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सांची श्रद्धा
- एक जाट और एक जाटनी की दोनुं खेता में काम करन जावता और जाटनी रोज भात्तो लेर ज़ावती। एक बार मंदर मां भजन कीर्तन हो रह्या हा। लोग क्यो, अरे जाट! खेत री कमाई तो रोज ही कर पण मंदर मां भगवान को नाम तो लियां कर, तो थारों कल्याण हुजई। लोग घणो कयो। जणा एक दिन जाट और जाटनी भी भजन करवा ने बैठ गया। मन माइने भगवान रे माथे भावना रेवे तो एक दिन में ही श्रद्धा बैठ जावे। अब घरे आवे और खेतां जावे, रात दिन जाट के के भज राम भज राम और जाटनी के के भज सीता सीता। इण तरह बार बार रटन लगायोड़ी राखे और भगवान ने ध्यावे। ए कर जाटनी भैंस दुह ही तो पाड़ो सरकियो कोनी। जणा भज सीता, भज सीता करती करती भज पाड़ा, भज पाड़ा इण तरह रटन और मन में सोच के खेत जाऊं। जणा जाट ने पूछ लेईं। पण वठि ने जाट खेत खडे हो जणा खड़ता खड़ता एक लकड़ी रो ठंठों आड़ो आयग्यो। ढूंठो निकाल्यो कोनी, जणा जाट भज राम भज राम करतो करतो भज ढूंठा, भज ढूंठा करण लाग्यो। वो भी मन में जाण्योंक जाटनी आई जणा पूछ लेऊ। अठि ने भाता री टेम हुत्ताई जाटनी आयगी। और दोनूं मुंडा देख, दोनों ने ही नाम आवे कोणी। जणा नेम ले लियो क जठताई सही नाम याद नहीं आवे जिते रोटी ही खांवा कोनी। भातो छीका पर रख दियो और दोनूं जणा रट लगाई। जाट केवे भज ढूंठा, भज ढूंठा। जाटनी केवे भज पाड़ा, भज पाड़ा। दोनूं रटे और रटतां रटतां तीन दिन हुग्या। अठिने राम सीता आपरे विमान कठई जावता। जावता जावता बात करे क देख्यो। सीता जी म्हारा भक्त कित्ता श्रद्धालु है। सीता कियो - दिखायो सरी। रोज केवो म्हारा भक्त म्हारा भक्त। आज दिखाओं जणा रामचंद्रजी कियो में अठी ही खड़े में हूं और थे जावों जणा सीता आगे गई और जाट जाटनी रे कने जायने केवे के किने जपो। जणा वो बोल्यो जपां थारा मांटी ने गुस्सा में तो हाई। जणा पूछो के मारो माटी कठे। केवे वो पड्यो पोड़ा में जणा खड़ाऊ निकाल ने रामचंद्र जी आया और दर्शन करने किये अब म्हारो नाम थे कोणी भूलो। साची श्रद्धा ही जणा रामचंद्रजी और सीता सेन रूप प्रकट हुईग्या और अब वे दोनों तीन दिन रा भूखा तो ही हो। घर आयने खाणों खायो और भगवान को नाम रोजीना ही लेवे। केण को मतलब ओ ही है कि श्रद्धा बिना भगवान मिले कोणी। तो सांची श्रद्धा राखो तो सब काम ठीक हु जावे।
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