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पदार्पण बालाघाट में हुआ, उस समय वर्षावास भी आरम्भ होने वाला था, इस प्रकार वर्षावास हेतु बालाघाट की जनता ने समारोह पूर्वक हर्षोल्लास भरे वातावरण में आपका बालाघाट में प्रवेश करवाया।
बालाघाट वर्षावास- वर्षावास हेतु बालाघाट में प्रवेश होने के साथ ही धार्मिक क्रियाएं प्रारम्भ हो गई। बालाघाट की जनता धार्मिक संस्कारों से संस्कारित होने से बालक/बालिकाएं भी धार्मिक क्रियाओं में सम्मिलित हुए। स्वयं अध्ययन करना जितना सहज है, उतना अध्यापन कार्य नहीं । अध्ययन में जहाँ निज के लिए निज को खपाना पड़ता है, वहां अध्यापन में पर के लिए निज को खपाना पड़ता है।धर्यपूर्वक लगन के साथ समझाने में रुचि रखना, अपनी समझ सूझ-बूझ को नियंत्रित रखकर विद्यार्थी पर प्रेमपूर्ण ढंग से अनुशासन बनाए रखना कोई सामान्य बात नहीं है। पू.गुरुवर्याजी में वक्तव्य कला के साथ साथ अध्यापन कला भी विकसित थी। पाण्डित्य के बल पर नहीं, प्रत्युत दूसरों में घुल मिल कर जीवन निर्माण करने की कला से एवं अन्यों को अपनाने के प्रमुख गुण के कारण ही आप जन-जन की श्रद्धा की पात्र बन सकी । वर्षावास बड़े धूमधाम से सम्पन्न हुआ। वर्षावास के पश्चात् आपकी भावना नासिक की ओर विहार करने की थी। बालाघाट में आपका यह वर्षावास वि.सं. २०४० में सम्पन्न हुआ था।
नासिक की ओर विहार का कारण यह था कि पू. गुरुदेव युवाचार्य श्री मधुकर मुनि जी म.सा. के दर्शन करने की प्रबल भावना थी। वर्षावास पाली (सं. २०३४) के पश्चात् उनके दर्शन नहीं हो पाये थे। दूसरे नासिक से भी पू. युवाचार्य श्री का ऐसा संदेश भी मिला था। बालाघाट से वर्षावास समाप्त होते ही विहार कर दिया और नगर के बाहर श्री ललवानी जी के मकान में पू. गुरुवर्या ठहरी हुई थी। पू. गुरुवर्या स्वाध्याय में तल्लीन थी।
असा आघात- विहार की तैयारी भी हो रही थी। उसी समय श्री मोहनलालजी ललवानी तथा चार पांच अन्य भाई उदास उदास से आए। उन सबकी आँखों से अश्रुधारा प्रवाहित हो रही थी। वे पू. गुरुवर्या के समीप दर्शनार्थ आए। गुरुवर्याश्री ने कहा- "बंधुओं, आप सभी की आंखों आँसू क्यों है? क्या हुआ? कुछ समय पूर्व तो आप सब प्रसन्न चित्त थे। अब एकाएक ऐसा क्या हो गया जिससे आपकी यह हालत हो रही है?"
“महाराज सा. ! हमारा सब कुछ लुट गया। हमारे मन में जो प्रसन्नता थी, वह सब मिट्टी में मिल गई। हम जिनकी प्रतीक्षा कर रहे थे, वे महान गुरुदेव अब इस संसार में नहीं रहे। अभी अभी आकाशवाणी से समाचार प्रसारित हुआ जिसे हमने सुना है। उसके अनुसार नासिक सिटी में गुरु भगवंत हमेशा के लिए हमसे दूर हो गये हैं। गुरुदेव युवाचार्य श्री अब इस दुनिया में नहीं रहे।" श्री ललवानी जी ने जैसे तैसे पू. गुरुवर्याश्री को बताया। इस अनापेक्षित समाचार को सुनकर दाद गुरुवर्या, गुरुवर्या एवं अन्य महासतियां जी सभी स्तब्ध रह गये। उनसे कुछ बोलते नहीं बना। वाणी मूक हो गई। सांस रूकती सी प्रतीत हुई। कुछ क्षणोपरांत गुरुवर्याश्री ने कहा- “नहीं नहीं ऐसा नहीं हो सकता। यह समाचार असत्य प्रतीत होता है। आप लोग जाइये और वास्तविकता का पता लगाकर सूचना दें।”
“हमने पूरी जानकारी प्राप्त कर ली है। उसके पश्चात् ही आपको सूचना देने आए हैं" भाइयों में से एक ने बताया। इस हृदय विदारक समाचार से गुरुवर्या को जबरदस्त आघात लगा। गुरुदेव के दर्शन की भावना थी, किन्तु अब वह पूरी नहीं हो सकती। यह कैसी विडम्बना है कि अभी २ जुलाई १९८३ तदानुसार वि. सं. २०४० आपाड़ कृष्ण अष्टमी को धूलिया (महाराष्ट्र) में पू. उपप्रवर्तक स्वामी श्री ब्रजलाल जी म.सा. के वियोग को भुला भी नहीं पाये थे कि पुन: यह वज्राघात हो गया। गुरुदेव के वियोग को
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