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“विद्या के साथ विनय, अधिकार के साथ विवेक; प्रतिष्ठा और लोक श्रद्धा के साथ सरलता आदि ऐसी अदभुत बाते हैं जो किसी विरले में ही पायी जाती है। श्वेताम्बर स्थानकवासी जैन समाज के महान संत श्रमण संघ के युवाचार्य मुनि श्री मिश्रीमल जी म. में ये विरल विशेषताएं देखकर मन श्रद्धा और आश्चर्य से पुलक-पुलक हो जाता है। उनके जीवन में गहरे पेठकर देखने पर भी कहीं कटुता,विषमता, छलछिद्र, अहंकार आदि के कांटे नहीं मिलेंगे। वे बहुत ही सरल (पर, चतुर), बहुत ही विनम्र (पर, स्वाभिमानी), बहुत ही मधुर (पर, निश्चल) और अनुशासन प्रिय (पर, कोमल हृदय) श्रमण हैं जिन्हें देखकर सहसा यह कहना पड़ेगा, यह बिना कांटे का गुलाब है। एक ऐसा गुलाब का फूल जिसमें सुगन्ध और सौन्दर्य है, मगर उसमें कांटे नहीं हैं।"
_ “शरीर से कृश, दुबले-पतले, मझला कद गौरवर्ण भव्य तेजस्वी ललाट, चमकदार बड़ी बड़ी आंखे, मुख पर स्मित की खिलती आभा और स्नेह तथा सौजन्य वर्षाती कोमलवाणी, प्रथम परिचय में ही अपना अमिट प्रभाव डाल देती है, उनसे बातचीतर करो, तो ध्यानपूर्वक, मंदस्मित के साथ सुनते रहेंगे, जैसे प्रश्नकर्ता के प्रति उनकी गहरी दिलचस्पी है और फिर नपे-तुले शब्दों में ऐसा सटीक उत्तर देंगे कि प्रश्नकर्ता निरुत्तर नही, संतुष्ट हो जाता है। आत्मा से आत्मा का स्पर्श होने जैसे अनुभूति उनके कुछ ही क्षणों के सहवास में होने लगती है।” (युवाचार्य श्री मधुकर मुनिः व्यक्तित्व एवं कृतित्व, पृष्ठ ४७)
युवाचार्य श्री विनम्रता की साक्षात मूर्ति थे। अहंकार और साधुता का परस्पर वैर है। धर्म का मूल ही विनय है। युवाचार्य श्री नम्र ही नही, विनम्र थे। उनके जीवन के कण-कण में और अणु-अणु में विनय का महान गुण समाया हुआ था। युवाचार्य श्री का जीवन बहुआयामी था। वे गुणी भी थे और गुणानुरागी भी थे। ऐसे व्यक्ति विरले ही होते हैं। उनके गुणों के सम्बन्ध में जितना भी लिखा जाये कम हैं।
__ साहित्य सजन:- युवाचार्य श्री मधुकर मुनि एक उच्चकोटि के साहित्यकार भी थे। उन्होंने अपने आपको केवल अध्ययन तक ही सीमित नहीं रखा। (अपने अध्ययन से उन्होंने जो प्राप्त किया उसे जन जन तक पहुंचाने के लिये उन्होंने लेखन भी किया और अपने लेखन को पुस्तकाकार स्वरूप में प्रस्तुत कर जन-जन के लिए सुलभ भी बनाया।
आगम साहित्य के प्रति उनकी रूचि सर्वविदित हैं। वे आगमों को हिन्दी अनुवाद के साथ ही विषय विवेचना के साथ सामान्य जनता के लिये प्रस्तुत करना चाहते थे। अपने इसी उद्देश्य की पूर्ति के लिये आपने जैन आगम प्रकाशन संस्था की स्थापना की और एक महान कार्य का आरंभ करवाया। उनके जीवनकाल में अधिकांश आगम प्रकाशित हो चुके थे। क्रूरकाल ने उनका स्वप्न पूरा नहीं होने दिया, किंतु उनके अनुयायी वर्ग ने उनके इस अधूरे कार्य को पूरा कर दिया है। जैन आगम प्रकाशन समिति, ब्यावर से आगम बत्तीसी का प्रकाशन पूर्ण हो चुका है और सम्पूर्ण भारत में इस आगम बत्तीसी की मुक्त कंठ से प्रशंसा की जा रही है। आज स्थिति यह है कि आगमों के नये नये संस्करण छपवाने पड़ रहे है। यही इनकी लोकप्रियता है।
__ जैनधर्म और दर्शन से संबंधित भी आपने अनेक पुस्तकें सुबोध भाषा शैली में लिखकर जैनधर्म के प्रचार और प्रसार के लिये महत्वपूर्ण योगदान दिया है।
__ जैन कथाओं को नये ढंग से प्रस्तुत कर आपने कथायें लिखी। इस प्रकार की कथाओं के आपके इक्वावन भाग जैन कथामाला के नाम से प्रकाशित हो चुके हैं।
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