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दिवारें खड़ी कर ले, पर इस अविचारपूर्ण कार्य में उसका अन्तर संतोष का अनुभव नहीं करता। जो आनंद प्रेम में है, जो प्रसन्नता हवादार विशाल भवनों में निवास करने वालों को मिलती है, वह आनन्द संकीर्ण, कोलाहल पूर्ण कोठरियों में रहने वालों के भाग्य में कहाँ है।
साम्प्रदायिकता की खोखली दिवारें जैन समाज के हृदय को कचोट रही है। समाज के सत्व को दीमक की तरह चाट रही है। जैन समाज आज एक होने के लिए बीच में खड़ी इन साम्प्रदायिक दिवारों को गिराने के लिए तड़प रहा है। परन्तु मार्गदर्शकों की अहं भावना इस तड़प को मिटने दे तब न? कभी कभी इन दिवारों को तोड़ने का भी प्रयास किया जाता है। तो वहां बड़े छोटे का प्रश्न उपस्थित हो जाता है। बड़े छोटों की बराबरी में कैसे बैठेगें? ऐसी सामान्य बात बीच में व्यवधान बन जाती है। अतः जब कभी भी समाज के समक्ष सार्वजनिक सम्मेलन, सर्वधर्म सम्मेलन जैसे कार्यक्रमों का आयोजन करने का अवसर उपलब्ध होता है तो जन-जन के हृदय में हर्ष एवं आनन्द की लहरें उत्पन्न हो जाती है। जनता ऐसे समय में भाव विभोर हो जाती है।
सर्वधर्म सम्मेलन- सिकन्दराबाद में एक विशाल प्रागंण में सर्वधर्म सम्मेलन का आयोजन किया गया था। इस सम्मेलन में सभी धर्मों के धर्मगुरुओं के प्रवचन हुए। इस अवसर पर पू. गुरुवर्या का भी सारगर्भित प्रवचन हुआ। एकता और समन्वय की भावना से ओतप्रोत आपके प्रवचन की सभी उपस्थित धर्मगुरुओं और प्रबुद्ध श्रोताओं ने भूरि-भूरि प्रशंसा की।
पू. गुरुवर्या के हृदय में प्रेम का सागर हिलोरे ले रहा था। अतः आप जहां भी पधारती, जनता पर आपकी अमिट छाप अंकित हो जाती थी। कोई राम को मानने वाला हो, या रहीम को। भले ही महावीर का भक्त हो या बुद्ध का। ईसा का उपासक हो अथवा कृष्ण का पुजारी। आपके हृदय में सभी के प्रति समान भाव थे। किसी के प्रति लेशमात्र भी द्वेष नहीं था। आप सभी धर्मों का परस्पर समन्वय अनिवार्य मानती थी। समन्वय ही आपका जीवन का लक्ष्य था। एकान्त पक्ष, विरोध, आलोचना, दुराग्रह, कदाग्रह आदि भावना आपमें बिल्कुल नहीं थी। आप कभी भी किसी का विरोध नहीं करते थे। सर्वधर्म सम्मेलन में जो प्रशंसा आपको मिली उसका कारण आपमें इन्हीं गुणों का होना है।
कर्नाटक की ओर :- वर्षावास समाप्त हुआ तो सिकन्द्राबाद श्रीसंघ ने बिदाई समारोह का आयोजन किया। इस अवसर पर जितने भी वक्ताओ ने अपने विचार व्यक्त किये उनके हृदय भर आये। यहां तक कि अनेक श्रोताओं के हृदय भी बिदाई समारोह में भर आये। इस अवसर पू. गुरुवर्याश्री ने अपने विचार व्यक्त करते हुए फरमाया कि सभी को प्रेम की डोर में बांधकर एकता से रहते हुए धर्म की उन्नति करना है। आपस के भेदभाव को त्याग कर सभी को समान भाव से सेवा करना है। आपके इस सारगर्भित प्रवचन का जनता पर अनुकूल प्रभाव हुआ।
सिकंद्राबाद से आपका विहार कर्नाटक की ओर हुआ। ग्राम-ग्राम, नगर-नगर, धर्म का दीप प्रज्वलित करती हुए आप रायचूर पधारी। यहां पर आपकी सेवा में होली चातुर्मास के लिये आग्रह भरी विनती हुई। यही श्रीसंघ बेंगलौर, श्रीसंघ मद्रास आदि अनेक स्थानों के श्रीसंघ भी अपने अपने यहां वर्षावास करने की स्वीकृति प्राप्त करने के लिये उपस्थित हुए। इस समय पू. दादगुरुवर्या महासतीश्री कानकवरजी म.सा. अस्वस्थ थी साथ ही एक छोटी महासतीजी का स्वास्थ्य भी ठीक नहीं था। स्वास्थ्य तथा अन्य बातों का ध्यान रखते हुए पू. गुरुवर्याश्री ने श्रीसंघ सिंधनूर को वर्षावास की स्वीकृति प्रदान कर दी। श्रीसंघ, सिंधनूर में इस स्वीकृति से प्रसन्नता की लहर फैल गई।
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