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कई शताब्दियाँ बीत गई। चन्दनबाला के संघ-शासन में एक से एक जिन धर्म प्रभाविक श्रमणियाँ (वर्तमान दृष्टि से पृथक-पृथक सम्प्रदायों में) हुई। वर्तमान में कुछ वर्षों पूर्व से भी अनेकानेक जिन शासन
याँ जैन जगत् में विद्यमान है। कोई विद्याध्ययनाध्यापन, पठन-पाठन, लेखन-धर्म प्रवचन करने में दक्ष है। कई सफल लेखिका, तपस्विनी है। कई तपोपूत साध्वियाँ हिंसकों को अहिंसक व व्यसनियों को अव्यसनी बनाने में कटिबद्ध रही है। कई महाभागा श्रमणियों ने धर्म के नाम पर पशु बलियाँ होती थी उसे बन्द करवाई। ऐसे कार्यों में भी वे सदैव तत्पर रही, तथा है।
जैनाचार्य महान आदर्श पूज्य प्रवर जयमल जी भ. की आज्ञानुशासन में विचरने वाली श्रमण संघ में आस्था रखने वाली, मरुघरा मंत्री स्व. स्वामी श्री हजारी मलजी द्वारा दीक्षिता व अध्यात्मयोगिनी महा. श्री कानकुंवर जी म. व उनकी शिष्या श्री चम्पाकुंवर जी म. भी इसी श्रमणी-संघ-श्रृंखला में हो गई। जिनका जीवन तप-त्याग मय रहा है। करीब ६०/४३ वर्ष संयम पर्याय में रहकर व लगभग ८०/६४ वर्ष की वय पर्यंत अनेकों भाषाओं जैनागम-सिद्धान्तों से समन्वित होकर धर्म-संघ शासन, श्रमणसंघ की सेवा की है। समाजोत्थान में जो सदैव अग्रसर रही है। उन्हीं की पावन स्मृति में प्रकाशित होने वाले स्मृति ग्रंथ के प्रति मेरी शुभ कामना।
अतीत की प्रमुख जैन साध्वियाँ महान प्रभाविका रही हैं। वैसे ही वर्तमान में है और भविष्य में । भई रहेगी।
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सामायिक
सामायिक का एक मुहुर्त (४८ मिनट) काल सिर्फ एक व्यावहारिक सीमा है, वास्तव में तो समभाव में | जब तक आत्मा स्थिर रहे तब तक सामायिक की जा सकती है। समभाव की अनुभूति करना सामायिक है। मन, वचन और कर्म तीनों योगों को समस्थिति में लाना ।। रखना सामायिक है। जिस प्रकार कोई व्यक्ति अपराध करके उसके कटु परिणामों से बचने के लिए ईश्वर की शरण में जाती है। उसकी प्रकार मनुष्य पाप करने के बाद यदि शुद्ध मन से सामायिक की शरण ग्रहण करके (सामायिक - साधना करले) तो पापों से अवश्य ही उसकी मुक्ति (विशुद्धि) हो जाती है।
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स्व. युवाचार्य श्री मधुकरमुनि
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