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सरलता की प्रतिमूर्ति
• किशनलाल बेताला, 'काका' मद्रास अध्यात्मयोगिनी, सरलमना, शांति और क्षमा की प्रतिमूर्ति, मेरी आस्था के केन्द्र श्रद्धेय गुरुवर्या श्री कानकुंवरजी म.सा., परम विदुषी, ओजस्वी व्याख्यात्री, महासती श्री चम्पाकुंवरजी म.सा. जिनसे मैं वर्षों से परिचित हूँ। काफी वर्षों के पश्चात् मुझे मद्रास में सेवा का अवसर प्राप्त हुआ।
मरुधरा की पावन भूमि में जिन्होंने जन्म लिया, मध्यप्रदेश की धरती पर पालन पोषण हुआ और मद्रास की धरा पर पाँच वर्ष तक अस्वस्थ रहने के कारण चातुर्मास का अवसर मिला। किंतु किसे मालूम था कि तमिलनाडु के प्रसिद्ध महानगर मद्रास में ही उनका अंतिम विचरण होगा। यहाँ आने पर जन-जन के मन में खुशियाँ छा गई थी कि पूज्या गुरुवर्याश्री सुदूरप्रांत से विहार कर पधारी हैं।
जब भी उनके निकट दर्शनार्थ जाता तो बड़ी शांति और प्रेम के साथ सभी के साथ वार्तालाप करते पाता। उनके लिए चाहे बच्चा हो युवा हो या वृद्ध सभी समान थे और सब को अपना मानते थे
और सब के साथ मधुर-मधुर बातें करके उनका मन मोह लेते। जो भी व्यक्ति आपके एक बार दर्शन कर लेता, उसे स्वयं ही पुनः दर्शनार्थ आना पड़ता, ऐसा आकर्षण था उनके व्यक्तित्व में। वे शांति और सरलता की प्रतिमूर्ति थे। मुझ पर तो उनकी असीम कृपा थी। उनके गुणों का वर्णन करना मेरे सामर्थ्य की बात नहीं है। न ही मेरे पास वे शब्द हैं जिनके द्वारा मैं गुरुवर्या के गुणों का वर्णन कर सकू।
आपश्री से हार्दिक प्रार्थना है कि आपकी आत्मा जहाँ भी हो, मुझे आशीर्वाद प्रदान करें। मैं अपनी ओर से एवं अपने समस्त परिवार की ओर से हार्दिक श्रद्धांजलि अर्पित करता हूँ -
आज वे नहीं है उनकी याद रह गई है शेष। जन जन को जगा रहे हैं आपके दिये उपदेश ॥ रो रहा अन्तर्मन, सूख गये अश्रु सब जगा रहा जगति को आपका पावन सन्देश।
अविस्मरणीय जीवनः व्यक्तित्व
• (डॉ. मानमल सुराणा) परम विदुषी महासतीजी श्री चम्पाकुंवरजी का जन्म नागौर (राज.) जिले के समृद्धिशाली ग्राम कुचेरा में हुआ था। वह दिव्य दिवस धन्य हुआ था हम सब के लिए। ओसवंश के सुराणा कुल में उत्पत्र इस कोमल कली का विकसित रूप किसने सोचा था उस समय। आप में अल्पकालीन समय में लघुवय में
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