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गिरते हुए देखा तो उसका उपहास नहीं उड़ाया अपितु अपनी पवित्र उपदेशामृत से ऐसी प्रशान्ति प्रदान की कि वासना का सर्प फिर कभी न फुफकारा। संयम के मार्ग पर रथनेमि के भटकते कदमों को राजमति ने स्थिर किया। राजमति की अदम्य तेजस्विता स्तुत्य है। भगवान् महावीर स्वामी के शब्दों में राजुल के उपदेश से रथनेमी सत्पथ पर वैसे ही चल पड़ते हैं, जैसे उत्पथगामी मस्तहस्ती अंकुश से नियंत्रित हो जाता है। "अंकुसेण जहाँ नागो धम्मे संपडिवाइओ"
श्रमण संस्कृति में नारी की गरिमा आदिनाथ से महावीर युग तक अक्षुण्ण रह सकी। महावीर ने चन्दनबाला के माध्यम से उस परम्परा को एक नवीन मोड़ प्रदान किया। तदुपरान्त ही साधु और श्रावक के साथ साध्वी और श्राविका संघ की स्थापना की। साधना के पथ पर नारी ने नव कीर्तिमान स्थापित किये। पुरुषों की अपेक्षा नारियों की संख्या सदा ही बढ़कर रही। नारी ने अपने अडिग साधना द्वारा यह प्रमाणित कर दिया कि वह किसी भी दृष्टि से पुरुष से पीछे नहीं है - "एक नहीं दो-दो मात्राएं नर से बढ़कर नारी।" भ. महावीर के चतुर्विध संघ में कुल चौदह हजार साधु एवं छत्तीस हजार साध्वियां थी। एक लाख उनसठ हजार श्रावक और तीन लाख अठारह हजार श्राविकाएं थी। चन्दनबाला ने छत्तीस हजार आर्याओं के विराट एवं दिव्य श्रमणी संघ का नेतृत्व किया। चन्दनबाला जैन साहित्य में एक प्रतीक के रूप में प्रतिष्ठित है। दासत्व की जंजीरों से वह भगवान् महावीर स्वामी की अनुकम्पा से मुक्त हुई और उसने अध्यात्म पथ पर संयम की रंगोली सजायी।
वस्तुतः आर्य चन्दनबाला की कहानी भारतीय नारी के संघर्षों के सागर के उस पार जाने के अतुलनीय साहस का प्रमाण है।
मनीषियों ने आध्यात्मिक निर्देशनों की दृष्टि से चन्दनबाला को गणधर गौतम के समकक्ष माना। कल्पसूत्र इसके लिए प्रमाण-स्वरूप है, जिसमें बताया गया है कि साधु संत में सात सौ श्रमण केवल ज्ञान पाकर सिद्ध हुए है। जबकि संघ में सात सौ श्रमण केवल ज्ञान पाकर सिद्ध हुए है। जब कि श्रमणी संघ में चौदह सौ श्रमणियां सिद्ध बुद्ध मुक्त हुई। इसका यह अर्थ है कि आर्य चन्दना का शासन कितना अधिक स्वच्छ, निर्मल, सशक्त एवं सक्षम था और इसके मूल में स्वयं भगवान महावीर है, उनका तत्वज्ञान एवं धर्म शिक्षण।
श्रमण भगवान् महावीर ने नारी में विद्यमान दिव्य गुण को पहचाना और उसकी गरिमा के प्रतिष्ठापन की दृष्टि से महत्वपूर्ण भूमिका निभायी।
भगवान् महावीर स्वामी के सन्देश में नारी के लिये अमृत बिन्दु छलके हैं। आध्यात्मिक, सामाजिक एवं शैक्षणिक दृष्टि से उसके लिये विकास के नव सोपान स्थापित किये।
साध्वी श्री सुयशा का यह कथन जैन श्रमणी के लिये सार्थक सिद्ध होता है-"नारी न सहसा विद्रोह कर सकती है और न दब बनकर ही रह सकती है। उसका अपना एक स्वाभिमान है. जिसकी कोई 'इदमित्यं' जैसी ऐकान्तिक व्याख्या नहीं हो सकती। नारी सर्वथा नवीन क्रान्ति की निर्मात्री अभिनव ब्रह्माणी है। जीवन के हर नये मोड़ पर नारी की एक अनोखी ही नवनिर्मित होती
नारी को अबला और बंदिनी कह कर उसका उपहास करने वाले को जैन शिरोमणियों ने निरून्तरित किया है। एक कवि का कथन है - “कोमल है कमजोर नहीं तुम शक्ति का नाम नारी है,
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