वैक्रिय वर्गणा!
६ - श्वासोच्छ्वास वर्गणा! ३ - आहारक वर्गणा!
७ - भाषा वर्गणा! ४ - तेजस् वर्गणा!
८ - मनो वर्गणा! १ - औदारिक वर्गणाए - स्थूल पुद्गल - पृथ्वी, पानी, अग्नि, वायु, वनस्पति और त्रसजीवों के शरीर निर्माण योग्य पुद्गल समूह!
२ - वैक्रिय वर्गणा - छोटा बड़ा, हल्का भारी, दृश्य-अदृश्य आदि विविध क्रियाएँ करने में समर्थ शरीर के योग्य पुद्गल-समूह!
३ - आहारक वर्गणा - योग शक्ति जन्य शरीर के योग्य पुद्गल - समूह! ४ - तैजस वर्गणा - विद्युत परमाणु समूह!
- क- गोम्मटसार, जीव काण्ड गाथा -६०२! नेमिचन्दजी सिद्धान्त चक्रवर्ती।
ख- नियमसार गाथा -२१-२४ आचार्य कुन्दकुन्द! ५६ गोम्मटसार, जीव काण्ड -५९३, ५९४! ५७ गोम्मट सार जीव काण्ड ५९५!
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