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आदि में एक होने वाले कंधे से कंधा मिलाकर चलने वाले, रोटी, बेटी व्यवहार नि:संकोच कर लेते है। तो फिर धर्म के मामले में पीठ क्यों फेर लेते है। साथ साथ खाना, साथ साथ रहना, घूमना फिरना, सोना बैठना आदि सभी व्यवाहार साथ-साथ होते है। और जहां धर्म की बात आई कि तेरा मेरा कहकर अलग अलग हो जाते हैं।
बंधुओ ! आज से प्रतिज्ञा कीजिये एक दूसरे की निन्दा न करने की, एक दूसरे की जड़े न काटने की। वर्षों से नहीं सदियों से हम एक दूसरे को मिटाने का प्रयास करते आ रहे हैं। पर क्या कोई किसी को मिटा सका? नहीं, सब सीना तानकर खड़े हैं। हमारी शक्ति, हमारा समय हमारा विवेक बेकार हो गया। ऐसे प्रयासों से क्या लाभ । याद रखो हम महावीर की संतान है, हम सौतेले नहीं, सगे भाई बहन हैं। इसलिये भेदभाव को सदा के लिये मिटा देना हैं।"
पू.गुरुवर्याश्री की प्रवचन धारा बहती रही और श्रोतागण मंत्रमुग्ध होकर उसका पान करते रहे। इस सभा में अनेक वक्ताओं ने भी अपने विचार व्यक्त किये थे। सभी महासतियों के साथ जैन भवन से बाहर पधारे जन जन की जिव्हा पर एक ही बात थी यह तो साक्षात् सरस्वती का रूप है । मानों एक शब्द अनुभव तुला पर तुलकर विस्तृत रूप लेता जा रहा था।
दीक्षोत्सव :- इस वर्ष पूज्य प्रवर्तक श्री रूपचंदजी म.सा. 'रजत' के मुखाबिन्द के कांग्रेस ग्राउंड पर अपार जन मेदिनी की उपस्थिति में चौदह वर्षीया बालिका कुमारी सुनीता पींचा निवासी कटंगी मध्य प्रदेश को आहती दीक्षा प्रदान की गई। इस दीक्षा महोत्सव के अवसर पर पूज्य मरुधरकेशरी जी म.सा. के शिष्य तथा आज्ञानुवर्ती मुनिभगवंतों के अतिरिक्त स्व. युवाचार्य श्री मधुकर मुनिजी म.सा. के शिष्य श्री महेन्द्र मुनिजी म.सा. 'दिनकर' अध्यात्म योगिनी, महासती श्री कानकुंवरजी म.सा. परम विदुषी कुशल प्रवचनकर्ती महासतीश्री चम्पाकुंवर जी म.सा. आदि ठाणा, लिम्बड़ी सम्प्रदाय की साध्वीजीश्री रश्मिनाकुमारी जी म.सा. आदि ठाणा, साध्वीजी श्री शांताकुवरजी म.सा. आदि ठाणा एवं साध्वीजी श्री निर्मलकुंवरजी म.सा. आदि ठाणा ३ की विशेष रूप से उपस्थिति रही। दीक्षा महोत्सव में पधारकर सभी मुनि भगवंतों तथा महासतियों जी ने दीक्षोत्सव की शोभा में चार चांद लगाये।
___इस अवसर पर सभी वक्ताओं ने दीक्षार्थी बहन को संयम की गरिमा बढाने के लिये अपने आशीर्वाद तथा शुभकामनाएं दी। इस समय दीक्षार्थी बहन की प्रसन्नता असीम थी। क्योंकि वह अनमोल जीवन जीने के लिये संयम के पथ पर अग्रसर हो रही थी। वह आज जिन शासन के प्रति समर्पित हो गयी। यह दीक्षोत्सव दिनांक १४-१०-८८ को संपन्न हुआ। नवदीक्षिता साध्वीजी का नाम महासती श्री सुमनसुधाजी म.सा. घोषित कर उन्हें परमविदुषी महासती श्री चंपाकुवंरजी म.सा. की शिष्या घोषित किया।
पूज्य दाद गुरुवर्याश्री की अस्वस्थता के कारण मद्रास में ही आपश्री ने चार वर्षावास व्यतीत किये । वि.सं. २०४७ का वर्षावास समाप्त हुआ कि मद्रास के आस पास के क्षेत्रों में विनती आने लगी। पू. गुरुवाश्री के समक्ष महासतीश्री कंचनकुंवरजी, महासती श्रीचेतनाजी एवं मैंने निवेदन किया कि एक स्थान पर रहते काफी समय व्यतीय हो गया है। श्रमण संघीय सलाहकार पू. तपस्वीरत्न श्री सुमति प्रकाश जी म.सा. पू.उपाध्यायश्री विशाल मुनिजी म.सा. आदि मुनि मंडल का विहार कन्याकुमारी की ओर हो रहा है। आपश्री की आज्ञा हो तो हम भी कन्याकुमारी तक विचरण कर आवें। हमारी भी भावना उन क्षेत्रों में विचरण करने की हो रही है। पूगुरुवाश्री ने फरमाया “विचार करेंगे। आपश्री ने फरमाया "बड़े मसा(महासती श्री कानकंवरजी म) अस्वस्थ रहते है। तुम जाओ। किन्तु ध्यान
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